पिछले 10 सालों में दोगुने हुए सिजेरियन डिलीवरी के मामले, होते हैं कई नुकसान

सिजेरियन डिलीवरी यानी ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या पिछले दस सालों में दोगुनी बढ़ गई है। सिजेरियन डिलीवरी के कई नुकसान होते हैं, जिन्हें जानना जरूरी है।
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पिछले 10 सालों में दोगुने हुए सिजेरियन डिलीवरी के मामले, होते हैं कई नुकसान


सिजेरियन डिलीवरी यानी ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या पिछले दस सालों में दोगुनी बढ़ गई है, ऐसा हाल में हुए एक अध्ययन में पाया गया है। साल 2005-2006 में जहां देशभर में सिजेरियन डिलीवरी से पैदा होने वाले बच्चे लगभग 9 प्रतिशत थे, वहीं 2015-16 में बढ़ कर ये 18.5 प्रतिशत पर पहुंच गया। ये अध्ययन लैसेंट नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। तमाम चिकित्सक और महिला रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि सिेजेरियन डिलीवरी के कई नुकसान होते हैं इसलिए इसे विपरीत परिस्थितियों में ही करना चाहिए। मगर आजकल अस्पतालों में चिकित्सक ज्यादातर सिजेरियन की ही सलाह देते हैं।

क्या कहते हैं चिकित्सक

ऐसादेखा गया है कि प्रेग्नेंसी के लगभग 10 प्रतिशत मामलों में जटिलता को देखते हुए सिजेरियन की जरूरत सच में पड़ती है। लेकिन ज्यादातर मामलों में नॉर्मल डिलीवरी सुरक्षित होती है क्योंकि गर्भावस्था और प्रसव दोनों सामान्य और नैचुरल प्रक्रिया हैं। लेकिन जिस तरह देशभर में बिना जरूरत के सी-सेक्शन डिलीवरी के मामले बढ़ रहे हैं, वो चिंताजनक है। सिजेरियन डिलीवरी मां और शिशु दोनों के लिए हानिकारक होती है।

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सिजेरियन डिलीवरी के नुकसान

नैचुरल तरीके से बच्चे को जन्म देना व सिजेरियन द्वारा प्रसव कराना दोनों ही एकदम विपरीत स्थितियां हैं। नॉर्मल तरीके से जन्म देने में असहनीय कष्ट होता है फिर भी इसे अच्छा माना जाता है। वहीं ऑपरेशन द्वारा जन्म भले ही बिना तकलीफ के हो रहा हो, लेकिन इसके कई नुकसान बताए जाते हैं। सिजेरियन डिलीवरी के बाद दूसरे बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। शोध इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि सी-सेक्‍शन के जरिये 39 हफ्तों से पैदा हुए बच्‍चों को श्वसन संबंधी तकलीफ होने की आशंका सामान्‍य रूप से जन्‍म लेने वाले बच्‍चों की अपेक्षा अधिक होती है।

सी सेक्शन के होते हैं कई खतरे

सी-सेक्‍शन या सिजेरियन एक बड़ी सर्जरी है, तो इसके अपने खतरे हैं। सी-सेक्‍शन करवाने वाली महिलाओं को सामान्‍य डिलिवरी करवाने वाली महिलाओं के मुकाबले इंफेक्‍शन होने का खतरा अधिक होता है। उन्‍हें अधिक रक्‍त बहने, रक्‍त के थक्‍के जमने, पोस्‍टपार्टम दर्द, अधिक समय तक अस्‍पताल में रहना और डिलिवरी के बाद उबरने में अधिक समय लगना, जैसी परेशानियां हो सकती है। इसके अलावा ब्‍लैडर में चोट जैसी दुर्लभ दिक्‍कत भी हो सकती है।

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कब पड़ती है सिजेरियन की जरूरत

कई बार प्रसव में जाने से पहले ही यह तय होता है कि महिला को सिजेरियन करवाने की आवश्‍यकता पड़ेगी। इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां और कारण उत्तरदायी होते हैं-

  • अगर आपका पिछला सिजेरियन 'क्‍लासिकल' वर्टिकल यूटेरिन इनसिजन हो। हालांकि यह बहुत दुर्लभ होता है। इसके अतिरिक्‍त आप इससे पहले भी सी-सेक्‍शन करवा चुकी हों।
  • अगर आपका केवल एक बार सिजेरियन हो चुका हो और वो भी हारिजोंटल यूटेरिन इनसिजन हो।
  • अगर आपको पहले भी यूटेरिन संबंधी किसी सर्जरी से गुजरना पड़ा हो ।
  • अगर आपके गर्भ में जुड़वां बच्‍चे हों। आमतौर पर इसके लिए सिजेरियन करवाने की आवश्‍यकता पड़ती है।
  • अगर आपके बच्‍चे का आकार सामान्‍य से काफी बड़ा हो। अगर आपको मधुमेह है अथवा आपका पिछला बच्‍चा सामान्‍य से बड़े आकार का हो।
  • अगर आपका बच्‍चा गर्भ में असामान्‍य पोजीशन में हो।
  • अगर आपको प्‍लेसेंटा प्रेविया हो।
  • अगर आपके गर्भद्वार पर किसी प्रकार की रुकावट हो, जिससे सामान्‍य डिलिवरी लगभग नामुमकिन हो जाए।
  • अगर आप एचआईवी-पॉजीटिव हों, और गर्भावस्‍था के करीब की गई रक्‍त जांच में यह बात सामने आए कि आपको वायरल लोड है।

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