आज कुपोषण न केवल भारत, बल्कि दुनिया के सभी देशों की आम समस्या बन गई है। अपको जानकर शायद थोड़ा अजीब लगे, लेकिन कुपोषण के चलते होने वाली कई दिक्कतों में से मोटापा भी एक है। पहले केवल विकसित देशों या अमीरों तक सीमित समझा जाने वाला यह संकट अब कई विकासशील देशों और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को भी अपनी चपेट में ले चुका है। चीन से लेकर ऑस्ट्रेलिया, मिश्र, दक्षिण अफ्रीका और प्रशांत के सुदूर व पिछड़े द्वीपों तक हर तरफ मोटापे से ग्रस्त लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विकसित देशों में तो यह खतरनाक स्तर तक बढ़ चुका है और अकेले अमेरिका में मोटापे के शिकार बच्चों की संख्या प्रतिवर्ष एक प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार वहां पिछले दस वर्षो में मोटापे और इसके चलते होने वाले विभिन्न रोगों पर नियंत्रण के लिए 99.2 बिलियन डॉलर खर्च किए जा चुके हैं। अगर जनसंख्या के अनुपात में देखा जाए तो इस मामले में सबसे खतरनाक स्थिति इंग्लैंड की है। वहां की कॉमन हेल्थ सेलेक्ट कमेटी की मई में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पिछले 25 वर्षो में मोटापे के शिकार लोगों की संख्या में 400 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। पिछले बीस वर्षो में वहां मोटापे के शिकार बच्चों की संख्या तीन गुनी हो गई है। वहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं के तहत प्रतिवर्ष 3.5 बिलियन डॉलर केवल मोटापे के नियंत्रण पर खर्च किए जा रहे हैं और अनुमान है कि भविष्य में यह खर्च बढ़ता ही जाएगा।
घट रही है उम्र
दुनिया भर में जिस रफ्तार से मोटापा बढ़ रहा है और उसके जो दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, उन्हें देखते हुए चिकित्सा वैज्ञानिकों की चिंता यह है कि कहीं उनके अब तक के प्रयासों पर पानी न फिर जाए। गौरतलब है कि बीसवीं शताब्दी के आरंभ में दुनिया के सभी देशों में मनुष्य की औसत आयु काफी कम थी। इसे अपेक्षित स्तर तक लाने के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य संगठनों ने कड़ी मेहनत की है और साथ ही अरबों डॉलर की रकम भी खर्च हुई है। कई संदर्भो में यह सभी कवायदें अभी भी जारी हैं, पर वैज्ञानिकों को आशंका है कि अगर मोटापा इसी दर से बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर से लोगों की औसत आयु घट जाएगी।
इंग्लैंड की फूड स्टैंडर्ड्स एजेंसी के अध्यक्ष सर जॉन क्रेब्स इसे विस्फोट को आतुर टाइम बम की संज्ञा देते हुए कहते हैं, 'जिस रफ्तार से यहां मोटापा बढ़ रहा है उसका अर्थ यह है कि हमारे देश के युवा वर्ग का जीवन उतना लंबा नहीं हो सकेगा जितना कि पिछली पीढ़ी का रहा है। अगर इस पर नियंत्रण के लिए जल्द ही प्रभावी प्रयास शुरू न किए गए तो फिर हमें अपने औसत जीवन में कमी का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।'
मोटापा और अधिक वजन
क्रेब्स की यह चिंता ऐसे ही नहीं है। मोटापा अपने आपमें कई जटिल रोगों का जनक है, यह बात अब सबको पता है। मोटापे के चलते हृदय रोग से लेकर अंधापन, डायबिटीज और किडनी खराब होने तक की स्थितियां बन सकती हैं। यह बात भी ध्यान रखने की है कि मोटापा और वजन सामान्य से अधिक होना यानी ओवरवेट दोनों दो स्थितियां हैं। इनमें केवल वजन का अधिक होना गंभीर समस्या नहीं है, लेकिन अगर इस पर ध्यान न दिया जाए तो यह समस्या बढ़कर मोटापे की ओर ले जा सकती है। कई एथलीटों और बॉडी बिल्डर्स का वजन भी उनकी ऊंचाई के अनुपात में अधिक होता है, पर वे मोटापे के शिकार नहीं होते। वजन के आकलन की वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत शरीर की ऊंचाई और उम्र के अनुपात में भार को देखा जाता है। इसे बीएमआई पद्धति कहते हैं। बीएमआई स्केल पर अधिक वजन दरअसल तब तक बहुत खतरनाक नहीं होता जब तक कि वसा का वितरण शरीर के सभी अंगों पर समान अनुपात में हो, जैसा कि एथलीटों या बॉडी बिल्डर्स में देखा जाता है, लेकिन जब वसा शरीर के कुछ खास हिस्सों पर ही जमा होने लगे तो खतरनाक स्थिति होती है। दरअसल यही मोटापा है।
