
दुनिया की आबादी का लगभग 0.7 प्रतिशत हिस्सा सीलियक रोग से प्रभावित है। वहीं भारत में इस बीमारी से करीब 60 से 80 लाख लोगों के ग्रसित होने का अनुमान है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर भारत में प्रति 100 में एक व्यक्ति इस बीमारी से जूझ रहा है। सीलियक एक गंभीर ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, जो आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील लोगों में हो सकता है। आनुवंशिकी इस स्थिति के प्रसार में एक प्रमुख भूमिका निभाती है और इसलिए यह समस्या बच्चों में भी हो सकती है।
हार्ट केअर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, सीलियक बीमारी से पीड़ित लोग ग्लूटेन नामक प्रोटीन को पचाने में सक्षम नहीं होते हैं, जो गेहूं व जौ के आटे में पाया जाता है। ग्लूटेन इन रोगियों के प्रतिरक्षा तंत्र को छोटी आंत में क्षति पहुंचाने के लिए सक्रिय कर देता है। परिणामस्वरूप, रोगी भोजन से पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाते हैं और कुपोषित रहने लगते हैं, जिससे एनीमिया हो जाता है, वजन में कमी होती है और थकान रह सकती है।
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उन्होंने कहा, सीलियक रोगियों में वसा का ठीक से अवशोषण नहीं हो पाता है। गेहूं से एलर्जी, डमेर्टाइटिस हर्पेटिफॉर्मिस, मल्टीपल स्लेरोसिस, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार यानी एडीएचडी और कुछ व्यवहार संबंधी समस्या वाले रोगियों को ग्लूटेन फ्री आहार लेने की सिफारिश की जाती है। ग्लूटेन युक्त अनाजों में गेहूं, जौ, राई, जई और ट्रिटिकेल प्रमुख हैं। कुछ खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने या चिपकाने वाले एजेंट के रूप में ग्लूटेन मिला दिया जाता है। ऐसी हालत में व्यक्ति को ग्लूटेन फ्री फूड खाना चाहिए।
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आईजेसीपी के समूह संपादक डॉ. अग्रवाल ने बताया, सीलियक बीमारी वाले व्यक्ति को गेहूं, राई, सूजी, ड्यूरम, माल्ट और जौ जैसे पदार्थों से दूर रहना चाहिए। ग्लूटेन की मौजूदगी पता करने के लिए उत्पादों के लेबल को जांच लेना चाहिए। कुछ चीजें जिनमें ग्लूटेन हो सकता है, वे हैं- डिब्बाबंद सूप, मसाले, सलाद ड्रेसिंग, कैंडीज और पास्ता आदि। उन्होंने कहा, हालांकि, इसका यह मतलब नहीं कि भोजन में विविधता नहीं हो सकती है। चावल, ज्वार, क्विनोआ, अमरंथ, बाजरा, रागी और बकव्हीट जैसे विकल्पों का उपयोग संभव है।
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