डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है, जिससे आज करोड़ों लोग प्रभावित हैं। डायबिटीज होने पर शरीर में पर्याप्त इंसुलिन न बन पाने के कारण रोगी द्वारा लिया गया शुगर ऊर्जा देने के बजाय खून में घुलने लगता है। खून में शुगर की मात्रा बढ़ने के कारण शरीर के अंगों को काम करने में परेशानी होती है। डायबिटीज दो तरह का होता है, टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज। दुनिया भर में होने वाले डायबिटीज के मामलों में अधिकतर मामले टाइप-2 डायबिटीज के होते हैं। टाइप टू डायबिटीज से होने वाली अधिकतर समस्यायें धमनियों और तंत्रिका प्रणाली पर असर डालती हैं। डायबिटीज के मरीजों को रिस्ट्रिक्टिव लंग्स डिजीज यानी आरएलडी रोग का खतरा सामान्य लोगों से ज्यादा होता है। आइए आपको बताते हैं क्या है आरएलडी रोग।
क्या है रिस्ट्रिक्टिव लंग डिजीज या आरएलडी
फेफड़े के जो रोग लंबे समय तक मरीजों को परेशान करते हैं, उनमें रिस्ट्रिक्टिव लंग डिजीज भी एक है। आप जानते हैं कि हमारे फेफड़ों में सांस द्वारा खींची हुई हवा भरती है, तो ये फूलते हैं। मगर डिस्ट्रिक्टिव लंग डिजीज की स्थिति में फेफड़े पूरी तरह नहीं फैल पाते हैं इसलिए फेफड़ों में हवा कम भरती है और शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इसी वजह से रिस्ट्रिक्टिव लंग डिजीज के मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है और उसके सांस लेने की गति भी धीरे हो जाती है।
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क्या हैं रिस्ट्रिक्टिव लंग डिजीज के लक्षण
- सांस लेने में परेशानी होना
- छोटी और उथली सांस ले पाना
- शरीर में ऑक्सीजन की कमी से दम घुटने जैसा महसूस होना
- गंभीर और दमघोंटूं खांसी की समस्या
- दिनभर थका हुआ महसूस करना और शरीर में ऊर्जा की कमी
- डिप्रेशन
- अचानक वजन कम होना
- सीने में तेज दर्द
डायबिटीज के मरीजों को आरएलडी का खतरा
टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों को आरएलडी यानी रिस्ट्रिक्टिव लंग डिजीज का खतरा सामान्य से ज्यादा होता है। पल्मोनरी फाइब्रोसिस भी एक तरह का आरएलडी रोग है। डायबिटीज के मरीजों को अक्सर सांस लेने में तकलीफ और शरीर में ऑक्सीजन की कमी जैसी परेशानियों से जूझना पड़ता है। लंबे समय तक डायबिटीज होने पर इस रोग का खतरा बहुत ज्यादा होता है।
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टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज वो है जिसमें शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता और टाइप 2 डायबिटीज वो है जिसमें शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता या बनाए गए इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इंसुलिन ही हमारी कोशिकाओं के सहारे ग्लूकोज को पूरे शरीर में पहुंचाता है। जब इंसुलिन नहीं बन पाता या कम बन पाता है तो ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं जा पाता और खून में घुलता रहता है। इसी कारण खून में शुगर का लेवल बढ़ता जाता है। टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों में चूंकि इंसुलिन बिल्कुल नहीं बन पाता इसलिए ऐसे मरीजों को इंजेक्शन से इंसुलिन की डोज दी जाती है। वहीं टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में बनने वाले इंसुलिन का सही तरह से इस्तेमाल नहीं हो पाता इसलिए इसके रोगियों का इलाज दवाओं और परहेज के माध्यम से किया जाता है।
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