Why Every New Born Baby Needs A Heel Prick Test In Hindi: जैसे ही शिशु का जन्म होता है, तो एक परिवार में खुशियों की किलकारियां गूंजने लगती हैं। घर में चौतरफा खुशी होती है। लेकिन, साथ ही विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि जन्म के तुरंत बाद शिशुओं के स्वास्थ्य का एग्जामिन करना बहुत जरूरी होता है। जैसे कई बच्चों को जन्म के तुरंत बाद जॉन्डिस जैसी बीमारी हो जाती है। ऐसे में पहले ही से अगर पेरेंट्स को सूचना दे दी जाए, तो बच्चों को गंभीर बीमारी से बचाया जा सकता है। ऐसा ही एक टेस्ट है हील प्रिक टेस्ट। बच्चे के जन्म के 24 से 48 घंटे के अंदर यह टेस्ट करवाया जाता है। सवाल है, ऐसा क्यों होता है, इस बारे में हमने Neuberg Diagnostics में Consultant Pathologist डॉ. आकाश शाह से बात की है। आप भी जानें जवाब।
जन्म के तुरंत बाद क्यों कराया जाता है हील प्रिक- Why Do Newborn Babies Have The Heel Prick Test In Hindi
हील प्रिक टेस्ट बच्चों के लिए बहुत ही जरूरी टेस्ट है। इस टेस्ट के माध्यम से बच्चे की हेल्थ के बारे में कई जरूरी जानकारी मिल सकती है, जैसे हार्मोनल डिसबैलेंस, जेनेटिक बीमारियां आदि। इससे बच्चे के मेटाबॉलिज्म के बारे में भी सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है। आपको बता दें कि यह टेस्ट करने के लिए एड़ी से पिन चुभोकर बच्चे का ब्लड लिया जाता है। इस ब्लड सैंपल को टेस्ट करने के लिए लैब में भेजा जाता है। सामान्य तौर पर यह टेस्ट 24 से 48 घंटों के भीतर करना सही रहता है। इससे बच्चे की हेल्थ से जुड़ी अहम जानकारियां आसानी से हासिल हो जाती हैं। यही नहीं, अगर बच्चे को किसी तरह की बीमारी है, तो उसका पता चल जाता है, जिसका समय रहते इलाज किया जा सकता है। विशेषज्ञों की मानें, तो हील प्रिक टेस्ट की मदद से बच्चे के सही विकास का भी पता लगाया जा सकता है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पेरेंट्स को चाहिए कि वे जन्म के तुरंत बाद अपने शिशु का यह टेस्ट जरूर करवाएं।
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हील प्रिक टेस्ट कैसे फायदेमंद है?- Benefits Of Heel Prick Test In Hindi
जैसा कि पहले ही जिक्र किया गया है कि हील प्रिक टेस्ट करवाने से पेरेंट्स को अपने बच्चे के स्वास्थ्य का सटीक आकलन करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, कुछ अन्य लाभ भी होते हैं, जैसे-
- लक्षणों से पहले ही बच्चे की बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
- जल्द से जल्दी और सही समय पर बच्चे का ट्रीटमेंट शुरू किया जा सकता है।
- शुरुआती दिनों में ही बच्चे की डाइट और लाइफस्टाइल से जुड़े बदलावों पर जोर दिया जा सकता है।
- किस तरह की मेडिकेशन शुरू करनी है, डॉक्टर इसको लेकर भी स्पष्ट हो जाते हैं।
- जरूरी हो, तो हार्मोनल रिप्लेसेमेंट से बच्चे की ग्रोथ में मदद मिल सकती है।