शुरुआती दिनों में स्कूल जाते समय बच्चे का रोना स्वाभाविक है, लेकिन अगर वह अकसर स्कूल जाने से मना करे तो इसे गंभीरता से लें क्योंकि यह स्कूल रिफ्यूजल की भी समस्या हो सकती है। जिन घरों में छोटे बच्चे होते हैं, वहां सुबह के वक्त अक्सर स्कूल जाते वक्त ड्रामा देखा जाता है। नए एडमिशन के बाद शुरुआती एक-दो हफ्तों तक बच्चों का रोना-मचलना स्वाभाविक है, लेकिन बच्चे अक्सर ऐसी हरकतें करते हों तो इस पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है क्योंकि उनकी यह आदत स्कूल रिफ्यूज़ल की मनोवैज्ञानिक समस्या भी हो सकती है।
क्या है समस्या
दरअसल यह पूरी तरह मनोवैज्ञानिक समस्या है। जब बच्चे का मन किसी भी हाल में स्कूल जाने को तैयार नहीं होता तो मन का साथ देने के लिए उसके शरीर में अपने आप पेटदर्द, सिरदर्द, उल्टी और बुखार जैसे लक्षण पैदा होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे का मानसिक तनाव शारीरिक लक्षणों के रूप में प्रकट होने लगता है। लेकिन जैसे ही पेरेंट्स उन्हें स्कूल न भेजने का निर्णय लेते हैं तो थोड़ी ही देर में ये सारे लक्षण जादुई ढंग से अपने आप गायब हो जाते हैं।
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बच्चे को देखकर यह यकीन कर पाना मुश्किल होता है कि थोड़ी देर पहले इसकी तबीयत खराब थी। इसलिए अगर बच्चे को ऐसी कोई भी समस्या हो तो उसे डांटने-फटकारने के बजाय परेशानी की असली वजह जानने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चे जानबूझ कर ऐसा नहीं करते बल्कि उनके अवचेतन मन की सक्रियता की वजह से उनका शरीर अपने आप ही कुछ बीमारियों के लक्षण पैदा कर लेता है।
अगर आपके बच्चे के साथ भी ऐसी ही समस्या है तो उसे दूर करने के लिए इन सुझावों पर अमल ज़रूर करें :
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- अगर स्कूल जाते वक्त बच्चे को बुखार या उल्टी जैसी समस्या हो तो किसी चाइल्ड स्पेशलिस्ट से उसका कंप्लीट हेल्थ चेकअप कराएं। इससे उसे यह मालूम हो जाएगा कि वाकई उसके शारीरिक स्वास्थ्य में गड़बड़ी है या उसे कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है।
- अगर दोस्तों, टीचर या स्कूल के किसी केयर टेकर की वजह से बच्चे को कोई परेशानी हो तो इस बारे में उसकी क्लास टीचर से खुलकर बात करें और उनके साथ मिलकर इस समस्या का हल ढूंढने की कोशिश करें।
- शाम को फुर्सत के पलों में बच्चे से उसके स्कूल की एक्टिविटीज, गेम्स और दोस्तों के बारे में बातचीत करें।
- उसके साथ अपने स्कूल के दिनों की रोचक यादें शेयर करें। इससे वह भी निडर होकर आपके साथ अपने दिल की सारी बातें शेयर करेगा।
- अगर बच्चा स्कूल जाने से मना करे तो उसे प्रेरित करने के लिए कभी-कभी उसे उसकी मनपसंद चॉकलेट या टॉयज़ दे सकती हैं, पर ध्यान रहे कि ये चीज़ें उसे स्कूल से लौटने के बाद दी जाएं और हमेशा ऐसे प्रलोभन देना ठीक नहीं है।
- बच्चे को अपनी बारी का इंतज़ार और शेयरिंग ज़रूर सिखाएं, ताकि वह स्कूल के नए माहौल में दोस्तों के साथ आसानी से एडजस्ट कर सके।