
आज हिंदुस्तान को यंगिस्तान के भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज भारत में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की इस यंगिस्तान में ही सबसे अधिक लोग मानिसक रोग से ग्रस्त हैं। आज भारत में लगभग एक अरब की आबादी है जिसमें से लगभग छह करोड़ लोग मानसिक विकार से ग्रस्त हैं। ये आश्चर्यजनक है क्योंकि यह संख्या दक्षिण अफ्रीका की कुल आबादी से भी अधिक है।
बीते दिनों को लोकसभा में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे. पी. नड़्डा ने नेशनल कमीशन ऑन मैक्रोइकॉनामिक्स एंड हेल्थ 2015 की रिपोर्ट का हवाला देता हुए बताया कि साल 2015 तक करीब 1-2 करोड़ भारतीय (कुल आबादी का एक से दो फीसदी) गंभीर मानसिक विकार के शिकार हैं, जिसमें सिजोफ्रेनिया और बाइपोलर डिसआर्डर प्रमुख हैं और करीब 5 करोड़ आबादी (कुल आबादी का पांच फीसदी) सामान्य मानसिक विकार जैसे अवसाद और चिंता से ग्रस्त है।
डब्ल्यूएचओ भी दे चुका है चेतावनी
गौरतलब है कि भारत में मानसिक रोग के प्रति विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी चेतावनी दे चुका है। 2011 में जारी की गई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने स्वास्थ्य बजट का महज 0.06 फीसदी हिस्सा ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है जो कि बांग्लादेश से भी कम है। बांग्लादेश लगभग 0.44 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च करता है।
दुनिया के अधिकतर विकसित देश अपने बजट का लगभग 4 फीसदी हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी शोध, अवसंरचना, फ्रेमवर्क और प्रतिभाओं को इकट्टा करने पर खर्च करते हैं। सरकार ने नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (एनआईएमएचएएनएस) बेंगलुरु के माध्यम से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराया था, ताकि देश में मानसिक रोगियों की संख्या और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग के पैर्टन का पता लगाया जा सके।
यह सर्वेक्षण 1 जून 2015 से 5 अप्रैल 2016 के बीच कराया गया था जिसमें कुल 27,000 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था। सर्वेक्षण के अनुसार भारत में मानसिक समस्याओं का समाधान करने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है।
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