डिप्रेशन यानी अवसाद में ‘मेजर डिप्रेसिव डिसोर्डर’और ‘डीस्थ्यिमिक डिसोर्डर’ को प्रमुख माना जाता है। ‘मेजर डिप्रेसिव डिसोर्डर’को अवसाद का मुख्य रूप भी कहा जाता है। इस अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति में मिश्रित लक्षण नज़र आते हैं और यह अवसाद रोगी के काम करने, सोने, पढ़ने, खाने और आनंद लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। इस प्रकार का अवसाद व्यक्ति को सामान्य रूप से कामकाज नहीं करने देता। यह किसी व्यक्ति के जीवनकाल में सिर्फ एक बार ही होता है, लेकिन अधिकतर इस अवसाद की पुनरावृत्ति उस व्यक्ति के जीवनपर्यन्त होते रहती है। वहीं डीस्थ्यिमिक डिसोर्डर को ‘डीस्थेमिया’ भी कहते हैं। इस अवसाद की अवधि दो या दो वर्ष से अधिक समय तक रहती है। लेकिन इसके लक्षण कम गंभीर होने के कारण व्यक्ति अशक्त तो नहीं होता है, लेकिन उसे कामकाज सामान्य रूप से संपन्न करने में बाधा हो सकती है, और वह खुद को अस्वस्थ महसूस कर सकता है। वैसे तो अवसाद के कई रूप होते हैं, जो किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकते हैं। हम आपको अवसाद के रूपों में बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में आपको जानना बेहद जरूरी है।
सायकोटिक डिप्रेशन
जब एक अति गंभीर अवसाद संबंधी बीमारी के साथ साथ कुछ प्रकार की मनोविकृति भी जुडी हुई होती है, तब अवसाद के इस प्रकार को सायकोटिक डिप्रेशन के नाम से जाना जाता है। मनोविकृति में सच्चाई से अनजान रहना, मतिभ्रम होना और किसी भी बात का आभास होना जैसी मनोदशा शामिल हैं।
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पोस्टपार्टम डिप्रेशन
यदि शिशु के जन्म के बाद एक नई माँ में एक महीने के भीतर में अवसाद संबंधी लक्षण प्रमुख रूप से दिखाई देते हैं, तब अवसाद के इस प्रकार की पहचान ‘पोस्टपार्टम डिप्रेशन’के तौर पर होती है। अनुमान के अनुसार करीब 10 से 15 प्रतिशत स्त्रियां प्रसव के बाद ‘पोस्टपार्टम डिप्रेशन’का अनुभव करती हैं।
सीज़नल अफेक्टिव डिसोर्डर (एस-ए-डी)
यह अवसाद संबंधी ऐसी बीमारी है, जो ठंडी के मौसम के दौरान प्रकट होती है, जब हमें प्राकृतिक रूप से सूर्यप्रकाश कम मात्रा में प्राप्त होता है। आम तौर पर बसंत और गर्मियों के मौसम में अवसाद का असर कम हो जाता है। ‘सीज़नल अफेक्टिव डिसोर्डर’ (एस-ए-डी) को शायद ‘प्रकाश (लाईट) थेरेपी’ से प्रभावशाली तरीके से ठीक किया जा सकता है, लेकिन इस अवसाद से पीड़ित करीब आधे लोगों की संख्या सिर्फ़ ‘प्रकाश थेरेपी’ से ही ठीक नहीं की जा सकती है। अवसादरोधी दवा उपचार और मनश्चिकित्सा (साय्कोथेरेपी) की मदद से एस-ए-डी के लक्षणों को घटाया जा सकता है। यदि आवश्यक हो, तो इन उपायों के साथ ‘प्रकाश थेरेपी’ को भी जोड़ा जाता है।
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बाइपोलर डिसोर्डर
अवसाद के इस प्रकार को उन्मादी अवसाद संबंधी बीमारी भी कहा जाता है। यह अवसाद के अन्य प्रकार ‘मेजर डिप्रेशन’ या ‘डीस्थेमिया’ जितना साधारण नहीं है। ‘बाइपोलर डिसोर्डर’ के अंतर्गत रोगी का मूड अचानक अत्यधिक उच्च स्तर (जैसे कि ‘उन्माद’) से अत्यधिक निम्न स्तर (जैसे कि ‘अवसाद’) तक बदल जाता है। एन-आई-एम-एच की वेबसाइट पर आप ‘बाइपोलर डिसोर्डर’ के बारे में अधिक जानकारी पा सकते हैं।
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