अमेरिका में 58 मिलियन वयस्कों का वजन उनकी ऊंचाई के अनुपात में अधिक है और इनमें से मोटापे के शिकार केवल 40 मिलियन लोग हैं। इनमें तीन मिलियन लोगों के जीवन को मोटापे के चलते खतरा बताया जाता है। वहां 25 वर्ष से अधिक आयु के 80 प्रतिशत लोगों का वजन सामान्य से अधिक है और पिछले डेढ़ दशकों में मोटापे के चलते डायबिटीज के रोगियों में 76 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इंग्लैंड की वयस्क आबादी में दो तिहाई पुरुषों और आधी स्ति्रयों का वजन सामान्य से अधिक है। वहां मोटापे की शिकार वयस्क आबादी की संख्या अभी बीस प्रतिशत है, लेकिन अगर यही गति रही तो 2010 तक यह बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाएगी। फ्रांस में भी दस प्रतिशत लोग मोटापे के शिकार हैं। जबकि भारत में यह संख्या 7 से 9 प्रतिशत के बीच है और यहां मोटापे के शिकार लोगों में अधिकतर शहरी हैं। ग्रामीण आबादी अभी भी अधिकांशत: मोटापे से बची हुई है।
पश्चिमीकरण जिम्मेदार
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके लिए पूरी दुनिया की सभ्यता के तेजी से पश्चिमीकरण को जिम्मेदार ठहराते हुए मोटापे को वैश्विक महामारी की संज्ञा दी है। इंग्लैंड में हुए अध्ययनों से जाहिर है कि नए दौर की जीवनशैली मोटापे का सबसे बड़ा कारण है। आपाधापी के इस दौर में शारीरिक श्रम लगातार घटता जा रहा है। बीस साल पहले तक इंग्लैंड का एक आम आदमी एक साल में 255 मील पैदल चलता था, जबकि अब यह दूरी घटकर 189 मील रह गई है। साइकिल चलाने के स्तर में पिछले 50 वर्षो में वहां 80 प्रतिशत की कमी आई। स्कूल जाने के लिए तो अब एक फीसदी से कम बच्चे साइकिल का इस्तेमाल करते हैं। स्कूली बच्चों में वहां मोटापा बढ़ने के जो कारण गिनाए जा रहे हैं उनमें भोजन का अस्वास्थ्यकर होना, जंक फूड के आक्रामक विज्ञापन अभियान और कंप्यूटर गेम प्रमुख हैं। ध्यान रहे, भारत के बच्चे भी अब इन कारणों से अछूते नहीं रह गए हैं।
इसके अलावा मोटापा बढ़ने का एक कारण आनुवंशिकता भी है। नई खोजों से पता चला है कि कुछ लोग आनुवंशिक रूप से मोटे होने के लिए मजबूर होते हैं। एक खास जीन मोटापा बढ़ने का कारण बन सकता है। जीएडी टू नामक यह जीन कुछ ऐसे रसायनों का उत्पादन बड़ी तेजी से करता है, जिनके कारण भूख बहुत अधिक लगती है। भूख लगने पर हर शख्स खाने की ओर दौड़ता है और यही मोटापे की वजह बन जाती है।
नियंत्रण के लिए अभियान
फिलहाल विश्व में 250 मिलियन लोग मोटापे के शिकार हैं और सामान्य से अधिक वजन वालों की संख्या तो इससे भी अधिक है। अमेरिका में हर साल तीन लाख लोगों की मृत्यु केवल मोटापे के कारण होती है। मोटापे के चलते होने वाली बीमारियों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे जनस्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बता रहा है। इस खतरे से निबटने के लिए वह पक्के इंतजाम करना चाहता है और इसी के तहत दुनिया के कई देशों में अभियान भी चलाए जा रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए यह लक्ष्य तय किया गया है कि सन 2010 तक ऐसे लोगों की संख्या में भारी वृद्धि करनी है जो प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे शारीरिक श्रम करें। इंग्लैंड और फ्रांस में भी ऐसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और यह सब मोटापे को नियंत्रित करने के लिए ही है।
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