
छोटे बच्चे अक्सर खाना खाने के दौरान नाक, मुंह सिकोड़ते हैं। उन्हें जब भी खाना दिया जाता है तो उनका मन कुछ और खाने का करता है या फिर वह खाने में कभी सब्जी खाने से मना करेंगे तो कभी दाल या अन्य चीजों से दूर भागते हैं। कई बार तो दूध पीने को लेकर भी बच्चे नखरे दिखाते हैं। इसके बदले वह फास्ट फूड या बाजार की चीजों को खाना ज्यादा पसंद करते हैं।
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इन सबके पीछे घर के बड़े-बुजुर्ग बच्चे की मां को दोषी ठहराते हैं या फिर उन्हें इस बात का डर सताता है कि कहीं उनके लाडले को कोई बीमारी तो नही हुई है। मगर साइंस की थ्योरी इन बातों से बिल्कुल अलग है। वह बच्चों के गलत खान-पान के पीछे मां की परवरिश को जिम्मेदार नही मानता।
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एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि बच्चों की खाने की आदत उनके जींस पर निर्भर करता है न कि उनकी परवरिश। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने करीब 2000 जुड़वा बच्चों के खान-पान की आदतों पर अध्ययन किया। इनमें ज्यादातर डेढ साल की उम्र के थे। अध्ययन में बच्चों ने अलग-अलग खाद्य पदार्थों की ओर अपनी दिलचस्पी दिखाई। चाइल्ड साइकोलॉजी और चाइल्ड साइकिएट्री जर्नल के मुताबिक, जन्म के बाद बच्चे अलग-अलग तरह के खान-पान के संपर्क में आते हैं जिनमें से वह कुछ खाद्य पदार्थों को अपनी आदत बना लेते हैं लेकिन कुछ चीजों से वह दूर भागते हैं।
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यह अध्ययन जुड़वा बच्चों पर इसलिए किया गया क्यों कि उनकी परवरिश एक जैसी हो रही होती है, जिससे यह बात साबित हो सके कि खाने के प्रति बच्चों का कतराना गलत परवरिश नही है। खाने से कतराने की यह आदत नियोफोबिया कहलाती है। अध्ययन में एक बात और सामने आई कि बच्चों की ये आदतें उम्र के साथ बदलती भी हैं, जैसे-जैसे वह बड़े होंगे उनके खान-पान की आदतों में भी बदलाव आएगा, और वह खाने से दूर नही भागेंगे।
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