हार्ट वॉल्व रिप्लेसमेंट कई दशकों से परंपरागत तौर पर ओपेन हार्ट सर्जरी द्वारा किया जाता रहा है। मरीज को हार्ट लंग मशीन पर काफी अहम सर्जरी करानी होती थी और बड़ा कट लगाकर मिड ब्रेस्ट बोन में सीने को खोलना पड़ता था। मरीज को सर्जरी से उबरने के लिए लगभग 3 महीने का समय लगता था और उन्हें जीवन भर ब्लड थिनर्स पर रहना होता था। आज विज्ञान और नवोन्मेश इस हद तक आगे बढ़ चुका है कि हार्ट वॉल्व को एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग की ही तरह कैथेटर आधारित तकनीक द्वारा बदला जा सकता है।
भारत में हृदय रोग से पीडि़त मरीजों की संख्या काफी अधिक है और एऑर्टिक स्टेनॉसिस (एऑर्टिक वॉल्व का संकरा होना) एक सामान्य वॉल्वलर हृदय रोग है, जो लोगों को कॉन्जेनिटली असामान्य वॉल्व के कारण जन्म से ही प्रभावित कर सकता है, बढ़ती उम्र और कैल्सिफिकेशन के कारण या रेमैटिक प्रभाव के कारण अधिक उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है।
कैसे होता है इलाज
टीएवीआर में कृत्रिम हार्ट वॉल्व को कैथेटर (ट्यूब) के अग्रिम सिरे पर रखा जाता है और इसे ग्रोइन में एक मामूली छेद के माध्यम से भीतर डाला जाता है। इस कैथेटर को हृदय के क्षेत्र तक पहुंचाया जाता है जहां वास्तविक बीमारीग्रस्त वॉल्व को बदलना होता है। कृत्रिम वॉल्व को छोड़ दिया जाता है और सही जगह पर प्रत्यारोपित किया गया। पुराना वॉल्व खत्म कर दिया जाता है और वह नए वॉल्व के पीछे चला जाता है। नया वॉल्व तत्काल काम करना शुरू कर देता है। पंक्चर की गई जगह को पहले से तैयार विशेष सूचर से सील कर दिया जाता है। मरीज को ठीक होने के लिए एक रात रोका जाता है और तीसरे दिन वह डिस्चार्ज होने के लिए तैयार होता है। यह पूरी प्रक्रिया सामान्य एनेस्थिसिया के बगैर होश में रखते हुए दर्दनिवारक दवा में की जाती है।
टीएवीआर ने वॉल्व थेरेपी के क्षेत्र में एक नई क्रांति की है और खास तौर पर अधिक उम्र वाले लोगों के लिए यह एक अच्छा विकल्प है जो ओपेन हार्ट सर्जरी के लिए फिट नहीं हैं, ऐसे लोग जो ओपेन हार्ट सर्जरी नहीं कराना चाहते हैं, ऐसे लोग जो पहले भी ओपेन हार्ट सर्जरी नहीं करा सकते और दूसरी सर्जरी नहीं करा सकते हैं या अन्य बीमारियों के कारण उनकी ओपेन हार्ट सर्जरी में अधिक खतरा हो सकता है। टीएवीआर सर्जरी के लिए फिलहाल अनफिट लोगों के लिए वरदान है।
टीएवीआर नॉन-सर्जिकल वॉल्व रिप्लेसमेंट की न्यूनतम खतरनाक तकनीक के क्षेत्र में एक नई क्रांति पैदा की है और इसकी सुरक्षा, क्षमता और लाभ की पुष्टि करने वाले पर्याप्त वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध हैं। हाल ही में किए गए परीक्षणों में कम और मध्यम दर्जे के जोखिम वाले मरीजों में अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं और ऐसा लगता है कि टीएवीआर बहुत ही जल्दी आने वाले वर्षों में सर्जिकल वॉल्व की जगह ले लेगा। फोर्टिस एस्कॉट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट पर वॉल्व थेरेपी के लिए उत्कृष्ट केंद्र है और यहां अब तक सर्वाधिक संख्या में टीएवीआर मामलों को ठीक किया गया है। पहला मानवीय अध्ययन डॉ.अशोक सेठ, चेयरमैन, कार्डियोवैस्क्यूलर साइंसेज द्वारा 2004 में किया गया। टीएवीआर प्रोग्राम को 2016 में भारत सरकार की स्वीकृति मिली और तब से अब तक कई मरीजों को इस प्रक्रिया से लाभ हो चुका है।
सफलतापूर्वक टीएवीआर कराने वाले सबसे उम्रदराज मरीज 95 वर्षीय मरीज और वह फिलहाल पूरी तरह ठीक हैं। विभिन्न उम्र के कई मरीजों ने इस तरीके से सफलतापूर्वक अपना उपचार कराया और अपने खुशनुमा अनुभव के बारे में अपनी कहानियां कहीं और बताया कि साधारण आसान नॉन-सर्जिकल टीएवीआर की तकनीक के बाद उनकी परेषान जिंदगी सेहतमंद हो गई।
डॉ. अशोक सेठ और डॉ. विजय कुमार प्रमुख सलाहकार, इंटरवेशनल कार्डियोलॉजी वॉल्व क्लिनिक का संचालन कर रहे हैं और उन्होंने फोर्टिस एस्कॉट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट को टीएवीआर-प्रक्रिया के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बना दिया है, इसके साथ ही वे भविश्य के उभरते हुए इंटरवेंषनल कार्डियोलॉजिस्ट्स को टीएवीआर तकनीक के बारे में सिखा भी रहे हैं। टीएवीआर के लिए हार्ट टीम में इमेजिंग विषेशज्ञ, कार्डिएक सर्जन, एनेसथिसिया विशेषज्ञ, नर्स, तकनीशियन होते हैं जो विशेष रूप से टीएवीआर के लिए समर्पित होते हैं।
डॉ.विजय कुमार प्रमुख सलाहकार और प्रमुख टीएवीआर प्रोग्राम, फोर्टिस एस्कॉट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट, ओखला, नई दिल्ली ने बताया: ’’ट्रांसकैथेटर एऑर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी, अच्छी तरह स्थापित नवोन्मेश है जहां ग्रोइन आर्टरी के माध्यम से भीतर डाले गए वॉल्व माउंटेड कैथेटर डिलिवरी सिस्टम की मदद से बीमार वॉल्व की जगह नया वॉल्व लगाया जा सके। इसके कारण अब एऑर्टिक वॉल्व को बदलने के लिए ओपेन हार्ट सर्जरी की जरूरत नहीं होती। मरीज जो फिट न हों या उनमें ओपेन हार्ट सर्जरी को लेकर अत्यधिक जोखिम हो, वे टीएवीआर द्वारा भीतर डाले गए नए वॉल्व का इस्तेमाल कर सकते हैं जो एंजियोप्लासटी और स्टेंट जैसी ही साधारण तकनीक है। लंबे समय तक हॉस्पिटल में रुकने और प्रक्रिया के बाद सुधार की जरूरत नहीं होती है। इस थेरेपी की सफलता की दर 100 फीसदी है।’’
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