बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में इंसेफ्लाइटिस के कारण बच्चों की मौत का आंकड़ा 136 तक पहुंच गया है। मरने वाले ज्यादातर बच्चे 1 साल से 8 साल के हैं और सभी गरीब परिवारों से हैं। कुछ चिकित्सक मान रहे हैं कि ये मौतें लीची खाने से हुई हैं, जबकि कुछ इसे 'चमकी बुखार' का प्रकोप बता रहे हैं। अस्पताल में मौजूद चिकित्सक बता रहे हैं कि बच्चों में 'एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम' के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। इंसेफ्लाइटिस एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जिसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन आ जाती है। चमकी बुखार के मुख्य लक्षण तेज बुखार, उल्टी, जी मिचलाना, बेहोशी और शरीर में झटके लगना है।
चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों को बुखार आने के 1-2 दिन में ही उनकी हालत बिगड़ने लगती है और कई बार अस्तपाल तक पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो जाती है। इसका एक कारण यह है कि अज्ञात कारणों से बच्चों के शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा बहुत अधिक घट जा रही है, जिसके कारण उनके अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं।
क्या लीची बन रही है मौत की वजह?
देखने में आया है कि चमकी बुखार से ज्यादातर उन इलाकों के बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, जो इलाके लीची की पैदावार के लिए जाने जाते हैं। मुजफ्फरपुर में होने वाली मौतों का कारण लीची ही है, यह बात अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुई है और न ही चिकित्सक इस पर एक मत हैं। 'चमकी बुखार' बिहार के लिए नया नहीं हैं। इससे पहले के सालों में भी यहां इस बुखार के कारण सैकड़ों बच्चों की जानें गई हैं। 2014 में इस बुखार से बच्चों की मौत के बाद वैज्ञानिकों की एक टीम शोध के लिए बिहार पहुंची थी। शोध में वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे तथ्य रखे थे, जिससे पता चलता है कि भले ही मौत की वजह कोई भी हो, मगर लीची का सेवन कई बार जानलेवा हो सकता है। 'द लैंसेंट' नामक पत्रिका में 2017 में लीची और इसके कारण होने वाली मौतों के बारे में कई लेख छपे थे। इनमें बताया गया था कि लीची में 'हाइपोग्लायसिन ए' और 'मेथिलीन सायक्लोप्रोपाइल ग्लायसीन' नामक दो तत्व पाए जाते हैं। सुबह-सुबह अगर बिना कुछ खाए लीचियों का सेवन किया जाए, तो ये जानलेवा भी हो सकती हैं।
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सुबह-सुबह लीची क्यों है जानलेवा?
लीची का सुबह-सुबह खाली पेट सेवन जानलेवा हो सकता है। दरअसल जब कोई व्यक्ति खाली पेट में लीची खाता है, तो लीची में मौजूद 'हाइपोग्लायसिन ए' और 'मेथिलीन सायक्लोप्रोपाइल ग्लायसीन' नामक तत्व उसका ब्लड शुगर बहुत ज्यादा घटा देते हैं। मेडिकल की भाषा में इसे 'हाइपोग्लाइसीमिया' कहते हैं। इसका खतरा तब और बढ़ जाता है जब लीचियां पूरी तरह पकी न हों, यानी हल्की कच्ची हों। ब्लड शुगर के अचानक गिरने से व्यक्ति की तबीयत बिगड़ती है और गंभीर स्थिति में उसकी मौत हो जाती है।
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बिहार के मुजफ्फरपुर में क्यों हुईं मौतें
बिहार में होने वाली मौतों के पीछे लीची वजह है या नहीं, इसका पता तो बाद में जांच के द्वारा लगाया जाएगा। मगर एक बात तय है कि मरने वाले ज्यादातर बच्चों में ऐसे गरीब परिवारों के बच्चे शामिल हैं, जिनके पास खाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। ज्यादातर परिजन बता रहे हैं कि बच्चों ने रात में कुछ नहीं खाया था और सुबह उनकी तबीयत खराब हो गई। मरीजों की हालत लगातार खराब हो रही है और मरने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्वास्थ्य विभाग ने लोगों को ये सलाह दी है कि बच्चों को रात में भरपेट भोजन करवाएं और कच्ची या अधपकी लीचियां न खिलाएं। बुखार आने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें और घबराएं नहीं। बिहार इस समय मेडिकल इमरजेन्सी के दौर से गुजर रहा है, इसलिए परिजनों को इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
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