World Ovarian Cancer Day 2023: "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत", यह कहना है गाजियाबाद की रहने वाली स्नेहलता मिश्रा का। जब 29 साल की उम्र में स्नेहलता को कैंसर होने के बारे में पता चला, तो यह उनके लिए एक भयानक सपने की तरह था। उन्हें ऐसा लगा कि एक दिन में उनकी पूरी जिंदगी ही पलट गई। लेकिन कैंसर से हारना तो था नहीं, इसलिए उन्होंने ठान लिया कि कैंसर को हराना ही होगा। ओवेरियन कैंसर के खिलाफ सफलतापूर्वक जंग जीत चुकी स्नेहलता ने ओनलीमायहेल्थ से बातचीत के दौरान कैंसर होने से लेकर रिकवरी तक की पूरी कहानी बयां की। उन्होंने बताया कि अगर मन में विश्वास हो, तो कोई भी लड़ाई जीती जा सकती है। आपको बता दें कि 4 फरवरी को विश्व भर में वर्ल्ड कैंसर डे मनाया जाता है, ताकि लोगों को इस जानलेवा बीमारी के प्रति जागरूक किया जा सके। तो चलिए, विश्व ओवेरियन कैंसर दिवस 2023 के मौके पर स्नेहलता की जुबानी जानिए उनकी कहानी, जो उन्होंने ओनलीमायहेल्थ से साझा की।
लक्षणों को समझ नहीं पाई
ओवेरियन कैंसर को मात देने वाली स्नेहलता बताती हैं कि एक दिन अचानक मेरे पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द उठा। मुझे लगा कि शायद यह गैस का दर्द है, इसलिए मैंने कुछ घरेलू उपाय किए। लेकिन जब दर्द से आराम नहीं मिला, तो मैं डॉक्टर के पास गई। उस समय डॉक्टर ने कुछ दवाइयां देकर मुझे घर भेज दिया। दवा लेने के बाद दर्द ठीक हो गया, लेकिन फिर भी मुझे कभी-कभार हल्का दर्द महसूस होता था। जब धीरे-धीरे दिक्कत बढ़ने लगी, तो मैं दिल्ली के सेंट स्टीफेंस हॉस्पिटल गई। वहां डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद बताया कि मेरे ओवरी में गांठ है। ज्यादातर गांठे दवाओं से ठीक हो जाती हैं, मेरा 1 साल तक इलाज चला, लेकिन गांठ ठीक नहीं हुई।
ओवेरियन कैंसर के बारे में पता चला
स्नेहलता आगे बताती हैं कि उन्होंने 1 साल के बाद दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल से अपना इलाज करवाना शुरू किया। वे कहती हैं कि डॉक्टर की सलाह पर मैंने सीटी स्कैन और कुछ अन्य टेस्ट करवाए। तब मुझे पता चला कि मुझे स्टेज 3 का ओवेरियन कैंसर है। स्नेहलता बताती हैं कि कैंसर का नाम सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मुझे लगा कि अब क्या होगा...क्योंकि कैंसर होने पर ऐसा लगता है कि अब मौत किसी भी वक्त आ सकती है। लेकिन जब मैंने अपने 7 साल के बेटे की तरफ देखा, तो ठान लिया किअब मुझे कैंसर के खिलाफ जंग जीतनी ही होगी।
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कीमोथेरेपी और सर्जरी से हुआ इलाज
स्नेहलता ने बताया कि मैंने कीमोथेरेपी के 4 राउंड लिए। फिर मेरी सर्जरी हुई, जिसमें मेरी ओवरी, यूट्रस और फेलोपियन ट्यूब को निकाल दिया गया। कैंसर आपको शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से भी तोड़कर रख देता है। स्नेहलता बताती हैं कि कैंसर के इलाज के दौरान मुझे समझ नहीं आता था कि मेरे साथ यह क्या और क्यों हो रहा है? मैं अपना दु:ख किसी के सामने जाहिर नहीं करती थी, लेकिन अकेले खूब रोती थी। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और कैंसर को हरा ही दिया।
कीमोथेरेपी के दौरान हुई काफी परेशानी
स्नेहलता बताती हैं कि हर 25 दिन के अंतराल में मेरी कीमोथेरेपी होती थी। मेरे लिए कीमोथेरेपी सेशन किसी नर्क से कम नहीं होता था। कीमोथेरेपी करवाने के बाद मुझे पूरे शरीर में असहनीय दर्द होता था। मैं 2-4 दिनों तक खाना नहीं खा पाती थी और मुझे उल्टी होती थी। धीरे-धीरे मेरे बाल झड़ना शुरू हो गए। कीमोथेरेपी के तीसरे सेशन तक मेरे सिर के सारे बाल झड़ चुके थे। मैं शारीरिक रूप से भी काफी कमजोर हो चुकी थी। लेकिन दो महीनों में बाद मेरी कीमोथेरेपी पूरी हो गई। जब दोबारा जांच करवाई गई, तो रिपोर्ट नॉर्मल आई।
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परिवार का पूरा साथ मिला
स्नेहलता कहती हैं कि जब मुझे कैंसर हुआ, तो मेरे परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया। खासतौर पर मेरी बड़ी दीदी ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। मैं उनके घर पर ही रहती थी, क्योंकि वहां से हॉस्पिटल पास था। स्नेहलता बताती हैं कि मैं जब भी आंख बंद करती थी, तो मुझे मेरे बेटे का चेहरा ही याद आता था। मैं सोचती थी कि अगर मैं नहीं रही, तो उसका क्या होगा? मुझे लगता था कि मुझे अपने बच्चे के लिए जिंदा रहना है। इलाज के दौरान मेरे परिवार और दोस्तों ने मुझे बहुत मोटिवेट किया। अपने परिवार के प्यार और सपोर्ट के कारण ही यह जंग जीत पाई।
हिम्मत न हारें और पॉजिटिव सोचें
मैं बस यही कहना चाहूंगी कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। कैंसर से जीतने के लिए आपको हिम्मत रखना बहुत जरूरी है। अपने डर को बीमारी से बड़ा न बनने दें। इसके साथ ही खुश रहने की कोशिश करें और पॉजिटिव सोचें। अगर आपके अंदर जीने की उम्मीद है, तो हर बीमारी का इलाज संभव है।