दांतों से स्किन को नोचना है डर्माटिलोमेनिया डिस्आॅर्डर, जानें कितना नुकसादायक है ये

डर्माटिलोमेनिया स्किन पिकिंग डिसाऑर्डर या एसपीडी है। सामान्य-सी नजर आने वाली यह समस्या कई बार गंभीर परिणाम दे सकती है। 
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दांतों से स्किन को नोचना है डर्माटिलोमेनिया डिस्आॅर्डर, जानें कितना नुकसादायक है ये


डर्माटिलोमेनिया स्किन पिकिंग डिसाऑर्डर या एसपीडी है। सामान्य-सी नजर आने वाली यह समस्या कई बार गंभीर परिणाम दे सकती है। इससे ग्रसित व्यक्ति बार-बार अपनी त्वचा को छूता, रगड़ता, खरोंचता, नोचता है और उसे खींचकर बाहर निकालता रहता है। ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति इसे अपनी कमी की हीनभावना से ग्रसित होकर या किन्हीं अन्य कारणों से लगातार इस तरह का व्यवहार करता है। इससे त्वचा की रंगत पर प्रभाव पड़ता है और कई बार त्वचा पर जख्म जैसे भी बन जाते हैं।

खुद को पहुंचा सकते हैं नुकसान

यह एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति खुद की त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। घबराहट, डर, उत्साह और बोरियत जैसी स्थितियों से निपटने के लिए भी लोग इस तरह के व्यवहार का सहारा लेते हैं। यह लगातार और जुनून में किया जाने वाला व्यवहार होता है जिसकी वजह से त्वचा के टिशूज को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। कई शोधों में यह बात सामने आई है कि डर्माटिलोमेनिया ट्रिचोटिलेमेनिया यानी अपने ही बालों को खिंचने की समस्या से मिलती-जुलती है।

इन्फेक्शन का होता है खतरा

लगतार एक ही जगह की स्किन नोचते रहने से रोगी को इन्फेक्शन का खतरा भी रहता है। क्योंकि कई लोग त्वचा को निकालने के लिए चिमटे जैसी या किसी नुकीली चीज का भी प्रयोग करते हैं। इससे स्किन टिशूज के डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है। कई बार समस्या इतनी बढ़ जाती है कि स्किन ग्राफिटग तक करवाने की जरूरत पड़ जाती है। डर्माटिलोमेनिया का प्रभाव मानसिक रूप से भी पड़ता है क्योंकि रोगी असहाय महसूस करता है, उसे खुद के व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस होती है। एक शोध में यह बात सामने आई है कि डर्माटिलोमेनिया से पीड़ित 11.5 प्रतिशत रोगी आत्महत्या करने का प्रयास करते हैं।

बिहेवियरल थैरेपी है कारगर

डर्माटिलोमेनिया के लिए कॉग्नेटिव बिहेवियरल थैरेपी मददगार होती है। इस थैरेपी की मदद से स्किन पिकिंग की आदत को छुड़ाने में मदद मिलती है। ऐसा करने के लिए उत्सुक होने से रोकने के लिए एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं भी रोगी को दी जाती हैं। अपने परिवार या मित्रों के सपोर्ट से भी इस समस्या से निजात पा सकते हैं।

कम उम्र में होती है समस्या की शुरुआत

छोटे बच्चों में अकेलेपन, डर या उत्साह में अपनी ही त्वचा को नोचने की आदत लग जाती है। किशोरावस्था में एक्ने जैसी समस्या होने पर इस तरह का व्यवहार आमतौर पर देखा गया है, जब किशोरवय बच्चों को अपनी त्वचा को कुरेदकर निकालने की आदत हो जाती है। कई बार सोरायसिस और एक्जिमा जैसी परेशानियों में भी त्वचा को इस तरह नोंचकर या कुरेदकर निकालने की आदत हो जाती है। लेकिन 30 से 45 साल उम्र का दूसरा पड़ाव होता है, जिसमें लोगों में डर्माटिलोमेनिया जैसी परेशानी देखी जाती है। इस दौर में इस समस्या के होने के पीछे तनाव को सबसे बड़ा कारण माना जाता है।

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