आजकल लोगों में कब्ज की समस्या होना बहुत ही आम चीज हो गई है। इसका कारण अनियमित खानपान और भागदौड़ भरी जिंदगी है। अक्सर डॉक्टर्स भी यही कहते है। कि पेट संबंधी एक बार कोई रोग होने पर वह आसानी से सही नहीं होता है। जिस व्यक्ति को पेट संबंधी कोई भी पेरशानी है वह व्यक्ति स्वस्थ नहीं है। अपने पेट और और पूरे स्वास्थ्य को सही रखने का सबसे सीधा और सरल रास्ता हमारा अच्छा खानपान और लाइफस्टाइल है। अगर कोई इंसान अपनी डाइट को हेल्दी और संतुलित रखता है तो उस व्यक्ति के 99 प्रतिशत चांस बीमार होने के नहीं रहते हैं। कब्ज जैसी पेट से जुड़ी बीमारी से घिरा व्यक्ति हमेशा मुर्झाया हुआ रहता है। ऐसे व्यक्ति के चेहरे से ग्लो और रौनक पूरी तरह से गायब हो जाते हैं।
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अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि पुरानी कब्ज डिप्रेशन का कारण बनती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पुरानी कब्ज हमारे शरीर में अपनी पैठ जमाने लग जाती है। फिर भी समय रहते अगर किसी ने इसका इलाज नहीं कराया तो ये बीमारी धीरे-धीरे हमारे दिमाग को अपनी गिरफ्त में ले लेती है। जिसके चलते व्यक्ति डिप्रेशन में चला जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पेट और दिमाग का बहुत गहरा रिश्ता होता है। कई बार आपने ये महसूस किया होगा कि जब हमें बहुत खुशी या दुख की खबर मिलती तो पेट में कुछ हलचल होने लगती है। इसी तरह से पेट की कब्ज भी दिमाग पर गहरा असर डालती है।
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डिप्रेशन एक मनोवैज्ञानिक असंतुलन है। आमतौर पर लोग डिप्रेशन को आमतौर पर रहने वाली उदासी ही मानते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। उदासी में जहां व्यक्ति कुछ समय बाद सामान्य हो जाता है, वहीं डिप्रेशन में यही उदासी काफी लंबे समय तक और गहरी बनी रहती है। यह उदासी हर जगह उसके साथ रहती है। इसका असर उसके काम पर भी पड़ता है। डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति की रुचि किसी काम में नहीं रहती। यहां तक कि वह काम जो कभी उसे सबसे ज्यादा पसंद होता था, उस काम को करने का भी उसका मन नहीं करता। अपने वर्तमान और भविष्य को लेकर भी वह काफी उदास और नाउम्मीद रहता है। अवसादग्रस्त व्यक्ति की नींद और भूख भी बिगड़ जाती है।
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