एक घर की सुंदरता उसकी किचन से होते है। एक समय होता था जब किचन में हांडी, सिलबट्टा जैसी चीजें रखीं होती थी, लेकि समय के साथ-साथ सब बदल गया आज के समय में लोग अपनी किचन में मिक्सर का इस्तेमाल करते है। चिमनी लगाते हैं, शेल्फ्स बनवाते हैं। इन सबके साथ लोगों की पसंद भी बदल गई है। लेकिन ये बदवाल सेहत पर क्या असर डाल रहा है इसका भी पता होना सबके लिए जरूरी है। क्योंकि आपके पेट का रास्ता आपकी किचन से ही गुजरता है। आइए जानते हैं डॉ. स्वाती बाथवाल पर क्या कहना हैं
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इस पर वह हमेशा कहती हैं, कि जो चीज किचन में ताजा नहीं रहती, वह बहार सुपरमार्केट की अलमारियों में कैसे ताजा हो सकती है।
पारंपरिक रसोई की तुलना में आधुनिक रसोई ज्यादा भरी हुई दिखाई देती है, लेकिन क्या आपने इस बात पर गौर किया है कि किचन के साथ-साथ अस्पतलों के बेड भी तेजी से भर रहे हैं? हमारे रहन-सहन खान-पान के तरीके से हमारा स्वास्थ्य काफी प्रभावित होता है। क्या हम जो खाना खा रहे हैं उससे कमर बढ़ रहा है या हम अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक दवाओं का सेवन कर रहे हैं? एक डाइटिशियन और पब्लिक हेल्थ नूट्रिशनिस्ट के तौर पर मेरा मानना है कि बेहतर स्वास्थ्य की शुरुआत रसोई से होती। आज हम आपको अपने पूर्वजों के किचन के बारे में बताएंगे।
आइए जानते हैं कुछ खास बातें-
हम सबसे पहले आधुनिक रसोई में मौजूद अलग-अलग तरह के सब्जी बनाने के तेल के बारे में बात करेंगे। इन तेलों को उच्च तापमान पर रिफाइन और प्रोसेस किया जाता है, जिससे इनका अधिकांश पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। फिर ये हमारे पास प्लास्टिक के कंटेनर में पहुंचते हैं। इनमें से कुछ तेलों का उत्पादन मक्के या अन्य सब्जियों से किया जाता है। वहीं, हमारे पूर्वज खाना पकाने के लिए देसी गायों की दूध से घर का बना घी, तिल का तेल,नारियल का तेल इस्तेमाल करते थे। हम अगर अपनी प्राचीन सभ्यता की ओर चले तो पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए ज्यादातर सब्जियों को पानी, आंवला या अनार के रस या किसी भी सब्जी के रस में पकाया जाता था। मीट और सब्जी बनाते वक्त हींग का प्रयोग किया जाता था।
आधुनिक रसोई घर में मिक्सर ग्राइंडर ने ओखली और मूसल की जगह ले ली है। इलेक्ट्रिक हीट पर बनने वाला खाना कम पोषक होता है। मसालों को ओखली में पीसें। इससे वे ताजा रहेंगे और इनको आप एक से दो महीने इस्तेमाल करने के लिए एयर टाइट कंटेनर में रख सकते हैं। इन मसालों की सुगंध हमारी हवा को शुद्ध करती है और अशुद्धियों को दूर करती है।
हमारे पूर्व कोई एल्यूमीनियम या स्टेनलेस स्टील या नॉन-स्टिक फ्राइंग पैन इस्तेमाल नहीं करते थे। एल्यूमीनियम एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील धातु है, जो गर्म होने पर एक्साइडाइज हो कर एल्यूमीनियम ऑक्साइड में बदल जाता है । इसलिए अपने खाना पकाने के बर्तनों को बदलिए। लोहे की कड़ाही या मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करिए। खाने में आयरन की कमी को दूर करने के लिए लोहे के बर्तन में खाना बनाना भी एक बेहतर तरीका है।
भोजन हमेशा धीमी आंच पर पकाया जाता था। विशेष रूप से दूध, लेकिन अब व्यस्त जिंदगी के कारण हम तेज आंच पर भोजन पकाते हैं। हमेशा धीमी आंच पर भोजन पकाएं, ताकि भोजन में पोषक तत्व बरकरार रहें। इसके अलावा प्रिजर्वेटिव फूड्स को त्याग दें।
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भोजन की मात्रा को मापने के लिए हथेलियों ''अंजलि'' का प्रयोग करें। वयस्क को दो और बच्चों को एक अंजलि भोजन परोसें।
जब आप गुस्से में हों या भावनात्मक रूप से थकान महसूस कर रहे हों तो खाना न बनाएं। यकीन कीजिए चाहे आप कितना भी अच्छा खाना क्यों न बनाते हों, आपका खाना स्वादिष्ट नहीं बनेगा।
खाना पकाने वाले जगह को साफ और सुव्यवस्थित रखें। धीरे-धीरे बिजली के उपकरणों को न कहें और हाथ से चलने वाली चीजों की ओर बढ़ें।
परंपरागत रूप से, खाना खाने के लिए अमीर लोग सोने और चांदी के बर्तन का इस्तेमाल करते थे। वहीं आर्थिक तौर पर कमजोर लोग मिट्टी के बर्तन, पत्तियों और लकड़ी के प्लेट में खाना खाते थे। जब आप लकड़ी की प्लेट से खाते हैं तो यह कफ के स्राव को कम करता है। वहीं सोने की प्लेटें शरीर को पोषण देने में मदद करती हैं और आंखों की परेशानी को कम करती हैं। चांदी शारीरिक पाचन में मदद करती है। तांबे, मिट्टी के बरतन और कांच में पानी पीना लाभदायक होता है।
मशीनों के बजाय अपने हाथों से आटा गूंधने से भोजन में ऊर्जा का संचार होता है। आप प्रकृति के जितना करीब होंगे, उतना ही आपका भोजन ब्रह्मांड की ऊर्जा के साथ जुड़ा होगा।
प्रकृति के आभारी रहें , कभी भी भोजन अकेले न खाएं। इसे किसी के साथ साझा करें।
ध्यान रखिए इस लेख को पढ़कर आपको एकदम से बदलने की जरूरत नहीं है। धीरे-धीरे बदलाव लाने की कोशिश करिए। छोटे-मोटे बदलाव का भी हमारे स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ेगा। प्राचीन रसोई के सभी नियमों को आधुनिक रसोई में लागू नहीं किया जा सकता है। हालांकि, आप जो पहल करते हैं उससे आपके स्वास्थ्य में सुधार होगा।
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