विश्व स्वास्थ्य संगठन ग्लोबल (World Health Organisation) की ग्लोबल टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) रिपोर्ट 2019 के अनुसार साल 2018 में भारत में कुपोषण, शराब और धूम्रपान टीबी के सबसे बड़े कारणों में से एक रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट की मानें तो साल 2018 में भारत में लगभग 2.69 मिलियन लोग टीबी से पीड़ित हुए और 449,000 लोग मारे गए। इसके अलावा यह रिपोर्ट, भारत में टीबी के मामलों में हो रही बढ़ोतरी को लेकर और बहुत कुछ कहती है।
ग्लोबल टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) रिपोर्ट 2019
डब्ल्यूएचओ इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 में, देश में पहले की तुलना में अधिक लोगों का टीबी का परीक्षण किया गया और इलाज हुआ। जिसके कारण साल 2017 के हिसाब से टीबी के मामालों में कमी आई है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में, देश में टीबी के मामले 2.74 मिलियन था, जो अब घटकर 2.69 मिलियन हो गया है। जबकि इलाज के लिए संसाधन की कमी या बिना पहुंच वाले गरीबों में बीमारी और मृत्यु का सबसे अधिक खतरा बढ़ा है। इसके अलावा टीबी के कई कारणों में संक्रमित हवा द्वारा फैलने वाला टीबी संक्रमण सबसे अधिक बढ़ा है। यह संक्रमण खांसी के माध्यम से कार्यस्थलों, सार्वजनिक परिवहन और एक दूसरे के साथ निकट संपर्क में हैं रहने वालों में ज्यादा फैल रहा है।
इसके अलावा दवा प्रतिरोधी मामलों (Drug resistant cases)की ट्रैकिंग में भी सुधार हुआ है। 2017 में रिफ़ैम्पिसिन प्रतिरोध (आरआर) के लिए टीबी रोगियों की वृद्धि 32% से बढ़कर 2018 में 46% हो गई, जिसमें 2017 में एक साल के भीतर ही उपचार की सफलता दर 69% से बढ़कर 81% हो गई थी। साथ ही नशीली दवाओं के प्रति संवेदनशील मामलों में कमी आई है।
लेकिन दुख की बात यह है कि भारत 2025 तक प्रति 100,000 आबादी पर मौजूदा 199 टीबी के मामलों को घटाकर प्रति 100,000 आबादी पर 10 मामले के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा। दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय निदेशक डॉ पूनम खेत्रपाल सिंह के अनुसार भारत में टीबी के मामलों की अधिसूचना 2017 में 1.9 मिलियन से बढ़कर 2018 में 2.2 मिलियन के करीब हो गई है। जबकि उपचार की सफलता में सुधार हुआ है। देश में 46,000 आरआर / मल्टीड्रग प्रतिरोधी (एमडीआर) टीबी मामलों की संख्या 36,000 पर पहुंच जाना एक चिंता का विषय है।
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दवा प्रतिरोधी टीबी (Drug resistant TB) की संख्या में बढ़ोतरी
टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होता है और लगातार खांसी के माध्यम से हवा में फैलता है। इसके लक्षणों में थकान, वजन कम होना, सांस की तकलीफ, रात को पसीना और सीने में दर्द आदि शामिल है। वहीं संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत इस बीमारी का मुफ्त में इलाज किया जाता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेजी से फैलने वाला टीबी नियंत्रण कार्यक्रम है, लेकिन निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को नियमित करने में सरकार की अक्षमता के कारण यह बीमारी लगातार फैल रही है। इसके अलावा दवा में अंतराल और उपचार पूरा नहीं करने से लोगों में दवा प्रतिरोधी टीबी (Drug resistant TB)की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है।
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भारत ने टीबी नियंत्रण के लिए काफी पैसा खर्च कर रहा है। भारत की घरेलू टीबी फंडिंग 2016 और 2019 के बीच चौगुनी हो गई है, जो नए डायग्नोस्टिक्स और ड्रग्स, सामुदायिक-नेतृत्व वाली पहल, और टीबी के हर मामलों में सेवाओं के बेहतर सुधार के दिखा सकता है। ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2019 के अनुसार, टीबी ने दुनिया भर में लगभग 10 मिलियन लोगों को बीमार किया और 2018 में 1.5 मिलियन लोग टीबी से मरे हैं। दुनिया में सबसे अधिक भारत पर टीबी का बोझ है। भारत में टीबी से पीड़ित लोगों की संख्या में कमी आ रही है, लेकिन अभी भी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रगति बहुत धीमी है। वहीं इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरकुलोसिस एंड लंग डिजीज (द यूनियन) के वैज्ञानिक निदेशक डॉ.पाउला आई फुजिवारा ने भारत में टीबी को लेकर बातचीत करते हुए कहा है कि अगर हम भारत में टीबी खत्म नहीं करते हैं, तो हम विश्व स्तर पर टीबी के खत्म होने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।