
Things To Know Before Water Birth Delivery In Hindi: जब भी हम डिलीवरी की बात करते हैं, तो हम नैचुरल डिलीवरी और सीजेरियन डिलीवरी के बारे में ही जानते हैं। लेकिन, हाल के दिनों में वॉटर बर्थ डिलीवरी की तकनीक को भी महिलाओं द्वारा अपनाया जा रहा है। यह तकनीक अब तक बहुत सामान्य नहीं हुई, इसलिए महिलाओं को इससे जुड़े जोखिम और लाभ के बारे में विशेष जानकारी नहीं है। आज, इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं कि वॉटर बर्थ तकनीक क्या है और इस विकल्प को चुनने से आपको कितन बातों का ध्यान रखना चाहिए। नई दिल्ली के मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की चिकित्सा निदेशक, स्त्री रोग और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शोभा गुप्ता से इस संबंध में विस्तार से जानें।
वॉटर बर्थ क्या है (what Is Water Birth)
मौजूदा समय में डिलीवरी के कई विकल्प मौजूद हैं। महिलाएं अपने पसंद से किसी भी विकल्प को चुन सकती हैं और उस माध्यम के जरिए अपने बच्चे को जन्म दे सकती है। इसी तरह, वॉटर बर्थ तकनीक भी है। इस तकनीक के तहत, प्रसव पीड़ा के दौरान गर्भवती महिला खुद पानी के अंदर, जैसे बड़े टब में या स्वीमिंग पूल में बैठी रहती है। इस दौरान नैचुलर डिलीवरी की तरह अन्य प्रक्रिया से गुजरती है। संभवतः आजकल कई अस्पतालों में भी प्रसव के लिए इस विकल्प को चुना जा रहा है।
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वॉटर बर्थ डिलीवरी से जुड़ी अहम बातें
बॉडी रिलैक्स रहती है
आमतौर पर वॉटर बर्थ प्रक्रिया के गुनगुने पानी का इस्तेमाल किया जाता है। प्रसव पीड़ा के दौरान जब गर्भवती महिला पानी के अंदर बैठती है, तो इससे उसके दर्द में कमी आती है। इस वजह से उसके लिए डिलीवरी थोड़ी-सी आसान हो जाती है।
मूवमेंट सहज हो जाती है
यह बात हर कोई जानता है कि प्रसव पीड़ा बहुत तेज होती है। इस दौरान महिलाएं चाहकर भी मूवमेंट नहीं कर पाती हैं, क्योंकि ऐसा करने से उनकी तकलीफें बढ़ जाती है। वहीं, वॉटर बर्थ की मदद से दर्द में कमी आती है और महिला मूवमेंट करने के लिए खुद को फ्री महसूस करती है।
सहज डिलीवरी हो सकती है
वॉटर बर्थ की वजह से प्रसव पीड़ा कम होती है, इस वजह से डिलीवरी के दौरान होने वाली तकलीफों में भी कमी महसूस की जाती है। दरअसल, गुनगुने पानी में रहने की वजह से सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचता है और प्रसव की प्रक्रिया तुलनात्मक रूप से आसान हो जाती है। इस तरह, महिला के लिए डिलीवरी करना आसाना हो जाता है।
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वॉटर बर्थ डिलीवरी से जुड़े रिस्क
भले ही, आजकल कई महिलाएं वॉटर बर्थ तकनीक की मदद से डिलीवरी करवा रही हैं और इसके कई तरह के फायदों के बारे में बोल भी रही हैं। इसके बावजूद, इससे होने वाले नुकसानों के बारे में जिक्र किए बिना इस विकल्प को चुनना सही नहीं रहेगा। दरअसल, वॉटर बर्थ डिलीवरी के ऑप्शन को चुनने से पहले आपको इसके संभावित नुकसानों के बारे में जान लेना चाहिए।
संक्रमण का खतरा
डिलीवरी के दौरान ब्लीडिंग होना सामान्य बात है। ऐसे में अगर महिला डिलीवरी के पानी के अंदर होती है, तो उसके शरीर से काफी रक्त पानी में बहने लगेगा। इस ब्लड यानी खून में कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं। अगर डिलीवरी के दौरान बच्चा पानी के अंदर मुंह या आंखें खोलता है और इस बैक्टीरिया के संपर्क में आता है, तो इससे उसे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
मेडिकल इमर्जेंसी हो सकती है
अगर गर्भवती महिला को डिलीवरी के दौरान किसी तरह की मेडिकल इमर्जेंसी हो जाती है, तो उसे ट्रीटमेंट मिलने में अतिरिक्त समय लग सकता है। इससे बच्चे और मां के स्वास्थ्य को रिस्क भी हो सकता है। इसके अलावा अगर बच्चे को जन्म के तुरंत बाद जल्द से जल्द पानी से बाहर न निकाला जाए, तो उसे सांस लेने मे तकलीफ हो सकती है, उसके शरीर में पानी भर सकता है और अन्य तरह की समस्याएं भी हो सकती हैं।
डिहाइड्रेशन हो सकती है
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि वॉटर बर्थ के लिए गुनगुने पानी का उपयोग किया जाता है। कुछ महिलाएं, डिलीवरी के लिए थोड़ा ज्यादा गर्म पानी का ऑप्शन चुनती हैं। इससे ओवरहीटिंग हो सकती है, जिससे डिहाइड्रेशन हो सकता है। इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि पानी के तापमान को बहुत सावधानी से मॉनिटर करें और शरीर में पानी की कमी न होने दें।
ध्यान रखने योग्य जरूरी बातें
- कम जोखिम वाली गर्भावस्था के मामले में वॉटर बर्थ फायदेमंद है।
- ऐसे मामलों में जहां जोखिम अधिक हैं और रिस्क हैं, जैसे कि उच्च रक्तचाप, सिजेरियन सेक्शन की हिस्ट्री या बच्चे का समय से पहले जन्म हो रहा है या फिर उसका वजन कम है, तो मां और बच्चे दोनों को निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है और यह सब वॉटर बर्थ में संभव नहीं है।
- यहां तक कि ऐसी स्थितियों में भी जब प्लेसेंटा प्रिविया या योनी से रक्तस्राव जैसी समस्याएं हों, तो पानी में प्रसव संभव नहीं होगा।
- इसके अलावा, जहाँ एक-साथ कई बच्चे जन्म ले रहे हों, वहां इस तकनीक का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
डॉक्टर गाइडेंस जरूरी है
डॉ. शोभा गुप्ता ने जोर देकर कहा कि सभी परिस्थितियों में चिकित्सा मार्गदर्शन यानी डॉक्टर की गाइडेंस की जरूरत होती है। डॉक्टर की सलाह लेना और आवश्यक सावधानी बरतना महत्वपूर्ण है। प्रक्रिया को विशेषज्ञ और शिक्षित मिडवाइव्स की उपस्थिति में किया जाना चाहिए ताकि बच्चा पानी न निगल ले और सही समय पर उसे पानी से बाहर निकला जा सके।
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