Difference Between Psychiatrist And Neuropsychiatrist in Hindi: आज के समय में लोग अपने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी बहुत ध्यान रखते हैं। भारत में मानसिक स्वास्थ्य का क्षेत्र बढ़ने और विकसित होने के साथ ही साइकेट्रिस्ट की मांग पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। सरकारी संस्थान, कॉर्पोरेट, शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, गैर सरकारी संगठन आदि सभी मनोवैज्ञानिकों को नियुक्त कर रहे हैं ताकि वे हर व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रख सकें। इसके साथ ही लोगों में न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट का भी महत्व बढ़ रहा है। लेकिन अक्यर लोग साइकेट्रिस्ट और न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट में अंतर नहीं समझ पाते हैं और ये नहीं जान पाते हैं कि इनमें क्या अंतर है, क्योंकि दोनों ही डॉक्टर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से निपटने में आपकी मदद करते हैं। ऐसे में आइए नई दिल्ली के पीएसआरआई अस्पताल की न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट दीक्षा पार्थसारथी से जानते हैं न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट और साइकेट्रिस्ट में क्या अंतर है?
साइकेट्रिस्ट कौन होते हैं?
साइकेट्रिस्ट, जिसे हिंदी में मनोवैज्ञानिक कहा जाता है, वह व्यक्ति होता है, जिसने मनोविज्ञान में ग्रेजुएशन और मास्टर डिग्री पूरी की हो। इसके अलावा, वे आगे की पढ़ाई कर सकते हैं, जिसमें वे एमफिल या पीएचडी या दोनों कर सकते हैं। मनोचिकित्सक मानसिक स्वास्थ्य में विशेषज्ञता रखते हैं, और मनोवैज्ञानिक समस्याओं के मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के पहलुओं का आकलन करने की क्षमता रखते हैं।
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साइकेट्रिस्ट के पास कब जाना चाहिए?
एक मनोवैज्ञानिक आम तौर पर सामान्य मानसिक, भावनात्मक, व्यवहारिक और सामाजिक परेशानी से जुड़ी समस्याओं के कारण परेशान रहने वाले लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए काम करते हैं। लोगों में मानसिक तौर पर होने वाली समस्याओं जैसे तनाव, एंग्जाइटी, डिप्रेशन, साथी या जीवनसाथी के साथ रिश्तों में समस्याएं, काम पर फोकस न होना, खुद पर कम विश्वास होना, बचपन या किसी घटना के कारण दिमाग पर बुरा असर पड़ना आदि समस्याओं को साइकेट्रिस्ट काउंसलिंग की मदद से ठीक करने की कोशिश करते हैं। इसलिए अगर आप किसी बात को लेकर बहुत ज्यादा तनाव या डिप्रेशन में है, किसी दुख या परेशानी से मानसिक तौर पर नहीं निकल पा रहे हैं आदि तो आप साइकेट्रिस्ट के पास जा सकते हैं।
न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट कौन होते हैं?
न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट भी एक तरह के साइकेट्रिस्ट होते हैं, जिसने न्यूरोसाइकोलॉजी की पढ़ाई की होती है। भारत में, न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट बनने के लिए, न्यूरोसाइकोलॉजी में ग्रेजुएट और मास्टर डिग्री लेना जरूरी है। न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट आमतौर पर न्यूरोलॉजिकल और मानसिक समस्याओं से परेशान रोगियों के इलाज के लिए एक टीम के हिस्से के रूप में किसी अस्पताल और क्लिनिकल में काम करते हैं। न्यूरोसाइकोलॉजर इस बात पर ध्यान देते हैं कि मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम में बदलाव, व्यक्ति के व्यवहार और मानसिक क्षमताओं को कैसे प्रभावित करते हैं। न्यूरोलॉजिकल स्थितियों वाले रोगी, जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं का भी अनुभव करते हैं, वे न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट के पास जाते हैं। जहां न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट इन समस्याओं के इलाज के लिए सही योजनाएं तैयार करते हैं।
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न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट के पास कब जाना चाहिए?
न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट आमतौर पर बच्चों के मामले में डॉक्टरों, साइकेट्रिस्ट या स्कूल अधिकारियों से रेफरल के आधार पर व्यक्तियों को देखते हैं। भारत में, न्यूरोसाइकोलॉजी अभी तक मान्यता प्राप्त डोमेन नहीं बना है, इसलिए लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि उन्हें खुद न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट के पास कब जाना चाहिए। ऐसे में आप कुछ न्यूरोलॉजिकल स्थितियां में एक न्यूरोलॉजिस्ट के पास जा सकते हैं जैसे-
- ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी
- मनोभ्रंश जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर
- स्ट्रोक
- मिर्गी
यह याद रखना जरूरी है कि किसी भी मनोवैज्ञानिक या न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट के पास दवा लिखने का लाइसेंस नहीं है। दवाएं केवल मेडिकल डॉक्टर ही लिखते हैं, जिन्होंने MBBS या उससे ज्यादा की पढ़ाई पूरी की है।
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