आंकणों के मुताबिक देश में तकराबन 3 करोड़ लोग अस्थमा (दमा रोग) के पीड़ित हैं। यह रोग बच्चों और वयस्कों दोनों में ही कुछ महीने में उभर कर आ जाता है। अस्थमा एक गंभीर रोग है और इसका समय से और सही उपचार ना होने पर यह जानलेवा साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार अस्थमा के लिए इनहेलशन थेरेपी सबसे कारगर इलाज है, जो भारत में 4 से 6 रुपये प्रतिदिन की कीमत में मिलता है। विश्व अस्थमा दिवस (6 मई) की पूर्व संध्या पर देशभर के अनेक चिकित्सक ने अस्थमा के नियंत्रणकारी उपाचार के विषय में लोगों जागरूक करने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास किया। इसी मौके पर एक संवाददाता सम्मेलन में डॉक्टरों ने बताया कि दमा एक असाध्य रोग है जिसमें लंबे समय तक उचार की ज़रूरत होती है। लेकिन अधिकांश रोगी दवा के सेवन से बेहतर महसूस करने लगते हैं, और कुछ सप्ताह के बाद ही उपचार बंद कर देते हैं। इससे रोग की पुनरावृत्ति का खतरा कफी बढ़ जाता है और रोगी दोबारा दमा के अटैक से ग्रस्त हो सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि दमा से पीड़ित बच्चों में इनहेलेशन थेरेपी की शुरुआत जल्द से जल्द कर देनी चाहिए। इससे बीमारी को काबू करने और उसे अस्थमा अटैक से बचाने तथा उसके फेफड़ों को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।
गौरतलब है कि अधिकांश लोग बार-बार होनी वाली कफिंग, सांस लेने में तकलीफ, छींक आने जैसे लक्ष्णों का उपचार कफ की दवाइयों या बिना डॉक्टर की सलाह के ही दवा ले लेते हैं। साथ ही दमा और इनहेलर्स को लेकर लगों में डर भी व्याप्त है। वहीं, डाक्टर भी ऐसे समय में दमा के लिये 'ब्रोंकियल स्पाज्म' और 'व्हीजिंग कफ' आदि वैकल्पों का इस्तेमाल करते हैं।
डॉक्टर बताते हैं कि दमा और इनहेलर्स को लेकर व्याप्त मिथकों के कारण भारत में लगभग 80 प्रतिशत दमा रोगी ओरल टैब्लेट पर निर्भर है, जबकि इनहेलर ही दमा रोग का सटीक और सुरक्षित इलाज है।
दमा एक सांस की बीमारी है, जो फेफड़ों में फैलती है। इस रोग की स्थिति में फेफड़ों के वायु छिद्रों में सूजन आ जाती है और इससे वायु छिद्र सिकुड़ जाते हैं। जिस कारण फेफड़े विभिन्न संक्रमणों की चपेट में आ जाते हैं और दमा के आघात का खतरा पैदा हो जाता है।
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