
मरीजों के शरीर से जानलेवा बीमारी एड्स के वायरस का नई स्टेम सैल थेरैपी से पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा।
जानलेवा बीमारी एड्स को काबू करने की दिशा में शोधकर्ताओं के हाथ एक और बड़ी कामयाबी लगी है। उन्होंने एक नई स्टेम सेल थैरेपी को खोज निकाला गया है, जिसने मरीजों के शरीर से इस वायरस का पूरी तरह से खात्मा कर दिया है।
हारवर्ड मेडिकल स्कूल से संबद्ध शोधकर्ता टिमोथी हेनरीख ने कुआ लालंपुर में चल रही अंतर्राष्ट्रीय एड्स सोसायटी की एक कांफरेंस को इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दो एड्स मरीजों का अमेरिका के बोस्टन में उपचार किया गया और इस दौरान उन्हें यह स्टेम सेल थैरेपी दी गई। ये दोनों रक्त कैंसर के एक प्रकार लिम्फ्कोमा का शिकार हो चुके थे, जिसके बाद उन्हे यह थैरेपी दी गई।
स्टेम सेल प्रत्यारोपण के बाद इन दोनो मरीजों के जिस्म से एड्सवायरस का नामोनिशान मिट गया। इनमें इस कदर सुधार आ गया कि एक मरीज 15 सप्ताह से एडस उपचार में काम आने वाली एंटी रेट्रोवायरल ड्रग नहीं ले रहा है जबकि दूसरे को यह दवा छोडे हुये सात सप्ताह का समय हो गया है।
एड्स के जानलेवा रोग से विश्वभर में 3.4 करोड लोग जूझ रहे हैं और स्टेम सेल थैरेपी बड़े पैमाने पर इसका वाजिब हल नहीं है क्योंकि यह बहुत महंगा उपचार है। हालांकि इस नए तरीके के खोजे जाने से इस असाध्य रोग पर काबू पाने की दिशा में नये रास्ते खुलेंगे।
डॉक्टर हेनरिख ने पिछले वर्ष जुलाई में बताया था कि इस उपचार को लेंने वाले दोनों मरीजों के खून में एचआईवी मौजूद तो है लेकिन बेहद नगण्य मात्रा में। उन्होंने बताया था कि उस समय वे बीमारी को काबू करने के लिये दवायें ले रहे थे।
इस नई स्टेम सेल थैरेपी का खोजा जाना बर्लिन मरीज के नाम से पहचाने जाने वाले टिमोथी रे व्राऊन के मामले की याद दिलाता है जिन्हें रकत कैंसर (ल्यूकीमिया) हो जाने के बाद वर्ष 2007 में बोन मैरो प्रत्यारोपण दिया गया। हालांकि उस मामले में और इन दोनों मरीजों के मामले में जमीन आसमान का फर्क है। टिमोथी को जहां एक बेहद दुलर्भ म्यूटेशन से पीड़ित व्यक्ति का बोन मैरो दिया गया वहीं इन दोनो मरीजों को दिये गये स्टेम सेल एक सामान्य दाता से लिये गये थे।
इस शोध को मदद देने वाली संस्था फ्काऊंडेशन फ्कार एड्स रिसर्च के मुख्य अधिशासी केविन राबर्ट फ्रकोस्ट ने कहा कि डॉकटर हेनरिख ने एचआईवी को जड़ से मिटाने की दिशा में एक बिल्कुल ही नया रास्ता खोल दिया है।
उल्लेखनीय है कि ह्यूमन इम्यूनो डिफ्केसियेंसीवायरस (एचआईवी) का आज से तीस वर्ष पहले पता लगाया गया था। असुरक्षित यौन संबंधों, संक्रमित रक्त तथा दूसरे तरीकों से फैलने वाला यह संक्रमण व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रहार करता है, जिसकी वजह से संक्रमित व्यक्ति कई तरह के दूसरे संक्रमणों तथा कैंसरों का शिकार बन जाता है।
हालांकि आज के समय में यह संक्रमण मौत का वारंट नहीं रह गया है क्योंकि एंटी रेट्रोवायरल दवायें इसे काबू में रखकर रोगी को कई दशकों तक जीवित रहने का समय दे देती हैं। भारत के जेनरिक दवा निर्माता अफ्रिका तथा दूसरे गरीब देशों को इन दवाओं की सबसे बडी आपूर्तिकर्ता हैं। कई दूसरी पश्चिमी कंपनियां भी इन दवाओं के निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय हैं।
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