रीढ़ की हड्डी में टीबी क्यों और कैसे होता है? डॉक्टर से जानें इसके कारण, लक्षण, खतरे और इलाज

रीढ़ की हड्डी में टीबी के शुरूआती लक्षणों को पहचानना जरूरी है। अगर इसका समय पर इलाज नहीं मिला तो मरीज के लिए परेशानी बढ़ जाती है।  
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रीढ़ की हड्डी में टीबी क्यों और कैसे होता है? डॉक्टर से जानें इसके कारण, लक्षण, खतरे और इलाज


ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी जिसे हिंदी में तपेदिक कहा जाता है। टीबी एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है।  इस बैक्टीरिया को माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है। यह अक्सर फेफड़ों को प्रभावित करता है। हम यह जानते हैं कि फेफड़ों का टीबी अक्सर संक्रमित व्यक्ति के द्वारा खांसने, छींकने, थूकने से फैलता है। यह संक्रमित कण जब किसी स्वस्थ व्यक्ति के अंदर सांस लेने पर शरीर में जाते हैं तब वह भी संक्रमित हो जाता है। फेफड़ों के टीबी की तरह ही रीढ़ की हड्डी का टीबी होता है। रीढ़ की हड्डी का टीबी क्या है, यह कैसे फैलता है, इसकी पहचान कैसे होती है, इन सभी सवालों के जवाब दिए दिल्ली के धर्मशिला अस्पताल में हड्डी रोग विभाग में वरिष्ठ डॉक्टर मोनू सिंह ने। तो आइए विस्तार से स्पाइन टीबी को समझते हैं। 

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रीढ़ की हड्डी का टीबी क्या है?

इस सवाल का जवाब देते हुए डॉक्टर मोनू सिंह ने कहा कि माइक्रोबैक्टिरियम नामक कीटाणु जब रीढ़ की हड्डी के ऊतक में चला जाता है और वहां पर संक्रमण पैदा करता है तब उसे रीढ़ की हड्डी का टीबी (Spinal Tuberculosis) कहा जाता है।

कैसे पहचानें रीढ़ की हड्डी के टीबी को

डॉ. मोनू सिंह ने रीढ़ की हड्डी के टीबी के निम्न लक्षण बताए हैं-

  • पीठ में दर्द
  • शारीरिक कमजोरी महसूस करना
  • भूख न लगना
  • बुखार आना
  • साइनस संबंधी परेशानियां होना
  • शरीर के निचले हिस्से में लकवा आना
  • मूत्राशय संबंधी परेशानियां
  • वजन कम होना
  • रात के समय बुखार आना
  • दिन में बुखार उतर जाना
  • मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं
  • हड्डी कमजोर हो जाती है
  • शीत फोड़ा बन जाना

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रीढ़ की हड्डी में टीबी के कारण

रक्त जनित संक्रमण

टीबी एक इंफेक्शन है जब भी कोई इस संक्रमण की चपेट में आता है तब यह बैक्टीरिया खून में चला जाता है। तो वो बैक्टीरिया खून की कोशिकाओं से रक्त वाहिकाओं से होता हुआ शरीर में रीढ़ की हड्डी में, घुटने में, छाती में, फेफड़े में आदि में जा सकता है। शरीर में जिस जगह यह बैक्टीरिया जाता है वहां रुककर पस बनाने लग जाता है। तो वहां पर संक्रमण हो जाता है। स्पाइन ट्यूबरक्लोसिस रक्त जनित इंफेक्शन है। बैक्टीरिया पहले ब्लड में जाएगा, जबकि फेफडो़ं का इंफेक्शन सांस लेने से शरीर में जाता है। बैक्टीरियम का जो यह रक्त जनित इन्फेक्शन यह शरीर में कहीं लॉज (lodge) हो सकता है। 

डॉ मोनू सिंह का कहना है कि भारत में यह बैक्टीरिया काफी लोगों में पाया जाता है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह बैक्टीरिया सभी को इन्फेक्शन हो। अगर इस बैक्टीरिया का एक्सपोजर किसी व्यक्ति में हो भी गया है और अगर उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी है तो वह इस बैक्टीरिया को दबा देती है। 

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कमजोर इम्युनिटी

कमजोर इम्युनिटी के कारण यह माइक्रोबैक्टीरियम बैक्टीरिया शरीर में इंफेक्शन पैदा कर सकता है। जिन लोगों की इम्युनिटी कम है जो लोग कुपोषण का शिकार हैं, या जिनको किसी तरह की बीमारी जैसे कैंसर, एएचआईवी-एड्स, अनियंत्रित मधुमेह, हाइपोथायरॉयड, स्टेरॉयड के मरीज   आदि हैं, उनमें यह इंफेक्शन मिल जाता है और रीढ़ की हड्डी के अंदर इंफेक्शन पैदा कर सकता है। 

डॉक्टर रीढ़ की हड्डी के टीबी का पता कैसे लगाते हैं?

