प्रेगनेंसी के समय मां और बच्चे के लिए क्यों जरूरी है NIPT टेस्ट करवाना, कैसे सेहत पर पड़ता है असर

महिला को प्रेगनेंसी के समय खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। जिसमें खानपान के साथ समय पर चेकअप करवाना जरूरी होता है।
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प्रेगनेंसी के समय मां और बच्चे के लिए क्यों जरूरी है NIPT टेस्ट करवाना, कैसे सेहत पर पड़ता है असर


जब एक महिला प्रेगनेंट होती है तो उसके जीवन में खुशी की लहर आ जाती है साथ ही उसके मन में बहुत सारे सवाल आने लग जाते हैं। लेकिन इसके साथ ही एक महिला को प्रेगनेंसी के समय अपना खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। जिसमें खानपान के साथ-साथ समय समय पर चेकअप और टेस्ट करवाना जरूरी होता है। क्योंकि मां में पल रहे बच्चे की सेहत का काफी बारीकी से ख्याल रखना होता है। मां के गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत जांच के माध्याम से ही पता किया जा सकता है। अब तक हम सबके पता था कि मां की खून की जांच औक अल्ट्रासाउंड की मदद से बच्चे के स्वास्थ का पता लगया जाता है, लेकिन इन दोनों से हटकर भी एक टेस्ट होता है और वो है NIPT टेस्ट। आइए जानते हैं क्या है ये टेस्ट और क्यों है इस टेस्ट को करवाना  जरूरी मां और बच्चे की सेहत के लिए। 

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NIPT टेस्ट क्या होता है

NIPT टेस्ट यानी नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट। आज के समय में जेनेटिक बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। जिसकी वजह से लोग परेशान और दवा के सहारे रहते हैं। लेकिन जब एक महिला मां बनने वाली होती है तो कंसीव करने के कुछ हफ्तों में NIPT टेस्ट किया जाता है जिससे ये पता लगाया जा सकता है कि होने वाले बच्चे में कोई  जेनेटिक बीमारी का खतरा तो नही। ये जांच मां के खून से कि जाती है क्योंकि कंसीव करने के कुछ समय बाद होने वाले बच्चे का डीएनए मां के खून में मिल जाता है। 

किन महिलाओं के लिए जरूरी है NIPT टेस्ट यानी  नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट करवाना

  • जिन महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा होती है।
  • वाइफ या हस्बैंड किसी की जेनेटिक बीमारियों की कोई हिस्ट्री।
  • जिन लोगों को RH नेगेटिव ब्लड ग्रुप होता है।
  • जिस महिला ने पहले किसी डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम, पटु सिंड्रोम या क्रोमोसोमल असमानता वाले बच्चे को जन्म दिया हो।

जानते हैं किस सिंड्रोम का पता चलता है NIPT टेस्ट से ?

जब कोई  NIPT टेस्ट करवाता है तो उसमें बहुत ही चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। इस टेस्ट में डाउन सिंड्रोम, टर्नर सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम,  और पटाऊ सिंड्रोम का पता लगाया जाता है। अगर देखा जाए जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो डाउन सिंड्रोम होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। 

कैसे किया जाता है नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट 

NIPT टेस्ट यानी नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट के लिए एक खास अल्ट्रासाउंड स्कैन किया जाता है जिसमें बच्चे के सिर के पीछे फ्लूइड की जांच की जाती है। वहीं इसके बाद डुअल मार्कर, कम्बाइन टेस्ट की मदद से पता लगाया जाता है कि बच्चे को कोई बीमारी हो या नहीं। 

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जब एक महिला मां बनने वाली होती है तो उसको अपना खास ध्यान रखना होता है। ऐसे समय में महिला को अपने साथ अपने होनेे वाले बच्चे का भी खास ख्याल रखना होता है, जिसके लिए मां को अच्छा आहार लेना बहुत जरूरी हो जाता है। साथ ही हर महिला को प्रेगनेंसी के समय एक्टिव भी रहना चाहिए। समय पर खाना-पीना बहुत जरूरी हो जाता है और साथ ही योग और वॉकिंग गर्भावस्था में लाभदायक माना जाता है। 

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