एक नए शोध के अनुसार, कुशिंग सिंड्रोम के रोगी बच्चों में चिंता, अवसाद, आत्महत्या व अन्य मानसिक समस्याओं का अधिक खतरा होता है। फिर भले ही बच्चों में इस रोग का पूरी तरह से इलाज क्यों न हो चुका हो। इलाज हो जाने के बाद भी कुशिंग सिंड्रोम के रोगी बच्चों को भविष्य में उपरोक्त जोखिमों से जूझना पड़ सकता है। चलिये विस्तार से जानें, क्या है खबर -
कुशिंग सिंड्रोम एक प्रकार का चयापचय विकार होता है, जो तनाव हार्मोन कार्टिसोल का स्तर काफी बढ़ जाने के कारण होता है। साथ ही एड्रीनल ग्लैंड्स के ट्यूमर और अन्य शरीर के हिस्सों में भी कार्टिसोल का आवश्यकता से अधिक उत्पादन होता है। कुशिंग सिंड्रोम बच्चों और वयस्क दोनों को हो सकता है।
इस नए अध्ययन के लिए शोधाकर्ताओं ने साल 2003 से 2014 तक के कुशिग सिंड्रोम पीड़ित 149 बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य इतिहास की गहन समीक्षा की।
यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) से इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक के शब्दों में, “हमारा अध्ययन बताता है कि जो चिकित्सक कुशिंग सिंड्रोम पीड़ितों की देखभाल कर रहे हैं। उनके लिए यह आवश्य है कि वे रोगियों की मौलिक चिकित्सा पूरी हो जाने के पश्चात रोगी की अवसाद संबंधी मानसिक समस्याओं की जांच भी समय समय पर करते रहें। क्योंकि रोगी अधिकाँश मामलों में खुद नहीं बताते हैं कि वे अवसादग्रस्त हैं, इसलिए रोगियों में इस तरह की समस्याओं का पता लगाने का यह एक अच्छा उपाय हो सकता है।”
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Source - Csrf.Net
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