डॉक्टर मोनू सिंह का कहना है कि रोग का पता लगाने के लिए नैदानिक संदेह (clinical suspicion) किया जाता है। जब किसी पेशेंट को स्पाइन टीबी शुरू होता है तो उसे सूजन के साथ दर्द शुरू होता है। दर्द के साथ में बुखार, ठंड लगना, रात के समय बुखार आता है, भूख मर जाती है, शीत फोड़ा (cold abscess) बन जाते हैं। जब पस बनता है तब इस पस के पास बहुत ज्यादा इंफ्लामेशन नहीं होता है। इसमें पस तो होता है लेकिन उतना लाल नहीं होता जितना कोई आम पस होता है। जब यह पस किसी हड्डी में होता है तो वहां पर बहुत दर्द होता है। 

डॉक्टर मोनू सिंह का कहना है कि जब हमारे पास कोई मरीज ऐसे क्लीनिकल फीचर्स के साथ आता है, तब हम शुरू में पेशेंट की खून की जांच कराते हैं। खून की जांच में इंफ्लेमेटरी मार्कर जैसे इएसआर और सीआरपी काफी मात्रा में बढ़े होते हैं। अगर वो बहुत ज्यादा बढ़े होते हैं तब डॉक्टर संदेह करते हैं कि कोई इंफेक्शन है। 

डॉक्टर मोनू सिंह का कहना है कि रीढ़ की हड्डी के टीबी का पता लगाने के लिए कई बार एक्सरे भी कराया जाता है लेकिन उसमें यह बीमारी जल्दी पकड़ में नहीं आती। क्योंकि हड्डियां उतनी खराब नहीं होतीं। हो सकता है कि कई बार ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण दिखाई दें। लेकिन अक्सर हडिड्यां नॉर्मल ही दिखाई देती हैं। एक्सरे के अंदर लगभग 30 से 40 फीसद हड्डी शामिल हो तब दिखती है। लेकिन कई बार एक्सरे के अंदर भी हड्डी अगर गल रही है या टेढ़ी हो रही है, या फ्रैक्चर आ रहा है तो उसका पता चल जाता है। 

एक्सरे के अलावा इस टीबी का डायग्नोस सीटी-एमआरआई से भी किया जाता है। डॉक्टर मोनू सिंह का कहना है कि सीटी-एमआरआई में काफी स्पष्ट स्थिति का पता चलता है। उसमें डॉक्टर्स को पता चल जाता है कि कौन सा टिशु इन्वॉल्व है। कितनी हड्डी खराब है। हड्डी के आसपास कितने फोड़े बन गए हैं और कहां बने हैं। डॉक्टर का कहना है कि नीडल बायोप्सी के द्वारा भी रीढ़ की हड्डी के टीबी का पता चलता है।  

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रीढ़ की हड्डी के टीबी का इलाज

एंटी-ट्यूबरक्युलर थेरेपी 

इस थेरेपी के कुछ ड्रग्स हैं व अन्य दवाएं। पेशेंट को किस तरह का टीबी है उसके अनुसार एंटी-ट्युबरक्युलर थेरेपी शुरू की जाती है। इन दवाओं का एक प्रोटोकॉल होता है जिसके अनुसार इलाज किया जाता है। डॉक्टर का कहना है कि आमतौर पर 6 महीने तक टीबी ठीक हो जाता है लेकिन स्पाइन टीबी में 6 महीने से भी ज्यादा इलाज चल सकता है। ऐसा इसलिए भी होता है कि उन जगहों पर वापस टीबी की वापसी न हो। 

कई बार 16 से 18 महीने तक भी दवाएं चलानी पड़ती हैं। इन दवाओं के साथ-साथ साइड इफैक्ट का ध्यान रखने के लिए कई और जांचें हर महीने कराई जाती हैं। ताकि मरीज को दवाओं से साइड इफैक्ट न हो। डॉक्टर का कहना है कि टीबी का पूरा इलाज कराना जरूरी है। अगर पूरी दवा नहीं ली तो मरीज को फिर से टीबी हो सकता है और यह दूसरा टीबी घातक होता है।

रीढ़ की हड्डी के टीबी से बचाव कैसे करें?

डॉ. मोनू सिंह का कहना कि रीढ़ की हड्डी का टीबी पता नहीं चल पाता है। लेकिन फिर भी निम्न बचावों को अपनाया जा सकता है-

  • गंदगी से बचें।
  • हाथ धोकर खाना खाएं। साफ बर्तन में खाना खाएं।
  • साफ पानी पीएं।
  • हाइजीन का पूरा ध्यान रखें।
  • भीड़भाड़ से बचें।
  • पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन लें।
  • शारीरिक एक्सरसाइज करें।

रीढ़ की हड्डी के टीबी को नजरअंदाज न करें। क्योंकि ट्यूबरक्लोसिस का जब पस बनता है तो यह नर्व्स पर दबाव डाल सकता है जो लकवा मार सकता है। इसलिए इसके लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है ताकि मरीज को समय पर इलाज मिल सके। 

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