जानें शौचालय नहीं जाने से क्‍यों रहता है गर्भाशय कैंसर का खतरा

कई बार महिलाएं बाजार, स्कूलों और कार्यालय में शौचालय की कमी की वजह से समय पर टॉयलेट नहीं जा पाती, इससे उनके गर्भाशय और बड़ी आंत पर दबाव पड़ता है जो गर्भाशय कैंसर का कारण बन जाता है।
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जानें शौचालय नहीं जाने से क्‍यों रहता है गर्भाशय कैंसर का खतरा


भारतीय महिलाओं को सबसे अधिक बीमारियां गर्भाशय में संक्रमण की वजह से होती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है शौचालय का समय पर उपयोग न करना। कैंसर विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों, बाजारों व कार्यालय में बाथरूम की उचित व्यवस्था न होने पर महिलाओं में गर्भाशय कैंसर का खतरा अन्य व सामान्य स्थितियों के मुकाबले अधिक हो जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं में समय पर शौचालय के प्रयोग से दूरगामी असर होगा क्योंकि स्वच्छता और समय पर शौचालय के उपयोग से गर्भाशय व बड़ी आंत में दबाव नहीं पड़ेगा जिससे गर्भाशय के कैंसर का खतरा कम होगा। इसके बारे में विस्‍तार से जानने के लिए इस लेख को पढ़ें।

सर्वाइकल कैंसर

सबसे अधिक खतरनाक है गर्भाशय कैंसर

सभी कैंसर में गर्भाशय कैंसर सबसे खतरनाक कैंसर है क्योंकि शुरुआती दौर में इसके बारे में पता नहीं चलता। जबकि ये 70 में से 1 महिला को होता है। इसे गायनेकोलॉजी से संबंधित सबसे खतरनाक कैंसर में से एक माना गया है। साथ ही अब तक गर्भाशय कैंसर की जांच के लिए कोई भी विशवसनीय डाइग्नोस्टिक स्क्रीनिंग उपलब्ध नहीं है। इससे गर्भाशय कैंसर का पता एडवांस स्टेज तक पहुंचने तक नहीं हो पाता और कई बार रिपोर्ट भी गलत आ जाती है। शुरुआती स्टेज में केवल 19 पर्सेंट मामलों में गर्भाशय कैंसर का पता चलता है जबकि 75 पर्सेंट से अधिक मामलों में एडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद इसका पता चलता है। ऐसे में एडवांस स्टेज की अधिकतर महिलाएं 5 साल तक भी जीवित नहीं रह पाती हैं।

 

उम्र का भेदभाव नहीं

ये कैंसर हर उम्र और समुदाय की महिलाओं को हो सकता है। यह कैंसर कभी मरीजों के बीच भैदभाव नहीं करता और ये 1 साल की बच्ची को भी हो सकता है। इस कैंसर का खतरा इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे लेकर लोगों में जागरूकता की कमी भी है।

 

शौचालय के प्रबंध से खतरा हुआ कम

अधिक से अधिक शौचालय का उपयोग इस कैंसर से बचने का कारगर तरीका है। कुछ समय पहले आई ये रिपोर्ट का हवाला देते हुए दिल्ली के धर्मशिला कैंसर अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर राजीव कुमार कहते हैं, ‘‘टाटा मेमोरियल द्वारा किए गए एक अध्ययन में देखा गया है कि जिन स्थानों पर स्वच्छता का अर्थात साफ पानी और शौचालय का अच्छा प्रबंध था वहां महिलाओं में गर्भाशय के कैंसर की संभावना अन्य जगहों के मुकाबले कम पाई गई।’’

बकौल राजीव, ‘‘गर्भाशय के कैंसर का जेनाइटल हाईजीन (जननांगों की स्वच्छता) से सीधा जुड़ाव होता है। शौचालय के उपयोग से महिलाओं पर मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभाव पड़ता है और शौचालय का इस्तेमाल ‘‘जेनाइटल हाईजीन’’ के लिए महत्वपूर्ण होता है जिससे उनमें गर्भाशय के कैंसर की आशंका कम होती है। दूरगामी तौर पर शौचालय के उपयोग को बढ़ावा देना हर तरह से महिलाओं के लिए स्वास्थ्यप्रद होगा।’’

 

गर्भाशय कैंसर की पहचान

स्क्रीनिंग टेस्ट विश्वसनीय तरीका नहीं है लेकिन कुछ हद तक इसके जरिये इस कैंसर की पहचान की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि गर्भाशय कैंसर के होने वाले लक्षणों को आफ नजरअंदाज ना करें और तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। नियमित गायनेकॉलजी टेस्ट के दौरान गर्भाशय कैंसर का पता लगाने के दो तरीके हैं।

  • पहला तरीका - इस तरीके में ब्लड टेस्ट किया जाता है जिसमें प्रोटीन के जिसे सीए-125 कहते हैं का बढ़ा हुआ लेवल जांचते हैं।
  • दूसरा तरीका - इस तरीके में गर्भाशय का अल्ट्रासाउंड करते हैं।

 

उपाय

इस बीमारी का पता लगते ही या शक होने पर ही सही, तुरंत गायनेकोलॉजिक अंकॉलजिस्ट द्वारा सर्जरी करवाया जाना चाहिए। इस सर्जरी के जरिये गर्भाशय के कैंसर वाले हिस्से को हटा दिया जाता है।

 

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