प्रेग्नेंसी का समय किसी भी महिला के जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। वह इस समय के हर क्षण को खुलकर जीना चाहती है। साथ ही वह चाहती है कि इस दौरान किसी तरह की परेशानी न हो लेकिन महिलाओं के शरीर में होने वाले कई हार्मोनल परिवर्तन के कारण कई तरह की समस्याएं होती हैं। कई बार प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने में महिलाओं को सांस लेने में काफी दिक्कतें आती है। साथ में थकान भी महसूस होती है। ऐसे में इसे आम परेशानी समझकर इग्नोर नहीं करना चाहिए। ये अस्थमा के लक्षण भी हो सकते हैं। दरअसल अस्थमा फेफड़ों की एक एक लॉन्ग इंफ्लेमेटरी बीमारी है, जिसमें सूजन के कारण एयरवेज सिकुड़ जाते हैं। इस अवस्था में छाती में दर्द, सांस फूलना और खांसी की परेशानी होती है। ज्यादा गंभीर होने पर यह अटैक बार-बार आता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इसे कंट्रोल नहीं किया जा सकता है। कई प्रयासों की मदद से इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
प्रेग्नेंसी में अस्थमा के कारण (Cause of Asthma in Pregnancy)
दरअसल गर्भावस्था के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। साइनस और बंद नाक जैसी परेशानियों के लिए एस्ट्रोजन उत्तरदायी है। वहीं सांस लेने में तकलीफ या सांस फूलने का कारण प्रोजेस्टरोन का उत्पादन माना जाता है। दरअसल प्रोजेस्टरोन के अधिक उत्पादन से सांस की गति बढ़ जाती है, जिससे सांस लेन में कठिनाई होती है। इसके कारण महिलाओं को गर्भावस्था में काफी परेशानी होती है। साथ ही अगर इसे कंट्रोल नहीं किया गया तो, इसका प्रभाव होने वाले शिशु पर भी पड़ सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान अस्थमा होने पर इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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गर्भावस्था में अस्थमा के लक्षण (Symptoms of Asthma)
1. सर्दी-खांसी
2. सांस फूलना
3. सिर दर्द
4. छाती में दर्द
6. सीने में जकड़न
इसके अलावा अगर आपको पहले से अस्थमा है तो दवाईयों और इंहेलर लेने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए।
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अस्थमा का शिशु पर प्रभाव
अस्थमा का प्रभाव कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे किसी ऐसी चीज के संपर्क आने जिससे लक्षण बढ़ सकते हैं , आपके अटैक्स की अवधि और आपका शरीर उसके प्रति कैसे रिएक्ट करता है। दरअसल जब अस्थमा का अटैक आता है, तो वह आपके ब्रोंकाइल रूट (सांस की नली) को संकुचित कर देता है, जिससे आपके फेफड़ों में जाने वाली हवा कम हो सकती है। ऐसे मामलों में खून में मौजूद ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और शरीर में मौजूद सभी सेल्स हिपॉक्सिक (जिन्हे कम ऑक्सीजन मिल रहा है) बन जाते हैं, जिसके कारण शिशु तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इससे आपके बच्चे पर प्रभाव पड़ सकता है और लंबे समय ऐसी स्थिति में रहने के कारण प्री-एक्लेमप्सिया, प्रेग्नेंसी से होने वाला हाइपरटेंशन, यूटेराइन हेमरेज, प्रीटम लेबर, प्रीमैच्योर बेबी और जन्म दोष जैसी परेशानी हो सकती है। बीमारी पर नियंत्रण करके ऐसी परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है।
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उपचार
1. तापमान और नमी के बदलाव के कारण भी अटैक आ सकता है, तो आपने आपको हमेशा ऐसे वातावरण से सुरक्षित रखने की कोशिश करें।
2. स्वस्थ और सेहत से भरपूर आहार लेने की कोशिश करें।
3. धूल और डस्ट के संपर्क में आने से बचें।
4. गर्भवती होने पर कम से कम साइड इफेक्ट वाली थेरेपी लेने की कोशिश करें।
5. साथ ही बच्चे के मूवमेंट पर भी ध्यान रखें ताकि शिशु को उचित मात्रा में ऑक्सीजन पहुंच सके। अगर आपको कोई आशंका हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
6. अगर आपको पहले से अस्थमा है, तो डॉक्टर की सलाह पर दवाईयां लें।
7. अगर आप ज्यादा थकान महसूस करने लगे तो, तुरंत जहां है वहीं बैठ जाएं और पहले अपने आपको रिलेक्स करने की कोशिश करें।
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सावधानियां
गर्भावस्था के दौरान साफ-सफाई का काम करने से बचें। साथ ही अगर कोई अन्य व्यक्ति सफाई कर रहा हो, तो वहां न रहें। ज्यादा धूल और डस्ट वाली जगह पर न रहें। घर का सोफा कवर और चादर सप्ताह में एक बार जरूर बदलें। पालतू जानवर या उनके बालों के संपर्क में आने से बचें। खासकर रात में अतिरिक्त सावधानी बरतने की कोशिश करें । थोड़ी भी परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। साथ में थोड़ी बहुत ब्रीथिंग एक्सरसाइज भी करने की कोशिश करें। इससे आपको सांस फूलने की समस्या में काफी मदद मिलेगी।