सीओपीडी का बहुत आम लक्षण है छाती में दर्द होना, जानें इसके बारे में सबकुछ

सीओपीडी यानि कि क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज। इस बीमारी की वजह से ब्रोन्कीअल ट्यूब में सूजन हो जाती है जिसके वजह से फेफड़ों में बलगम की समस्या शुरू हो जाती है और हमेशा मरीज को खांसी रहती है।
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सीओपीडी का बहुत आम लक्षण है छाती में दर्द होना, जानें इसके बारे में सबकुछ


सीओपीडी यानि कि क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज। इस बीमारी की वजह से ब्रोन्कीअल ट्यूब में सूजन हो जाती है जिसके वजह से फेफड़ों में बलगम की समस्या शुरू हो जाती है और हमेशा मरीज को खांसी रहती है। फिजियोथेरेपी ट्रीटमेंट के द्वारा इस सूजन में कमी करवाई जाती है, जिससे की सीओपीडी के लक्षणों में कमी आ सके। फिजियोथेरेपिस्ट चेस्ट फिजिशियन और रिहैब स्पेशलिस्ट के साथ मिलकर एक्सरसाइज्स प्रक्रियाओं की पूरी रूटीन लिस्ट बनाते हैं जिनके द्वारा फेफड़ों में जरूरी मात्रा में हवा पहुंचाई जाती है।

चिकित्सकों का कहना है कि लोग क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) को आसानी से पहचान सकते हैं, अगर लोगों को लगे कि उन्हें दो महीने से लगातार बलगम वाली खांसी आ रही है तो वे समझ लें कि आपको डॉक्टर से तुरंत मिलने की जरूरत है। सरोज सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रेस्पिरेटरी मेडीसिन के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राकेश चावला का कहना है कि सीओपीडी को हम 'कालादमा' भी कहते है। इसमें फेफड़े में एक काली तार बन जाती है। यह अस्थमा के दमा से अलग होता है। अस्थमा एलर्जी प्रकार का रोग होता है जोकि वंशानुगत और पर्यावरण कारकों के मेल द्वारा होता है।

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डॉक्टर्स कहते हैं कि इसमें इतनी खांसी आती है कि फेफड़ा बढ़ जाता और रोगी चलने लायक नहीं रहता। यहां तक कि मुंह से सांस छोड़ना उसकी मजबूरी बन जाती है। इस रोग का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है। गांव में जहां लकड़ी पर खाना बनता है उन स्थानों की अधिकतर महिलाएं सीओपीडी की चपेट में रहती हैं। डॉ. राकेश ने कहा कि सीओपीडी के प्राथमिक लक्षणों को पहचानना काफी आसान है। खांसी के सामान्य सिरप और दवाएं इसमें कारगर नहीं होंगी। जांच के बाद ही आपको दवाएं लेनी होंगी। सीओपीडी के लक्षण 35 साल की उम्र के बाद ही नजर आते हैं। सीओपीडी का ज्यादातर उपचार ऐसा है जो व्यक्ति खुद भी कर सकता है। हाालांकि सीओपीडी की दवाइयां लम्बे समय तक चल सकती है।

अगर आप सीओपीडी के मरीज हैं तो यह ध्यान रखिए कि डॉक्टर की सलाह के बिना दवाइयां बंद नहीं करनी है। इसके अलावा लोगों में नॉन इन्वेसिव वेंटीलेशन (एनआईवी) उपचार के बारे में जागरूकता का अभाव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में आठ करोड़ लोग मध्यम से गम्भीर स्तर की सीओपीडी समस्या से पीड़ित है। ऐसा अनुमान है वैश्विक स्तर पर यह मौत का तीसरा सबसे बड़ा और विकलांगता का पांचवा सबसे बडा कारण बन जाएगा।

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सीओपीडी की मध्यम या गम्भीर अवस्था वाले मरीजों को एनआईवी दवाई दी जा सकती है। यह रक्त में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर कम कर देती है और इससे मरीज सामान्य ढंग से सांस ले पाता है। सीओपीडी या सांस की समस्या की जोखिम वाले मरीजों को घर के अंदर ही रहने की सलाह दी जाती है, इसलिए यह जरूरी है कि ये मरीज अपने घर के आस-पास का वातावरण सही करें।

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