Does Thalassemia Can't Be Prevented : थैलेसीमिया एक जेनेटिक ब्लड से जुड़ी बीमारी है। यह मुख्य रूप से बच्चों को शरीर में सामान्य हीमोग्लोबिन के उत्पादन को प्रभावित करती है। थैलेसीमिया मुख्य रूप से पेरेंट्स के जरिए बच्चों में ट्रांसफर होता है। वैश्विक रिपोर्ट बताती हैं कि भारत में अन्य देशों के मुकाबले थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या ज्यादा है। विशेषकर उत्तर भारत, पंजाब, गुजरात, और पश्चिम बंगाल थैलेसीमिया के मामले ज्यादा दर्ज किए जाते हैं। थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या को देखते हुए हर साल 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे (world thalassemia day 2025) मनाया जाता है।
आज बेशक हम आधुनिक युग में रह रहे हैं, लेकिन थैलेसीमिया के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी देखी जा रही है। थैलेसीमिया को लेकर सबसे बड़ी भ्रांति यह है कि इससे बचाव संभव नहीं है। वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के खास मौके पर हम इस भ्रांति को दूर करने की कोशिश करेंगे। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए हमने कोलकाता के स्थित सीएमआरआई अस्पताल के हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. शुभम भट्टाचार्य (Dr. Shubham Bhattacharyya, Hematologist at CMRI Hospital Kolkata) से बात की।
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क्या थैलेसीमिया से बचाव संभव नहीं है- Is it not possible to prevent thalassemia
डॉ. शुभम भट्टाचार्य का कहना है कि थैलेसीमिया एक जेनेटिक विकार है। आसान भाषा में कहें तो अन्य बीमारियों की तरह थैलेसीमिया खानपान, जीवनशैली के कारण नहीं बल्कि माता-पिता से बच्चे में आता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि इसे रोका नहीं जा सकता। अन्य बीमारियों की तरह ही थैलेसीमिया से बचाव संभव है।
थैलेसीमिया से बचाव के तरीका- Ways to prevent Thalassemia
1. शादी से पहले जांच
शादी से पहले लड़के और लड़की की थैलेसीमिया की जांच करवा ली जाए, तो इसका पता चल सकता है कि बच्चे में उसके आने की संभावना कितनी है। अगर लड़का और लड़की दोनों ही थैलेसीमिया के वाहक हैं, तो संतान में थैलेसीमिया मेजर होने की संभावना 20 से 30 प्रतिशत तक हो सकती है।
2. काउंसलिंग
अगर कोई कपल दोनों ही थैलेसीमिया का वाहक होता है, तो डॉक्टर उन्हें सामान्य प्रक्रिया से गर्भधारण की बजाय IVF के साथ प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (PGD) की सलाह दे सकते हैं। इस प्रक्रिया से स्वस्थ भ्रूण का चयन करके आने वाले बच्चे को थैलेसीमिया से बचाया जा सकता है।
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3. भ्रूण की जांच
डॉ. शुभम भट्टाचार्य के अनुसार, होने वाली मां की शुरुआती गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की जांच कर ली जाए, तो यह थैलेसीमिया से बचाव करने में मदद कर सकता है।
थैलेसीमिया कितने प्रकार का होता है- How many types of thalassemia
डॉक्टर के अनुसार थैलेसीमिया मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है: अल्फा और बीटा। बीटा थैलेसीमिया भारत में अधिक प्रचलित है। यह रोग शरीर में हीमोग्लोबिन के निर्माण में कमी के कारण होता है, जिससे एनीमिया, थकान, त्वचा का पीला पड़ना और शारीरिक अंगों की कार्यक्षमता का कमजोर होना शामिल है। बीटा थैलेसीमिया एक गंभीर स्थिति है, इसका इलाज कराना जरूरी है।
डॉक्टर कहते हैं कि थैलेसीमिया कोई छूत की बीमारी नहीं है, और इससे डरने की जरूरत नहीं। अगर आपको या आपके बच्चे को थैलेसीमिया है, तो बस सही समय पर जांच और जानकारी जरूरी है। अगर मां और पिता दोनों ही थैलेसीमिया के वाहक हैं, तो गर्भावस्था के दौरान ही इसकी जांच करवाकर नए मामलों को आने से रोका जा सकता है।
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निष्कर्ष
डॉक्टर के साथ बातचीत के आधार पर यह कहा जा सकता है कि थैलेसीमिया से बचाव संभव है, लेकिन इसके लिए लोगों को स्वयं जागरूक होने की जरूरत है। शादी से पहले ही अगर कपल्स थैलेसीमिया की जांच करवा लें, तो इसके मामलों में कमी आ सकती है और नई पीढ़ी को एक सुंदर भविष्य मिल सकता है।
FAQ
थैलेसीमिया का मुख्य कारण क्या है?
थैलेसीमिया का मुख्य कारण जेनेटिक कारणों से होती है। यह महिलाओं में हीमोग्लोबिन के प्रोडक्शन को बढ़ाती हऐ। किसी भी बच्चे को थैलेसीमिया होने का मुख्य कारण माता-पिता के जेनेटिक का ट्रांसफर होना है।थैलेसीमिया का मरीज कब तक जीवित रह सकता है?
अगर किसी बच्चे को माइनर थैलेसीमिया है और उसके लक्षण बहुत ही कम और हल्के हैं, तो वह एक सामान्य जीवन जी सकता है और 60 से 70 साल तक जीवित रह सकता है। लेकिन थैलेसीमिया के लक्षण गंभीर हो, तो मरीज की उम्र 40 से 45 वर्ष तक हो सकती है।थैलेसीमिया का इलाज क्या है?
थैलेसीमिया का इलाज मरीज की बीमारी की गंभीरता, उम्र, और संसाधनों पर निर्भर करता है।
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