आज के समय में किसी भी व्यक्ति के लिए स्वस्थ रहना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी छोटी से बड़ी स्वास्थ्य समस्या से परेशान रहता है। किसी को स्किन से जुड़ी समस्या है, तो कोई व्यक्ति पेट की जुड़ी समस्याओं से परेशान रहता है। इन्हीं समस्याओं में क्रॉनिक किडनी डिजीज जैसी गंभीर बीमारी शामिल है। क्रॉनिक किडनी डिजीज एक ऐसी स्थिति है, जिसमें समय के साथ व्यक्ति के किडनी के काम करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। वर्तमान समय पर यह समस्या विश्व स्तर पर एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता बन चुकी है, खासकर उन लोगों में जो मेटाबोलिक डिसऑर्डर, मोटापा, डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित होते हैं। क्रॉनिक किडनी डिजीज से बचाव के लिए जरूरी है कि आप इसके चरणों के बारे में समझें और समय रहते इसके लक्षणों को पहचान कर बीमारी को बढ़ने से रोकने की कोशिश करें। तो आइए नई दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर के अध्यक्ष - नेफ्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट मेडिसिन और किडनी ट्रांसप्लांट के डॉ. दिनेश खुल्लर से जानते हैं कि क्रोनिक किडनी डिजीज के क्या स्टेज हैं?
क्रोनिक किडनी डिजीज के स्टेज - Stages Of Chronic Kidney Disease in Hindi
स्टेज 0.– कोई जोखिम कारक नहीं
क्रॉनिक किडनी डिजीज का यह स्टेज उन लोगों के लिए है, जिनमें किसी भी तरह का मेटाबोलिक, कार्डियोवैस्कुलर या किडनी से जुड़े जोखिम नहीं होते हैं। व्यक्ति का वजन नॉर्मल होता है, ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है और उसकी लाइफस्टाइल भी एक्टिव होती है। इस स्थिति में व्यक्ति को CKD विकसित होने की संभावना बहुत कम होती है। हालांकि, हेल्दी लाइफस्टाइल बनाए रखना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में है ताकि भविष्य में क्रॉनिक किडनी डिजीज से जुड़े जोखिम न हो।
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स्टेज 1.- असामान्य या ज्यादा फैट टिशू का विकास
इस स्टेज में आपके शरीर में फैट टिशू (वसा ऊतक) की मात्रा सामान्य से ज्यादा हो जाती है। यह फैट अक्सर "डिसफंक्शनल" होता है, यानी यह शरीर के मेटाबोलिक कार्यों में रुकावट का कारण बनता है। इस स्टेज में व्यक्ति को मोटापा, खासकर पेट के आसपास नजर आता है, जो इसका एक अहम लक्षण है। यह स्थिति शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस, हल्के इंफ्लेमेशन, और हार्मोनल असंतुलन को बढ़ावा देती है, जो आगे चलकर मेटाबोलिक समस्या का कारण बन सकती है।
स्टेज 2.- मेटाबोलिक जोखिम कारक और उनकी शुरूआत
स्टेज 2 में क्रॉनिक किडनी डिजीज से पीड़ित व्यक्ति में मेटाबोलिक जोखिम ज्यादा नजर आने लगते हैं, जिसमें हाई ब्लड प्रेशर, टाइप 2 डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई BMI शामिल है। इसके साथ ही, किडनी फंक्शन में कमी भी होने लगती है। दिखाई देने लगती है, लेकिन लक्षण आमतौर पर नजर नहीं आते हैं। मेटाबोलिक रिस्क फैक्टर्स CKD को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए अगर इस अवस्था में व्यक्ति को सही इलाज न मिले या इन समस्याओं पर कंट्रोल न किया जाए तो CKD और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
स्टेज 3.- क्रॉनिक किडनी डिजीज सिंड्रोम में सबक्लिनिकल कार्डियोवैस्कुलर रोग
इस स्टेज में किडनी डिजीज सिंड्रोम धीरे-धीरे एक बीमारी का रूप लेती है। इस स्टेज में दिल और ब्लड वेसल्स पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है, लेकिन कोई खास लक्षण नजर नहीं आते हैं। जैसे, किसी व्यक्ति में दिल की परत मोटी हो सकती है, धमनिया सख्त हो सकती हैं, या ब्लड वेसल्स में हल्के नुकसान हो सकते हैं।
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स्टेज 4.- क्रॉनिक किडनी डिजीज में क्लीनिकल कार्डियोवैस्कुलर रोग
यह क्रोनिक किडनी रोग का सबसे गंभीर स्टेद है, जिसमें व्यक्ति को गिल से जुड़ी बीमारियों के बारे में या इसके लक्षण साफ दिखाई देने लगते हैं। इस चरण में पीड़ित के किडनी के काम करने की क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है, और व्यक्ति को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है। यह स्टेज CKD, मेटाबोलिक सिंड्रोम और दिल से जुड़ी बीमारी के बीच के कनेक्शन को दिखाता है।
निष्कर्ष
क्रोनिक किडनी डिजीज के अलग-अलग स्टेज को समझने और समय पर होने वाली समस्याओं का इलाज करने पर इसके रोकथाम और साइड इफेक्ट्स से बचने में मदद मिल सकती है।
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