आपने अकसर कई लोगों को कहते सुना होगा कि वे ही सारा काम करते हैं और बाकी लोग कामचोरी करते हैं। ये दरअसल आत्मुग्दता का एक प्रकार होता है। हालांकि इस भावना के होने के कई और भी काराक होते हैं। लेकिन क्या ये लोग वाकई ज्यादा काम कर रहे हैं? या फिर कहीं न कहीं काम न करने की आदत की आदत के चलते ऐसा होता है। चलिये विस्तार से जानें कि ये माजरा भला क्या है। -
क्या कहता है शोध
जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में स्थित कन्सल्टेंट सबीने हॉर्न के अनुसार मालिक कर्मचारियों से अधिक से अधिक काम निकालने की कोशिश करते हैं। लेकिन लोग अब इसके जोखिम परिचित हो रहे हैं। सबीने बताती हैं कि, "ऐसे लोग पहले सोचते हैं कि ठीक है, मैं इस काम को भी साथ ले लेता हूं।" सबीने के मुताबिक भले ही कई निष्पक्ष तथ्य की दृष्टि खो देते हैं, वे लोग एक दुष्चक्र में फंस जाते हैं और इंसान द्वारा किए जाने वाले काम की तुलना में अधिक भार ले लेते हैं। सबीने के अनुसार, यह जरूरी है कि आप खुद से सवाल करें, "इस काम का कौन सा हिस्सा मेरे लिए है और कौन सा हिस्सा वाकई एक समस्या है जिसे मेरे बॉस को निपटाना चाहिए।"
काम की सीमा को समझें
कर्मचारियों के दिमाग में यह सीमा साफ होनी चाहिए ताकि यदि बॉस उस सीमा को पार करें तो वे उसे और खुद को रोक सकें। कर्मचारियों के लिए सबसे पहला कदम यह हो सकता है कि वे यह सोचें कि कौन से अतिरिक्त काम करने की क्षमता उनमें है और फिर यह पता लगाएं कि उनके बॉस के पास काम कराने के कानूनी रूप से क्या अधिकार हैं।
दूसरी ध्यान देने वाली बात ये है कि कर्मचारियों को सचेत रहना चाहिए कि वे काम के घंटे के बाद क्या करने की अपेक्षा रखते हैं। तो जब अगली बार बॉस अतिरिक्त काम का बोझ दे तो कर्मचारी यह निर्धारित कर सकता है कि क्या ये काम उसके द्वारा तय काम से ज्यादा तो नहीं है और क्या वह काम कहीं उसकी निजी जिंदगी में दखल तो नहीं दे रहा है।
एक रास्ता सरल भषआ में "नहीं" कहना भी हो सकता है। कई लोग ऐसा करने में हिचकिचाते हैं, वे ऐसा सोच सकते हैं कि उन्हें इसकी सजा मिल सकती है। सबीने के मुताबिक ऐसी आशंकाएं अक्सर निराधार होती हैं। अपने डर से बाहर आने का एक ही रास्ता है और वह यह जांचना है, कि जब आप "ना" कहते हैं तो होता क्या है।
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