डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है क्योंकि इसकी वजह से शरीर में होने वाले ढेर सारे फंक्शन्स प्रभावित होते हैं। डायबिटीज होने का मुख्य कारण शरीर में बनने वाले इंसुलिन की कमी है जिसकी वजह से ब्लड में शुगर का लेवल बढ़ने लगता है और शरीर में कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं। अगर शरीर में इंसुलिन पूरी तरह बनना बंद हो जाए तो शरीर की कोशिकाओं को काम करने के लिए पर्याप्त शुगर या ग्लूकोज नहीं मिल पाएगा। इस स्थिति को डायबिटिक कीटोएसिडोसिस कहते हैं। ये डायबिटीज की एक खतरनाक स्टेज है क्योंकि इसकी वजह से जान भी जा सकती है।
शरीर में मौजूद लाखों कोशिकाओं के सहारे ग्लूकोज हमारे सभी अंगों तक पहुंचता है, जिससे अंगों को काम करने के लिए ऊर्जा मिलती है। इन्हीं कोशिकाओं के सहारे अन्य पोषक तत्व भी शरीर के सभी अंगों तक पहुंचते हैं। शरीर एक विशेष केमिकल बनाता है जो कोशिकाओं में इस शुगर को पहुंचाने में मदद करता है। इसी केमिकल को इंसुलिन कहते हैं। जब शरीर में इंसुलिन पूरी तरह बनना बंद हो जाता है, तो शुगर कोशिकाओं के सहारे शरीर के अंगों तक पहुंचने के बजाय रक्त में घुलने लगता है। इसी वजह से ब्लड में शुगर का लेवल बढ़ता जाता है और परेशानी भी बढ़ती जाती है। अगर कोशिकाओं को काम करने और जीवित रहने के लिए पर्याप्त शुगर या ग्लूकोजन नहीं मिल पाएगा, तो इससे कई अंग खराब हो सकते हैं।
हमारे ब्लड से अनुपयोगी और अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने और उसकी सफाई करने का काम किडनी करती है। जब ढेर सारा शुगर हुआ खून किडनी तक पहुंचता है, तो वो इसे भी फिल्टर करती है और कुछ मात्रा में शुगर ब्लड से अलग हो जाता है जो यूरिन के रास्ते से शरीर से बाहर निकल जाता है। मगर किडनी पूरी तरह शुगर को बाहर नहीं निकाल सकती क्योंकि शरीर के फंक्शन के अनुसार शुगर कोई अपशिष्ट पदार्थ नहीं बल्कि शरीर के लिए जरूरी तत्व है।
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जब शरीर की कोशिकाएं उसे पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज उपलब्ध नहीं करवा पाती हैं, तो शरीर फैट मांसपेशियों से फैट को तोड़कर एनर्जी चुराने लगता है। इस काम के लिए शरीर विशेष तत्व बनाता है जिन्हें कीटोन्स और फैटी एसिड कहते हैं। शरीर जब मांसपेशियों से फैट को तोड़ना शुरू करता है, तो इन दोनों तत्वों के रिसाव के कारण ब्लड में भी कीटोन्स और फैटी एसिड घुलने लगते हैं, जिसके कारण शरीर में एक तरह का केमिकल इंबैलेंस बन जाता है। यानि शरीर में मौजूद कई केमिकल्स एक साथ रिलीज होने से शरीर खतरनाक स्टेज पर पहुंच जाता है। इसी स्टेज को चिकित्सा की भाषा में डायबिटिक कीटोएसिडोसिस कहते हैं।
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डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के लक्षणों का पता चलते ही चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। खून की जांच और कीटोन टेस्ट द्वारा इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है। कीटोन के टेस्ट को आसानी से किट की मदद से घर पर भी किया जा सकता है। अगर डायबिटिक कीटोएसिडोसिस गंभीर स्थिति में है, तो इसका तत्काल इलाज होना चाहिए नहीं तो मरीज की जान भी जा सकती है। इसके इलाज के लिए चिकित्सक मरीज को बाहर से इंसुलिन देते हैं और नसों में ग्लूकोज चढ़ाया जाता है। इसके अलावा शरीर में मौजूद केमिकल्स पर नजर रखी जाती है।
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