कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pendamic) तेजी से दुनियाभर की आबादी को अपना निशाना बना रही है। विश्व भर में कोरोना से 3 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। अब 2 लाख से ज्यादा मौतें भी हो चुकी हैं। भारत में भी महाराष्ट्र समेत कई राज्यों की स्थिति खराब है। ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी (जिसे एंटीबाडी थेरेपी भी कहते हैं) की चर्चा ज्यादा हो रही है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कोरोना संक्रमित पेशेंट ठीक हो रहे हैं। लेकिन इन दावों में कितनी सच्चाई है? इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे।
1918 में पहली बार प्लाज्मा थेरेपी का हुआ था प्रयोग
प्रथम विश्व युद्ध के बाद पहली बार 1918 में स्पेनिश फ्लू के इलाज के तौर पर किया गया था। इसके बाद लगातार संक्रमितों के लिए इस थेरेपी का प्रयोग किया जाने लगा था। फिलहाल, कोरोना संक्रमितों को भी अब प्लाज्मा थेरेपी (Plasma Therapy) से ठीक करने का दावा किया जा रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि, जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से ठीक हो जाता है तो उस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता थोड़े और लंबे वक्त के लिए मजबूत हो जाती है। इससे इम्युनिटी सेल्स से प्रोटीन उत्सर्जित होता है, जो प्लाज्मा में पाए जाते हैं, जो आवश्यक होने पर रक्त को थक्का बनाने में मदद करते हैं।
कई विशेषज्ञ दावे कर रहे हैं कि प्लाज्मा थेरेपी से एक साथ कई मरीजों का इलाज किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि इस थेरेपी से उन लोगों का तत्काल इलाज किया जाएगा, जिन्हें सबसे अधिक खतरा है।
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प्लाज्मा थेरेपी को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के दावे
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के मुताबिक, नोवेल कोरोना वायरस (COVID-19) से निपटने के लिए आज भी देश में क्या दुनियाभर में कोई थेरेपी नहीं है। यह अभी एक्सपेरिमेंटल स्टेज में है, इसका कोई प्रमाण नहीं है कि इसका इलाज के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। अभी इसे एक्सपेरिमेंटल थेरेपी के रूप में ही देखा जा रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एक नेशनल स्टडी को लांच किया है ताकि, इस थेरेपी की एक्यूरेसी के बारे में पता लगा सके। इसलिए इस थेरेपी का प्रयोग तब तक ट्रायल के रूप में करें जब तक कि यह आईसीएमआर और अन्य किसी संस्था द्वारा प्रमाणित न हो जाए।
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जानलेवा हो सकती है प्लाज्मा थेरेपी
लव अग्रवाल के अनुसार, ये जो प्लाज्मा थेरेपी है, अगर इसको हम निर्धारित दिशा निर्देशों के आधार पर इस्तेमाल न करें तो इससे जानलेवा स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसलिए जब तक इस थेरेपी की प्रभावशीलता सिद्ध नहीं है, तब तक इस पर किसी भी तरह का दावा किया जाना अनुचित है। आईसीएमआर की गाइडलाइन में कहीं भी इस प्रकार का प्रयोग गैर कानूनी है। और दूसरी ओर, इससे पेशेंट की जान को खतरा भी उत्पन्न हो सकता है।
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