जैसे जैसे समय बदल रहा है वैसे वैसे परवरिश करने के तरीके में बदलाव लाना जरूरी है। ऐसे में माता-पिता की यह जिम्मेदारी है कि वह अपनी सोच और व्यवहार दोनों में संतुलन बनाए रखें। बच्चों की परवरिश में जितना जरूरी प्यार है उतना ही जरूरी अनुशासन भी है। इन दोनों के बीच तालमेल बैठाना भी माता-पिता की ही जिम्मेदारी है। ऐसे में कुछ तरीके माता-पिता की बेहद काम आ सकते हैं। आज का हमारा लेख उन्हीं तरीकों पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि माता-पिता कैसे बच्चों की परवरिश में प्यार और अनुशासन दोनों को जोड़ सकते हैं। इसके लिए हमने कॉन्टिनुआ किड्स की विकासात्मक व्यवहार पेडियाट्रिशन एंड सह-संस्थापक के डॉ. हिमानी नरूला (Dr. Himani Narula, Developmental and Behavioural Paediatrician) से भी बात की है। पढ़ते हैं आगे...
1 - पर्सनल स्पेस और निगरानी दोनों है जरूरी
अकसर आपने अपने बुजुर्गों को कहते सुना होगा कि अपने बच्चों के दोस्त बनें और उनकी परेशानियों को समझने की कोशिश करें। लेकिन आज के समय में बच्चों को थोड़ा पर्सनल स्पेस देना भी जरूरी है। बच्चों को पर्सनल स्पेस देने से वे न केवल अपने विचारों को समझ पाते हैं बल्कि अपने आसपास मौजूदा चीजों को स्वीकारनें और समझने की कोशिश भी करना शुरू कर सकते हैं। वहीं अगर माता-पिता हर वक्त उनके साथ रहेंगे तो ऐसे में वे ना खुद को समझ पाएंगे और ना परिस्थिति को। ऐसे में पर्सनल स्पेस जरूरी है। वहीं माता-पिता को निगरानी रखना भी आना चाहिए ।लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर वक्त अपने बच्चों पर नजर रखनी होगी बल्कि निगरानी का मतलब यहां पर यह है कि माता-पिता को पता होना चाहिए कि उनके बच्चों के जीवन में क्या बदलाव हो रहे हैं और वे उस बदलाव को किन तरीकों से अपना रहे हैं।
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2 - डांट और प्यार दोनों है जरूरी
एक्सपर्ट्स की मानें, तो उनका कहना है कि बच्चों को डांटने से वे और जिद्दी बन सकते हैं और जिस काम के लिए बच्चों को डांट पड़ी है उस काम को बार-बार दोहराने की कोशिश भी कर सकते हैं। ऐसे में बच्चों को प्यार से समझाना जरूरी है। लेकिन बता दें कि अनुशासन के लिए हल्की फुल्की डांट बच्चों के लिए जरूरी है। लेकिन बच्चों को सजा देने से जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
3 - दोस्त और परिवार दोनों है जरूरी
जहां एक तरफ माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे परिवार को पूरा सम्मान और समय दें। वहीं दूसरी तरफ बच्चों का दोस्तों के साथ रहना भी जरूरी है। जहां एक तरफ वे परिवार से अपनी संस्कृति और अपनापन सीखते हैं वही दोस्तों से जीवन जीने का तरीका और अकेले परिस्थितियों को कैसे निपटना है उसके बारे में भी सीखते हैं। दोनों का बच्चे की जीवन में होना बेहद जरूरी है। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे दोस्तों और परिवार वालों को कैसे बच्चों के जीवन में जोड़ते हैं।
4 - पढ़ाई और शारीरिक गतिविधियां हैं जरूरी
आज के समय में बच्चे काफी एक्टिव और अपने भविष्य को लेकर काफी सजग हो गए हैं। लेकिन बच्चों के जीवन में पढ़ाई के साथ साथ शारीरिक गतिविधि को जोड़ना भी माता-पिता की जिम्मेदारी है। एक कमरे में बैठकर पढ़ाई करने से बच्चे समाज की चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते। बच्चों को खेलने के लिए बाहर भेजना होगा, जिससे वे समाज में होने वाले बदलावों को देख सकें और उन बदलावों को स्वीकार करने के लिए खुद को प्रेरित भी कर सकें। पढ़ाई के साथ शारीरिक गतिविधियों को जोड़ना भी बेहद जरूरी है। इसका असर न केवल बच्चों के विकास पर पड़ सकता है बल्कि उनका व्यक्तित्व भी मजबूत बन सकता है।
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एक्सपर्ट की राय
यदि आप बच्चों का भविष्य उज्जवल बनाना चाहते हैं ऐसे में माता की छांव के साथ-साथ पिता का हाथ होना भी जरूरी है। पिता बचपन से अपने बच्चों का ख्याल रखें और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। यदि परिवार में 1 से ज्यादा बच्चे हैं तो ऐसे में माता-पिता बच्चों को अपना पूरा समय दें और उनके बीच में भेदभाव की भावना ना आने दें। उदाहरण के तौर पर कुछ मां-बाप की आदत होती है कि वे बड़े बेटे पर पूरी जिम्मेदारी छोड़ देते हैं और छोटे को छोटा समझ कर उसके लिए ओवप्रोटेक्टिव हो जाते हैं लेकिन ऐसा करना गलत है। दोनों के लिए सामान जिम्मेदारी और सामान माहौल का होना जरूरी है। माता-पिता परिवार में अनुशासन आने के लिए कुछ नियमों को बनाएं। जिनका पालन वे खुद भी सख्ती से करें और बच्चों को भी सख्ती से करवाएं।
नोट - ऊपर बताए गए बिंदुओं से पता चलता है कि परवरिश में प्यार और अनुशासन दोनों के बीच तालमेल बैठाना माता-पिता की जिम्मेदारी है। ऐसे में ऊपर बताए गए कुछ बिंदु माता-पिता के बेहद काम आ सकते हैं। लेकिन ध्यान दें कि हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है ऐसे में माता-पिता को धैर्य बनाएं रखने की जरूरत है। तभी वह बच्चे के स्वभाव में बदलाव ला सकते हैं।
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