खतरनाक साबित हो सकती है सफेद दाग की समस्या, जानें लक्षण, कारण और उपचार

विटिलिगो (ल्यूकोडर्मा) एक प्रकार का त्वचा रोग है। दुनिया भर की लगभग 0.5 प्रतिशत से एक प्रतिशत आबादी विटिलिगो से प्रभावित है, लेकिन भारत में इससे प्रभावित लोगों की आबादी लगभग 8.8 प्रतिशत तक दर्ज किया गया है।
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खतरनाक साबित हो सकती है सफेद दाग की समस्या, जानें लक्षण, कारण और उपचार


विटिलिगो (ल्यूकोडर्मा) एक प्रकार का त्वचा रोग है। दुनिया भर की लगभग 0.5 प्रतिशत से एक प्रतिशत आबादी विटिलिगो से प्रभावित है, लेकिन भारत में इससे प्रभावित लोगों की आबादी लगभग 8.8 प्रतिशत तक दर्ज किया गया है। देश में इस बीमारी को समाज में कलंक के रूप में भी देखा जाता है। विटिलिगो किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है, लेकिन विटिलिगो के आधा से ज्यादा मामलों में यह 20 साल की उम्र से पहले ही विकसित हो जाता है, वहीं 95 प्रतिशत मामलों में 40 वर्ष से पहले ही विकसित होता है।

क्या है सफेद दाग की समस्या

सफेद दाग एक तरह का त्वचा रोग है जो किसी एलर्जी या त्वचा की समस्या के कारण होती है। कई बार ये आनुवांशिक भी होता है। दुनिया के दो प्रतिशत लोग इस समस्या से ग्रस्त हैं और भारत में चार प्रतिशत तक लोग इस समस्या से पीड़ित हैं। इसे ठीक करने के लिए काफी धैर्य की जरूरत है। गहरे रंग की त्वचा पर दाग व धब्बे अधिक होते है। क्योंकि सांवली त्वचा में मेलनिन तत्व अधिक होते हैं। यह बात हम आपको अच्छी तरह से बता दें कि सफेद दाग होना कोई वंशानुगत या कुष्ठ रोग नहीं है। सफेद दाग को फैलने से रोकने के लिये दाग वाली त्वचा का रूप ले लेती है और श्रृंगार द्वारा भी यह दाग अस्थाई रूप से छिपाये जा सकते है।

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सफेद दाग होने के लक्षण

त्वचा की रंगत में सफेदी नज़र आने के साथ अगर वहां के रोएं भी सफेद होने लगें तो यह इस रोग की शुरुआत हो सकती है। प्राय: ऐसे दाग पर खुजली या दर्द जैसे लक्षण नहीं दिखते और त्वचा की संवेदनशीलता भी बनी रहती है। हां, गर्मी के मौसम में पसीने की वजह सेप्रभावित हिस्से में कुछ जलन हो सकती है।

क्यों होते हैं सफेद दाग

आनुवंशिकता, अर्थात अगर माता-पिता को यह डिज़ीज़ हो तो बच्चों में भी इसकी आशंका बढ़ जाती है। हालांकि ज़रूरी नहीं है कि इससे पीडि़त हर व्यक्ति की संतान को भी ऐसी समस्या हो। कुछ लोगों के शरीर पर छोटे-छोटे गोल धब्बे बनने लगते हैं और उस स्थान से रोएं गायब होने लगते हैं। इसे एलोपेशिया एरियाटा कहा जाता है। भविष्य में यही समस्या विटिलाइगो का भी कारण बन सकती है। कई बार बर्थ मार्क या मस्से के आसपास की त्वचा की रंगत में भी बदलाव शुरू हो जाता है, जिससे विटिलाइगो की समस्या हो सकती है। बिंदी में लगे गोंद, सिंथेटिक जुराबें, घटिया क्वॉलिटी के ब्यूटी प्रोडक्ट्स या फुटवेयर की वजह से भी लोगों को ऐसी समस्या हो सकती है। इसलिए ऐसी चीज़ें खरीदते समय उनकी गुणवत्ता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। अधिक केमिकल एक्सपोज़र की वजह से भीमिथको  डिज़ीज़ हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति ऐसी फैक्ट्री में काम करता हो, जहां प्लास्टिक, रबर या केमिकल्स का बहुत अधिक मात्रा में इस्तेमाल होता हो तो ऐसे व्यक्ति को भी विटिलाइगो की समस्या हो सकती है।

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सफेद दाग के लिए उपचार

  • अगर आपकी त्वचा अधिक संवेदनशील है तो तेज़ गंध वाले साबुन, परफ्यूम, डियो, हेयर कलर और कीटनाशकों से दूर रहें।
  • कुछ लोग दाग को छिपाने के लिए उस पर टैटू भी बनवाते हैं। ऐसा कभी न करें। इससे उसके फैलने का डर बढ़ जाता है।
  • कई बार उपचार के एक-डेढ़ साल के बाद त्वचा पर फिर से दाग नज़र आने लगते हैं तो ऐसे में दोबारा दवाओं के सेवन की ज़रूरत पड़ सकती है। अगर दो साल तक सफेद निशान वापस न दिखाई दे तो इस बात की संभावना है कि अब ऐसी कोई समस्या नहीं होगी।   
  • इसके उपचार के लिए स्किन ग्राफ्टिंग की तकनीक अपनाई जाती है। इसमें किसी एक जगह की त्वचा को निकालकर दाग वाले हिस्से पर लगाया जाता है, जिससे दाग छिप जाते हैं।
  • फोटो थेरेपी विधि द्वारा सूरज की यूवीए और यूवीबी अल्ट्रावॉयलेट किरणों की मदद से त्वचा की रंगत दोबारा वापस लौटाने की कोशिश की जाती है। इसमें मरीज़ को काला चश्मा पहनने को दिया जाता है, ताकि उसकी आंखों को सूर्य की किरणों से नुकसान न पहुंचे। प्रभावित हिस्से पर खास तरह का लोशन लगाने के बाद मरीज़ को रोज़ाना सुबह 11 से 12 बजे के बीच धूप में बैठने को कहा जाता है।    
  • इन तरीकों से दाग को शुरुआती दौर में नियंत्रित करना आसान होता है। इसलिए अगर त्वचा की रंगत में ज़रा भी बदलाव नज़र आए तो तत्काल स्किन स्पेशलिस्ट से संपर्क करें।

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