हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) द्वारा आयोजित पहले डिजिटल कोविड-19 परफेक्ट हेल्थ मेला 2020 में सोमवार (1 जून 2020) को ऑनलाइन पैनल डिस्कशन के दौरान वन हेल्थ: कोविड-19 (जूनोटिक रोग) पर चर्चा हुई। ऑनलाइन चर्चा में विशेषज्ञों ने कोरोनो वायरस के संचरण में जानवरों की भूमिका सहित विभिन्न विषयों पर जानकारी दी; केरल में निपाह का खतरा; कोरोना वायरस के खिलाफ टीका बनाने में बाधाओं; सहित अन्य पहलुओं पर चर्चा हुई। इस दौरान देश के जाने-माने विशेषज्ञों ने अपनी बातें रखी।
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. ओमेश कुमार भारती ने कहा, "कोरोना वायरस के खिलाफ टीका विकसित करना एक ज़रूरी मुद्दा है और हमें कोविड 19 के खिलाफ आने वाले टीके की प्रतीक्षा करने के बजाय तत्काल सुरक्षात्मक उपाय करने की आवश्यकता है।"
डॉ. रवींद्र खेमभवी ने कहा, "भारत ने SARS-CoV-2 पर विशेष ध्यान देने के साथ कोरोना वायरस संक्रमण की महामारी की चुनौतियों को दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले बेहतर तरीके से कंट्रोल किया। भारत को अभी भी कोरोना के मामलों और मौतों के नियंत्रण को लेकर एक लंबा रास्ता तय करना है। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्षेत्रों और लोगों के प्रबंधन, उपचार की व्यवस्था और होम क्वारेंटाइन में कई चुनौतियां हैं, क्योंकि इससे प्रभावित लोगों के संपर्क का भी तभी पता चलता है।"
डॉ. रवींद्र ने यह भी कहा कि, हमें यह समझना चाहिए कि अब हमें कोरोनो वायरस के साथ रहना है, और हमें इसे सोशल डिस्टेंसिंग और हाथ धोने जैसे प्रोटोकॉल का पालन करके धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लाना होगा। ऑनलाइन चर्चा इस बात पर केंद्रित रही कि रोग के प्रकोप से अनुभव लेकर कैसे पता लगाएं कि अन्य क्षेत्रों में चमगादड़ से वायरस के प्रसार की संभावना है। यह पता लगाने के लिए चमगादड़, सूअर, कुत्ते और घोड़ों की लगातार निगरानी आवश्यक है। यह मनुष्यों और जानवरों दोनों के स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करेगा।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली के पूर्व निदेशक डॉ. एम.पी. यादव ने कहा, "अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) और येलो फीवर दोनों वायरल रोग हैं। ASF एक जूनोटिक बीमारी नहीं है और इसके कारण मनुष्यों को कोई खतरा नहीं है। हालांकि, असम और अरुणाचल प्रदेश में हाल ही में सुअरों में पाए जाने वाले इस रोग के प्रमाण मिले हैं। अब तक, दुनिया में एएसएफ के खिलाफ कोई भी टीका उपलब्ध नहीं है। राहत की बात है कि, भारत में यलो फीवर के मामले नहीं हैं। हालांकि, इस स्थिति वाले देशों की यात्रा करते समय आवश्यक सावधानी बरती जानी चाहिए और हमें इस बीमारी को लेकर देश में पहले से ही सतर्कता बरतनी चाहिए।
डिपार्टमेंट ऑफ वेटनरी पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर और एचओडी डॉ. रवीन्द्र ज़ेन्डे ने कहा, "निपाह वायरस संक्रमण दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में घातक दर के साथ एक उभरता हुआ रोग है। भारत में, यह बीमारी 2001, 2007 और 2018 में पश्चिम बंगाल और केरल में हुई थी। जागरूकता और सावधानियां किसी भी बीमारी के मामले में ज़रूरी हैं और यहां तक कि कोरोना वायरस के मामले में भी ये फैक्टर सही हैं।"
कार्यक्रम का संचालन कर रहे पद्मश्री अवार्डी डॉ. के.के. अग्रवाल (अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया) ने कहा, "वन हेल्थ एक कॉन्सेप्ट है जो एक ही छत के नीचे मनुष्यों, जानवरों, पौधों और पर्यावरण (वायु, जल, पृथ्वी) को शामिल करता है। इस प्रकार इन सभी तत्वों के बीच रोगों की उत्पत्ति और प्रसार के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है।"
यह कार्यक्रम मिलेनियम इंडिया एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा वीएमएमसी और एसजेएच, नई दिल्ली; एसजीएसएमसी और केईएमएच, मुंबई; एमवीसी, मुंबई; और जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के सहयोग से आयोजित किया गया था।
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