राहुल के पैर हमेशा कांपते रहते थे। एक महीने तक उसके पैर हमेशा कंपकंपाते रहे तो वो डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर के पास जाने पर उसे पता चला कि उसे पार्किंसन है। पार्किंसन की बात सुनकर राहुल को बहुत अधिक सदमा लगा क्योंकि अभी वो केवल 34 साल का है और करियर की ऊंचाईयों पर था। राहुल की तरह आपको भी सदमा लगा सकता है अगर आप जवान हो और आपको पार्किंसन रोग हो जाए।
राहुल की तरह यही स्थिति पब्लिकेशन हाउस की एडिटर दीपा की है। दीपा की उम्र 38 साल है। आजकल काफी युवाओं में पार्किंसन रोग के मामले देखे जा रहे हैं। पार्किंसन बीमारी हाथ, पैर या शरीर के किसी हिस्से की कंपकपाने की स्थिति है। आइए जानते हैं इसके क्या कारण औऱ लक्षण हैं। साथ ही चर्चा करते हैं इसके बचाव के बारे में।
युवाओं में पार्किंसन
- वर्तमान में युवाओं में पार्किंसंस बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं।
- सामान्य तौर पर पार्किंसन उम्रदराज लोगों की बीमारी है और ये अमूमन पचास की उम्र के बाद देखने को मिलती है।
- विशेषतौर पर 60 साल की उम्र के लोगों में पार्किंसन की बीमारी अधिक पायी जाती है।
- ये न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसमें रोगी के शरीर में कंपन होता है।
- इस रोग के कारण शारीरिक गतिविधियां रुक जाती हैं।
10 प्रतिशत युवा इससे ग्रस्त
- विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में लगभग 10 प्रतिशत युवाओं में पार्किंसंस की समस्या देखने को मिल रही है।
- कई युवाओं को ये 30 की उम्र में हो रहा है तो कई लोग किशोरावस्था में ही इसकी चपेट में आ रहे हैं।
- अधिकतर युवा इसके लक्षणों को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लेते जिससे इसकी परेशानी बढ़ जाती है।
इसके लक्षण
- पार्किंसंस बीमारी शारीरिक गतिविधियों के विकार हैं।
- इसमें दिमाग की कोशिकाएं बननी बंद हो जाती हैं।
- शुरुआत में इसके लक्षण काफी धीमे होते हैं जिससे कई बार लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं।
- इसमें हाथ, बाजू, टांगों, मुंह और चेहरे में कंपकपाहट होती है।
- जोडों में कठोरता आ जाती है। शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता है।
- शुरू में रोगी को चलने, बात करने और दूसरे छोटे-छोटे काम करने में दिक्कत महसूस होती है।
युवा भी चपेट में
न्यूयार्क में हाल ही में एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसके अनुसार, युवाओं और पचास साल के लोगों में होने वाली इस बीमारी में अंतर होता है। युवाओं में पार्किंसंस रोग तेजी से फैल रहा है जिससे इसके मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं।
इलाज पर ध्यान दें
युवाओं को जब खुद की पार्किंसन बीमारी के बारे में पता चलता है तो उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी खत्म हो गई है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि लोगों को इस बीमारी की जानकारी हो और इलाज के विकल्पों के बारे में भी। इस बीमारी का निदान ढूंढ़ना काफी मुश्किल है, क्योंकि इसकी कोई भी ऐसी जांच नहीं है जो इसके कारण के बारे में बता सके। आमतौर पर डॉक्टर इसके लक्षण और रोगी की हालत देखकर इसके बारे में पता लगाते हैं।
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