विश्व कुष्ठ दिवस (World Leprosy Day) दुनिया भर में कुष्ठ रोग को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने और इसके रोकथाम के लिए मनाया जाता है। ये दिन फ्रांस के समाजसेवी राउल फोलेरो द्वारा 1954 में स्थापित किया गया, इसका उद्देश्य कुष्ठ रोग (जिसे हेन्सन रोग कहा जाता है) के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को इस प्राचीन बीमारी के बारे में बताना है, जिसका आज आसानी से इलाज हो सकता है। वहीं आज भी दुनिया भर में कई लोग बुनियादी चिकित्सा देखभाल तक नहीं पहुंच पाएं है। ऐसे में सरकार संमेत आम आदमी की भी इसके रोकथाम के प्रति एक बड़ी जिम्मेदारी बनती है। आइए आज इस दिन हम जानते हैं इस रोग को लेकर कुछ मिथकों के बारे में, जिस पर लोगों को बिना तथ्य जाने भरोसा नहीं करना चाहिए।
कुष्ठ रोग से जुड़े 5 मिथक
मिथक 1: कुष्ठ रोग संक्रामक है
कुष्ठ रोग (हैनसन रोग) को अक्सर लोग एक फैलने वाली बीमारी के रूप में देखते हैं, पर ये इतनी आसान बीमारी नहीं है कि एक दूसरे से फैलने लगे। वास्तव में 95% वयस्कों को ये नहीं हो सकता है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली उन बैक्टीरिया से लड़ सकती है जो एचडी का कारण बनते हैं।
टॉप स्टोरीज़
मिथक 2 : कुष्ठ रोग के कारण हाथ और पैर की उंगलियां गिर जाती हैं
कुष्ठ रोग के कारण हाथ और पैर की उंगलियां गिर नहीं जाते हैं। बैक्टीरिया जो कुष्ठ रोग का कारण बनता है, उंगलियों और पैर की नसों पर हमला करता है और उन्हें सुन्न कर देता है। इस तरह इन सुन्न भागों पर जलन और कटने पर किसी का ध्यान नहीं जा सकता है। इससे संक्रमण और स्थायी क्षति हो सकती है, जो बीमारी के उन्नत चरणों में होता है।
इसे भी पढ़ें : World Leprosy Day 2020: कुष्ठ रोग क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और बचाव
मिथक 3: पुराना वाला कुष्ठ रोग जैसा आज का कुष्ठ रोग नहीं है
पुराने जमाने में होने वाला कुष्ठ रोग आधुनिक कुष्ठ रोग के समान नहीं है। पुराने और धार्मिक ग्रंथों में पाए जाने वाले कुष्ठ रोग में चकत्ते और पपड़ीदार तक होता था, जो त्वचा में सूजन तक की स्थितियों को वर्णित करता था। जिसे बहुत ज्यादा संक्रामक माना जाता था। जो हैनसेन की बीमारी के लिए सही नहीं है और हैनसेन की बीमारी के कुछ सबसे स्पष्ट लक्षण भी नहीं हैं, जैसे कि अंधापन और दर्द और संक्रमण। यहां तक की इसके बारे में ये भी कहा जाता था कि ये व्यक्ति के कपड़े और कमरों से भी फैल सकता है। जबकि अब कुष्ठ रोग ऐसा नहीं रहा है।
मिथक 4: कुष्ठ रोग एक पाप या अभिशाप का परिणाम है
कुष्ठ रोग धीमी गति से बढ़ने वाले जीवाणु माइकोबैक्टीरियम लेप्राई के कारण होता है और यह किसी के व्यवहार या अभिशाप का परिणाम नहीं है। पुराने जमाने के लोग मानते थे कि यो रोग उन्हीं लोगों को होता है, जिन्होंने बुरे कर्म किए होते हैं। जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। आज लोगों को ये बात समझने की जरूरत है कि इसके पीछे एक साइंस है।
मिथक 5: जिन लोगों को कुष्ठ रोग है, उन्हें स्वस्थ लोगों से अलग विशेष घरों में रहना चाहिए
जिन लोगों को कुष्ठ रोग है, उन्हें स्वस्थ लोगों से अलग विशेष घरों में रहने की आवश्यकता है। ये सोच पूरी तरह से गलत है। जिन लोगों को कुष्ठ रोग के साथ एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया जा रहा है वे अपने परिवार और दोस्तों के बीच एक सामान्य जीवन जी सकते हैं और काम या स्कूल में भाग लेना जारी रख सकते हैं। इसलिए ऐसा सोचना पूरी तरह से गतल है इसलिए कुष्ठ रोगियों के साख अच्छे से पेश आएं। वहीं आप आकस्मिक संपर्क जैसे कि हाथ मिलाना, बगल में बैठना या किसी ऐसे व्यक्ति से बात करना, जिसे बीमारी है, के माध्यम से कुष्ठ रोग नहीं हो सकता।
इसे भी पढ़ें : त्वचा से मवाद और पानी का बहना है कुष्ठ रोग के लक्षण, जानें कारण और बचाव
कुष्ठ रोग को एंटीबायोटिक उपचार से ठीक किया जा सकता है
जिन लोगों को कुष्ठ रोग होता है, उन्हें एंटीबायोटिक उपचार से किया जा सकता। पर जब तक का इलाज शुरू न हो, तब तक ये संक्रामक हो सकता है। एक बार इलाज शुरू हो जाए, तो ये कंट्रोल होने लगता है। हालांकि, उपचार को निर्धारित किया जाना चाहिए और ये इलाज 2 साल तक का समय ले सकता है।
Source : Centres For Disease Control and Prevention
Read more articles on Other Diseases in Hindi