शिफ्ट की नौकरी करीब 1500 जीन्स को नुकसान पहुंचा सकती है। एक ताजा शोध में यह बात सामने आयी है। इससे यह पता चलता है कि आखिर क्यों इस तरह की नौकरी हृदय की समस्याओं का बड़ा कारण होती है।
सोने के वक्त में बाधा, जो जैट लेग के कारण भी हो सकती है, स्तन कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज और अन्य कई जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ा देती है। इस शोध में यह बात सामने आयी है कि इससे शरीर का 24 घंटे का प्राकृतिक चक्र बिगड़ जाता है, जिससे जीन्स की लय और ताल बिगड़ जाती है।
यह बाधा अगर लंबे समय तक चलती रहे, तो इसका शरीर पर काफी बुरा असर पड़ता है। इसका असर जानने के लिए शोधकर्ताओं ने 22 प्रतिभागियों को 28 घंटे तक बिना प्राकृतिक रोशनी और अंधेरे के रखा। परिणाम यह हुआ कि इससे उनके सोने और जागने का चक्र चार घंटे तक आगे खिसक गया। अपने सामान्य चक्र पर पहुंचने के लिए उन्हें एक दिन में 12 घंटे तक सोना पड़ा।
प्रतिभागियों के रक्त नमूना जांच के मुताबिक इस एक प्रयोग के बाद ही प्रतिभागियों की 'सिरकेडिन रिद्धम' प्रदर्शित करने वाले जीन्स में छह गुना कमी आ गयी। इस रिद्धम का समय लगभग 24 घंटे होता है।
सर्रे के स्लीप रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर डर्क-जेन डिज्क का कहना है कि हमारे जीन्स में करीब छह फीसदी की अपनी 'सिरकेडिन रिद्धम' होती है। इसका अर्थ यह है कि दिन के किसी अन्य समय में इनकी क्रियाशीलता दूसरे जीन्स के मुकाबले अधिक होती है। उन्होंने आगे कहा कि हमारा मानना है कि जो जीन्स दिन में अधिक क्रियाशील होते हैं, वे इम्यून सिस्टम से संबंधित हो सकते हैं वहीं रात वाले जीन्स अन्य जीन्स को रेग्युलेट करते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर हम लोगों पर शिफ्ट पर दबाव डालते हैं, तो हम एक प्राकृतिक प्रक्रिया को बुरी तरह बाधित कर रहे हैं। इससे यह बात साफ हो जाती है कि आखिर क्यों शिफ्ट की नौकरी हृदय समस्याओं की एक बड़ी वजह है। मानव शरीर में कुल 24 हजार जीन्स होते हैं और करीब 1400 सोने की आदत बदलने से प्रभावित हो सकते हैं ।
प्रोफेसर डिज्क ने कहा कि इस अध्ययन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागी 20 से 30 वर्ष की आयु के बीच थे। और यह शोध अच्छी तरह नियंत्रित प्रयोगशालीय परिस्थितियों में किया गया ।
उन्होंने कहा कि वे इस शोध में अधिक प्रतिभागियों को शामिल करना चाहते थे, लेकिन ऐसा कर पाना मुश्किल था। उन्होंने कहा कि हम चौबीसों घंटे रक्त के नमूने लेते रहे। प्रोफेसर को उम्मीद है कि नेशनल अकादमी ऑफ साइंस में प्रकाशित यह शोध भविष्य में होने वाले शोधों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।
Source- Daily Mail
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