नेत्रों से संबंधित रोगों के संदर्भ में लोगों के मध्य कई भ्रांतियां व्याप्त हैं, जिनका तथ्यों की रोशनी में निराकरण करना जरूरी है। सबसे बड़ा मिथ ये है कि मोतियाबिंद का ऑपरेशन सर्दियों में करवाना चाहिए। अगर किसी और मौसम में कराया जाए तो नुकसान हो सकता है। जबकि ये सिर्फ मिथ है। आधुनिक फेको विधि द्वारा ऑपरेशन थिएटर में किए गए मोतियाबिंद के ऑपरेशन जनवरी माह में किए जाएं या फिर जून माह में, इन दोनों के नतीजे एक जैसे ही होते हैं। देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां ठंड होती ही नहीं है और वहां साल भर ऑपरेशन किये जाते हैं। आइए जानते हैं ऐसे अन्य मिथ के बारे मेें—
मिथ: काला मोतियाबिंद एक लाइलाज बीमारी है।
तथ्य: हालांकि काला मोतिया (ग्लूकोमा) में दृष्टि की क्षीणता अपूर्णीय होती है, लेकिन अब काला मोतिया की रोकथाम के लिए काफी बेहतर दवाएं आ चुकी हैं। अगर नेत्र रोग विशेषज्ञ के संरक्षण में इलाज किया जाए, तो काला मोतिया के मरीजों की दृष्टि को लंबे समय तक बरकरार रखा जा सकता है। काला मोतिया के इलाज में लेसर तकनीक और ऑपरेशन का महत्वपूर्ण योगदान है।
मिथ: शुगर नियंत्रित करने से डाइबिटिक रेटिनोपैथी ठीक हो जाती है।
तथ्य: लंबे अर्से से डाइबिटीज से पीडि़त मरीजों के नेत्रों की धमनियां फट जाती हैं। इस कारण रक्तस्राव होता है, जो दृष्टि दोष उत्पन्न करता है। इस समस्या को मात्र ब्लडशुगर को नियंत्रित करने से ठीक नहीं किया जा सकता है। इस समस्या के इलाज के लिए नेत्र विशेषज्ञ द्वारा कई जांचें करायीं जाती हैं। जैसे आई एंजियोग्राफी, ओसीटी और अल्ट्रासाउंड आदि। लेसर तकनीक और सर्जरी के मिले-जुले उपयोग से इलाज किया जाता है।
मिथ: कंजंक्टिवाइटिस देखने से फैलता है।
तथ्य: प्राय: बारिश के मौसम में होने वाला यह नेत्र रोग छूत से फैलता है और इससे बचने के लिए उन वस्तुओं को नहीं छूना चाहिए, जिन्हें रोगी छूता है। यह रोग दूसरे व्यक्ति से आंखें मिलाने से नहीं फैलता। रोग के लक्षणों के सामने आने पर शीघ्र ही नेत्र विशेषज्ञ से इलाज करना चाहिए।
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