भारत में एचआईवी से कहीं ज्यादा जानें लेता है वायरल हेपेटाइटिस

नई दिल्ली में 'एचसीवी संक्रमण व अन्य रोग' पर केंद्रित तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान हुई चर्चा में डॉ. दुबे ने बताया कि देश में एचआईवी/एड्स की तुलना में वायरल हैपेटाइटिस अधिक जानें लेता है।
  • SHARE
  • FOLLOW
भारत में एचआईवी से कहीं ज्यादा जानें लेता है वायरल हेपेटाइटिस

लिवर व पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) में, सहायक प्रधान संचालक (मेडिकल) डॉ. शांतनु दुबे ने एक नए विश्लेषण के माध्यम से भारत में वायरल हैपेटाइटिस की वर्तमान स्थिति के बारे में अहम जानकारियां साझा कीं। होटल पुलमेन, नई दिल्ली में 'एचसीवी संक्रमण व अन्य रोग' पर केंद्रित तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान हुई चर्चा में डॉ. दुबे ने बताया कि देश में एचआईवी / एड्स की तुलना में वायरल हैपेटाइटिस अधिक जानें लेता है, और कहा कि इस रोग के संबंध में जागरूकता अभियान चलाने की सक्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि जानकारी के अभाव में वायरल हेपेटाइटिस का निदान काफी देरी से हो पाता है, जिसके चलते इस रोग की पहचान व इलाज बेहद मुश्किल हो जाते हैं।    


" डॉ. दुबे ने यह भी बताया कि, लीवर के पास 70 प्रतिशत का रिज़र्व होता है, जोकि इसे अस्थायी कारकों की वजह से होने वाली क्षति को रिज़र्व रखने देते है। लेकिन लंबे समय तक इस प्रकार क्षति होने व सही इलाज न किये जाने पर यह काम करना बंद कर देता है। इसलिये इसकी रोकथाम, इलाज से बेहतर होती है।

 

Viral Hepatitis in Hindi

 

यह जरूरी है कि -

  • यह बहुत देर होने से पहले ही स्थिति का पता लगाने के लिए लीवर फंग्शन टेस्ट कराएं  
  • स्वस्थ (और बेहद ज़रूरी है साफ) आहार का सेवन करें
  • रोगाणुहीन (स्टर्लाइज्ड) सुई का ही इस्तेमाल करें
  • किसी संक्रमित व्यक्ति के खून के संपर्क से बचें
  • टीका (वैक्सीन) जरूर लगवाएं

 

भारत में हेपेटाइटिस संक्रमण के दो सबसे आम प्रकार हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी हैं। “ हमारे अस्पताल में आने वाले वायरल हेपेटाइटिस के मामलों में 90 प्रतिशत, शराब पीने से संबंधित होते हैं”, डॉ. दुबे कहते हैं कि भारतीयों के लिये शराब को पचा पाना मुश्किल है। देश में वायरल हेपेटाइटिस के बढ़ते मामलों के लिये के लिये अनीयनित जीवनशैली, मोटापा / ज्यादा वज़न, असुरक्षित या दूषित भोजन का सेवन, अनुचित सुइयों का इस्तेमाल और कंट्रसेपशन (गर्भनिरोधन) की कमी जैसे कारकों को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।  


पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ते खतरनाक हेपेटाइटिस बी और सी के बारे में बात करते हुए, आईएलबीएस के निदेशक डॉ शिव कुमार सरीन ने बताया कि अकेले आईएलबीएस में नियमित तौर पर इन रोगों से पीड़ित 7,500 से अधिक रोगियों को पंजीकृत किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि इस संख्या के समय के साथ बढ़ने की उम्मीद है। इसके अलावा संस्थान में हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (लीवर के कैंसर का एक प्रकार जिसे हेपेटाइटिस सी के साथ जोड़ा जाता है) के रोगियों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि देखी गयी है। डॉ. सरीन ने कहा कि, "हालांकि हेपेटाइटिस बी और सी दोनों अतिसंवेदनशील होते हैं, और सही इलाज से इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है, फिर भी इनके बारे में लोगों के बीच में जागरूकता बढ़ाना बेहद ज़रूरी है।  


डॉ. सरीन ने कहा कि हेपेटाइटिस बी और सी से पीड़ित रोगियों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये और टीबी और एचआईवी की ही तरह हेपेटाइटिस बी और सी से पीड़ित रोगियों को मुफ्त इलाज दिये जाने की डॉ. सरीन ने शिफारिश़ की। इस रोग को फैलने से रोकने के लिये सबसे अच्छा तरीका इसकी रोकथाम करना है। उन्होंने कहा, कि यदि हम हमारे सभी नवजात शिशुओं का इसके लिये टीकारण कराएं तो 2080 तक हेपेटाइटिस बी को पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं। वहीं यदि हम सभी रोगियों का इलाज करते हैं, तो 2020 तक हेपेटाइटिस सी को भी समाप्त किया जा सकता है।

 
'एचसीवी (हेपेटाइटिस सी वायसर) इन्फेक्शन एंड रीसेंट एडवांसेज इन लिवर डिज़ीज' विषय पर केंद्रित यह सम्मेलन 18 से 20 दिसम्बर तक होटल पुलमेन, नई दिल्ली में चलेगा, जिसमें पूरे देश और विदेश के डॉक्टर सम्मिलित हुए हैं।



Image Source - Onlymyhealth.com     

Read More Health News In Hindi

Read Next

डिमेंशिया के इलाज में कम तीव्रता की अल्ट्रासाउंड तरंगें होगी मददगार

Disclaimer