चीनी और नमक में माइक्रोप्लास्टिक मिलने के बाद FSSAI हुआ एक्टिव, सेफ फूड्स को लेकर बनाएगा प्रोटोकॉल

FSSAI ने भारतीय खाद्य पदार्थों में बढ़ते माइक्रोप्लास्टिक को लेकर चिंता जाहिर की है। साथ ही, इससे बचने के लिए FSSAI की ओर से एक नई परियोजना शुरु की गई है।
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चीनी और नमक में माइक्रोप्लास्टिक मिलने के बाद FSSAI हुआ एक्टिव, सेफ फूड्स को लेकर बनाएगा प्रोटोकॉल

Microplastic Contamination in Food: खाद्य नियामक FSSAI ने भारतीय आहार में होने वाली मिलावट पर सख्त कदम उठाते हुए, एक परियोजना शुरु की है। इस परियोजना में खाने की चीजों में माइक्रोप्लास्टिक यानी प्लास्टिक के छोटे कणों की मिलावट का पता लगाने का काम किया जाएगा। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने खाने की वस्तु में माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती मिलावट को लेकर चिंता जाहिर की है। साथ ही, इस समस्या से निपटने के लिए देश की अन्य एंजसियों के साथ मिलकर परियोजना शुरु की है। इस परियोजना में चीनी, नमक व अन्य चीजों में माइक्रोप्लास्टिक (microplastic) के कणों का पता लगाया जाएगा। दरअसल, खाने के चीजों में होने वाली मिलावट को रोकने के लिए इस तरह के कदम उठाए गए हैं। माइक्रोप्लास्टिक के सेवन से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का खतरा बना रहता है। इससे व्यक्ति को गंभीर बीमारियों के होने का जोखिम अधिक होता है।   

नमक और चीनी के सैंपल्स में मिला माइक्रोप्लास्टिक   

चीनी और नमक में प्लास्टिक के छोटे कणों (microplastic) की मिलावट करना बेहद आसान होता है। हाल ही में खाद्य एवं कृषि संगठन ने एक रिपोर्ट में चीनी और नमक में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति रेखांकित किया है। रिपोर्ट के अनुसार नमक और चीनी के सैंपल्स को लेकर जब टेस्ट किया गया तो पाया  कि इनमें माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है। टेस्ट में खाने की चीजों में माइक्रोप्लास्टिक पैलेट्स, फिल्म, फाइबर और फ्रेगमेंट के रूप में मौजूद थे। इनमें प्लास्टिक के छोटे कण 0.1 एमएम से लेकर 5 एमएम तक मिले हैं।  

fssai microplastic project

खाद्य उत्पादों में माइक्रो और नैनो-प्लास्टिक का पता लगाने के लिए शुरु किया प्रोजेक्ट 

खाने की चीजों में माइक्रोप्लास्टिक के बढ़ते जोखिम और उसको कम करने के लिए इस प्रोजेक्ट को मार्च से शुरु किया गया है। इसमें माइक्रो और नैनो-प्लास्टिक का पता लगाने के लिए विश्लेषणात्मक तरीकों का उपयोग किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट में भारतीय खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक का एक डेटा तैयार किया जाएगा। इससे खाने की चीजों में माइक्रोप्लास्टिक की मिलावट की सीमा को समझने में मदद मिलेगी। साथ ही, भारतीयों की सेहत और मिलावट को नियंत्रित करने में मदद करेगी। 

किन रिसर्च सेंटरों की मदद से चलेगा अभियान 

इस प्रोजेक्ट में देश भर के बड़े रिसर्च सेंटर्स की मदद ली जाएगी। जानकारी के अनुसार इस प्रोजेक्ट में सीएसआईआर-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (लखनऊ), बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (पिलानी) और आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (कोच्चि) को भी शामिल किया गया है। 

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भारतीय खाद्य पदार्थों में बढ़ती मिलावट और माइक्रोप्लास्टिक के स्तर को समझने के लिए सरकार की ओर से यह परियोजना शुरु की गई है। इसके द्वारा प्राप्त आंकड़ों की मदद से लोगों की सेहत पर खिलवाड़ करने वाले खाद्य पदार्थों को रोकने में मदद मिलेगी। साथ ही, लोगोंं को स्वस्थ भोजन प्रदान करने का लक्ष्य पूरा हो पाएगा।  

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