Category : Beyond the call of Duty
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कौन : डॉ. सुशील बिन्द्रूक्या : 6 माह घर से दूर रहकर कोरोना मरीजों की सेवा।
क्यों : मरीजों की देखभाल ही एक मात्र लक्ष्य।
मुश्किल समय में जरूरमंदों की मदद करना ही एक सच्ची मानव सेवा है। यही भावना डॉ. सुशील बिन्द्रू ने कोरोना काल में मरीजों की मदद करके दिखाई है। उनके इसी निस्वार्थ योगदान के लिए उन्हें OMH Healthcare Heroes अवॉर्ड में ‘बियोंड दी कॉल ऑफ ड्यूटी -डॉक्टर के लिए नॉमिनेट किया गया है।
क्या है डॉक्टर सुशील की कहानी
पेशे से डॉक्टर सुशील बिन्द्रू दिल्ली में रहते हैं। वह कोरोना काल में लोगों की सेवा करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने मुंबई के जसलोक अस्पताल के CEO को एक ईमेल भेजा, जिसका जवाब उन्हें 15 मिनट में मिल गया। वह 20 मार्च का दिन था। उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि दो दिन बाद पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगने वाला है। उन्होंने अगले ही दिन यानी 21 मार्च को फ्लाइट की टिकट बुक करवाई, जो कि कैंसिल हो गई। वह उसी दिन बिना अपने परिवार को बताए दिल्ली एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए। उन्होंने मुंबई के लिए फ्लाइट के बारे में जानकारी ली। फ्लाइट रात को थी, उन्हें लगा यह भी कैंसिल हो जाएगी, इसलिए उन्होंने दूसरे विकल्प के बारे में भी पूछ लिया। उन्होंने दिल्ली से वाया गोरखपुर और मुंबई की फ्लाइट पकड़ी।
डॉ. सुशील बिन्द्रू जसलोक अस्पताल पहुंचते ही COVID-19 के रोगियों को देखना शुरू कर दिया। वह रोजाना 50-52 मरीजों को देखते थे। शुरू के तीन महीने तक वह दिन में लगभग 24 घंटे काम करते थे। उस दौरान वह न केवल मरीजों को देखते थे, बल्कि प्रोटोकॉल बनाने और उसे लागू करवाने में भी योगदान देते थे। इसके अलावा वह स्टाफ और रोगियों के लिए हमेशा फोन और वाट्सएप पर उपलब्ध रहते थे। काम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी ज्यादा थी कि होटल तक पहुंचते-पहुंचते रात हो जाती थी। वहां भी उन्हें घरवालों, रोगियों और उनके रिश्तेदारों व अस्पताल के कर्मचारियों के फोन भी आते थे। वह अपने काम में इतने व्यस्त थे कि पूरे हफ्ते परिवार वालों से बात भी नहीं कर पाते थे।
डॉ. सुशील बिन्द्रू के सामने सबसे बड़ी चुनौती अस्पताल में COVID-19 के रोगियों की मृत्यु दर को कम करना था। यह प्रबंधन, कर्मचारियों और सहकर्मियों का सामूहिक प्रयास था, जिसकी बदौलत जसलोक अस्पताल में COVID-19 के रोगियों की मृत्यु दर कंट्रोल में रही। वह हमेशा मरीजों के ईर्द-गिर्द रहते थे और लगभग 8 घंटे PPE सूट पहने रहते थे। उस दौरान उन्हें खाने-पीने की अनुमति नहीं होती थी। इन चुनौतियों के अलावा डॉ. सुशील बिन्द्रू कई तरह की भावनात्मक चुनौतियों से भी गुजरे। उन्होंने मरीजों की शंकाओं और डर को दूर करने में भी अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई।
क्या थी परिवार की प्रतिक्रिया
डॉ. सुशील बिन्द्रू के इस फैसले से उनके परिवार वाले डरे हुए थे। वह जसलोक अस्पताल में COVID-19 प्रबंधन में शामिल थे। परिवार वालों को उनके बारे में न्यूज के जरिए तब पता चला जब वह PPE सूट पहनकर मीडिया से मुखातिब हुए। PPE सूट में देखकर परिवार वाले भावूक हो गए। हालांकि उन्होंने अपने परिवार वालों को बोला की वो एक योद्धा हूं और उन्हें फक्र है कि भगवान ने उन्हें लोगों की सेवा करने का मौका दिया है। वह लगभग 6 महीने से ज्यादा समय तक परिवार से दूर रहें। बीते 6 सितंबर को वह 3 दिन के लिए घर आएं। परिवार वाले उन्हें देखकर काफी खुश भी हुए।
डॉ. सुशील बिन्द्रू ने निस्वार्थ भाव से जो सेवा की है, वो काफी प्रसंसनीय है। उन्हें उस दृश्य को देखकर सबसे ज्यादा प्रेरणा मिलती है, जब वह ICU से कोरोना रोगियों को स्वस्थ होकर बाहर जाते हुए देखते थे। उम्मीद है डॉ. सुशील बिन्द्रू का यह काम उन लोगों को भी प्रेरित करेगा, जो आगे आकर सामाज में अपना योगदान देना देना चाहते हैं।
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