
अकसर ज्यादा खुशी या गम में लोगों की आंखों से आसू झलकने लगते हैं। शायद आप जानते हों कि इंसानों को जानवरों से अलग करने वाली चीजों में से आंसू प्रमुख चीज़ होते हैं। जी हां केवल इंसान ही भावुक होने पर आंसू बहा सकता है। चोट लगने पर दुखी होने पर या बहुत ज्यादा खुश होने पर भी आंसू आते हैं, लेकिन सवाल है की भला हम क्योंरोते हैं? और हमारे रोने के पीछे का विज्ञान क्या है? यदि नहीं, तो चलिये विस्तार से इस विषय पर बात करते हैं और जानते हैं की रोने के पीछे का विज्ञान क्या है?
तकनीकी रूप से बात करें तो आंसू आंख में होने वाली किसी प्रकार की परेशानी का सूचक होते है। ये आंख को साफ कर शुष्क (ड्राई) होने से बचाते हैं और उसे कीटाणु रहित रखने में मदद करते हैं। आसू आंख की अश्रु नलिकाओं से निकलने वाला तरल वो पदार्थ होते हैं जो पानी और नमक के मिश्रण से बना होता है। लेकिन प्रश्न ये है कि भावुक होने पर आंसू क्यों आते हैं?

क्यों आते हैं आंसू?
ट्रिंबल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजी में न्यूरोलॉजी के प्रोफ़ेसर तथा ‘इंसान रोना क्यों चाहता है’ किताब के लेखक माइकल के अनुसार, “डार्विन ने कहा था कि भावुकता के आंसू केवल इंसान ही बहाते हैं और फिर बाद में किसी ने इस बात का खंडन नहीं किया। दरअसल रोने की प्रक्रिया की प्रयोशाला में जांच की ही नहीं जा सकती है।”
लेकिन फिर भला विज्ञान इस विषय पर क्या कहता है? ज़्यादा कुछ नहीं! रेडियो फॉल्स ऑन द माइंड की प्रस्तुतकर्ता और इमोशनल रोलर कोस्टर किताब की लेखिका क्लाउडिया हेमंड बताती हैं कि, हालांकि हम सभी रोते हैं लेकिन इस पर प्रयोगशाला में अध्ययन कम ही हुए हैं। उनके अनुसार, “प्रयोगशाला में लोगों को रोने के लिए प्रेरित करने के लिए आपको उदास करने वाला संगीत बजाना होती है, रुलाने वाली कोई भावुक फिल्म दिखानी होती है या फिर उदास करने वाला कुछ लिट्रेचर पढ़ने को देना होता है और फिर उन पर नजर रखनी होगी कि वे ऐसा करने के बाद कब रोते हैं। लेकिन समस्या ये थी कि असल ज़िंदगी में रोना बहुत अलग होता है। सामान्य तौर पर आप लोगों से ये पूछ तो सकते हैं कि उन्हें रोना कब आता है या पिछली बार उन्हें किस वजह से रोना आया था। लेकिन इसके जवाब बहुत अलग-अलग होते हैं। इस विषय पर विज्ञान लेखक और मनोवैज्ञानिक जैसी बैरिंग बताते हैं कि समस्या ये है कि कोई किस चीज को देखकर दुखी होता है, ये हर आदमी के हिसाब से बिल्कुल अलग होता है।

रोने की वजह
क्या रोना अलग-अलग क्षेत्र के हिसाब से भिन्न हो सकता है? क्लाउडिया हेमंड इस संदर्भ में कहती हैं कि ये अलग-अलग संस्कृति के हिसाब से अलग भी हो सकता है। लेकिन यदि देश के लिहाज से देखा जाये तो पुरुषों और महिलाओं दोनों के रोने के लिहाज से अमरीका इसमें सबसे ऊपर है। वहीं सबसे कम रोने वालों में मर्द बुल्गारिया के होते हैं। बात यदि औरतों की हो तो आइसलैंड और रोमानिया की महिलाएं इसमें अव्वल हैं। प्रोफेसर ट्रिंबल के अनुसार रोने का सार्वभौमिक कारण संगीत है।
वे बताते हैं कि उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय सर्वे किए, जहां लेक्चर के दौरान जब वे पूछते हैं कि कितने लोग संगीत सुनकर रोते हैं, तो 90 प्रतिशथ लोग हाथ उठाते हैं। कविता से जुड़कर 60 प्रतिशत, और किसी अच्छी पेंटिंग को देखकर 10 से 15 प्रतिशत लोग रोते हैं। जबकि मूर्ति या किसी खूबसूरत बिल्डिंग को देखकर रोने के सवाल पर कोई हाथ नहीं उठता।
रोने से फायदा
यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न फ्लोरिडा के मनोवैज्ञानिक जॉनेथन रोटैनबर्ग के अनुसार जब उन्होंने अपने एक अध्ययन में हजार लोगों से विस्तार से ये बताने को कहा कि वो कब रोए थे तो सभी मामलों में सामाजिक समर्थन तभी मिला जब वो किसी के सामने रोए। क्योंकि अकेले में तकिए में सिर देकर रोने से कोई लाभ नहीं होता। रोने के फायदे के बारे में राय अलग-अलग हो सकती हैं, वहीं रोने के उदगम के बारे में चीज़ें और भी अनिश्चित होती हैं। आंसुओं के मामले में इंसान जानवरों से काफी अलग होता है, यहां तक कि अपने सबसे करीबी रिश्तेदार चिम्पांजी से भी।
लेकिन इस विषय में आंसुओं से संपूर्ण प्रभाव पर अध्ययन कर रहे यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में मनोविज्ञान और न्यूरो साइंस के प्रोफेसर रॉबर्ट प्रोलाइन का विचार थोड़ा अलग है। उन्होंने आंसुओं का दृश्य-प्रभाव देखने के लिए हमने ऐसी तस्वीरें लीं जिसमें लोगों के आंसू निकल रहे थे। फिर उन्होंने कंप्यूटर की मदद से उसमें से आंसू हटाने के बाद उसका भाव देखने के लिए उन्होंने फोटो लोगों को दिए। आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने पाया कि आंसू हटा देने के बाद तस्वीर में आदमी या तो कम दुखी लगा या फिर बिल्कुल दुखी नहीं लगा।
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