हमारी कॉलोनी में रहने वाली वर्षा तीसरी कक्षा की छात्रा है। लेकिन उसके बैग का वजन लगभग 6 किलो के आसपास होगा। जिस प्वाइंट पर उसे बस लेने आती है, वहां तक उसकी मम्मी बैग लेकर छोड़ने जाती हैं और स्कूल की छुट्टी के बाद बेटी के बस से उतरने से पहले ही वह बेटी को लेने उस प्वाइंट पर पहुंच जाती हैं। लेकिन स्कूल में न तो मम्मी होती हैं और न ही कोई सहारा देने वाला। फिर भी बच्चे किसी तरह क्लास तक पहुंचते हैं।
जिन बच्चों की क्लास फर्स्ट फ्लोर पर है उन बच्चों के बारे में सोचें! कैसे सीढ़ियां चढ़ने से उनकी सांस फूल जाती है। कंधे से बैग उतरने के बाद ही वह चैन की सांस लेते हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है, भारी भरकम बस्ते के बोझ से बच्चों को जो कष्ट दिया जा रहा है, उसका परिणाम क्या होगा?
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भारी बैग का बच्चों की सेहत पर असर
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों को भारी वजन के कारण पीठ दर्द और मांसपेशियों की समस्याओं व गर्दन दर्द से जूझना पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की हड्डियां 18 साल की उम्र तक नर्म होती हैं और रीढ़ की हड्डी भारी वजन सहने लायक मजबूत नहीं होती। स्कूल में पढ़ने वाले 60 प्रतिशत बच्चे जोड़ों में दर्द, 30 प्रतिशत बच्चे कमर दर्द व 58 प्रतिशत बच्चे हड्डी रोग से पीड़ित हैं।
भारी बैग के चलते बच्चों को रीढ़ की हड्डी के नुकसान के साथ-साथ फेफड़ों की समस्याएं होने की संभावनाएं भी होती हैं और इससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं। साथ ही भारी स्कूल बैग लेने से हाथों में झुनझुनी और कमजोरी होने लगती है। इससे बच्चों की नसें भी कमजोर हो जाती है। इसके अलावा आजकल बच्चों में एक कंधे पर बैग को टांगे रखने का फैशन है। जिसके चलते एक कंधे पर बैग टांगे रहने से वन साइडेड पेन शुरू हो जाता है।
क्या कहता है शोध
हाल ही में हुए एक शोध ने इस तथ्य को पुख्ता किया कि बस्ते का भारी बोझ स्वास्थ्य पर खराब असर डालता है। इसमें कहा गया है कि भारी बस्ता उठाने वाले सात से 13 वर्ष की आयुवर्ग के 68 प्रतिशत स्कूली बच्चों को पीठ दर्द की शिकायत हो सकती है या उनको कूबड़ निकल सकता है। एसोचैम की स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष बी के राव के अनुसार इन बच्चों को स्लिप डिस्क, स्पॉंडिलाइटिस, पीठ में लगातार दर्द, रीढ़ की हड्डी का कमजोर होने और कूबड़ निकलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
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वर्ष 2014 में हुए एक शोध के अनुसार भारत में बच्चों के स्कूल बैग का औसत वजन 8 किलो होता है। साल में 200 दिन तक स्कूल खुलते हैं। स्कूल जाने और स्कूल से वापस आने में जो वजन बच्चा अपने कंधों पर उठाता है, अगर इसको आधार मानकर गणना की जाए तो औसतन एक बच्चा साल में 3200 किलो वजन उठाता है, जो एक ट्रक के वजन के बराबर है। कक्षा छह के बच्चे को अपने बैग में 18 से 19 कापियां व किताबें ले जानी पड़ती हैं। पानी की बोतल और लंच बॉक्स का वजन अलग से होता है।
इस समस्या से कैसे बचें
- स्कूल जाने वाले किसी भी छात्र के बैग का वजन बैग का वजन बच्चे के वजन बच्चे के वजन के 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
- बच्चे बस्ते में बेकार का बोझ क्यों उठाएं? कई किताबें ऐसी होती हैं जिनकी साल भर पढ़ाई नहीं होती। इसलिए ऐसी किताबों को ले जाने से बचना चाहिए।
- स्कूलों में छात्रों को कबर्ड और लॉकर की सुविधा दें, जिससे वह जरूरी किताबें ही घर ले जाएं और शेष स्कूल के लॉकर में ही रखी रहें।
- इसके अलावा
- बच्चों में बचपन से ही एक्सरसाइज और योग की आदत डालें।
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