Positive India: कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ इन दिनों किन परेशानियों से गुजर रहे हैं?

डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ की लड़ाई सिर्फ कोरोना वायरस से नहीं, बल्कि समाज के उन तत्वों से भी है, जो पढ़े लिखे होकर भी कुछ नहीं समझना चाहते हैं।
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Positive India: कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ इन दिनों किन परेशानियों से गुजर रहे हैं?

इस समय पूरा देश लॉकडाउन की स्थिति में है। देशभर के लोगों को अपने-अपने घरों में रहने को कहा गया है, ताकि लोग एक-दूसरे के संपर्क में न आएं और कोरोना वायरस के मामलों को बढ़ने से रोका जा सके। लेकिन इसी बीच ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो अपनी जान की परवाह किए बिना रोजाना ही इन कोरोना वायरस के संक्रमितों के संपर्क में आ रहे हैं। जी हां, हां बात कर रहे हैं देश के असली हीरोज, डॉक्टर्स, नर्सों और अन्य मेडिकल स्टाफ की, जो इस समय देश के अस्पतालों और मेडिकल इंस्टीट्यूट्स में दिनरात काम पर लगे हुए हैं।

परिवार बाद में... मरीज पहले

आपके लिए सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब है कि आप अपने परिवार के साथ रहें और दूसरों के संपर्क में न आएं। लेकिन इन डॉक्टर्स के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब है कि मरीजों के संपर्क में रहें और परिवार के संपर्क में न आएं। मेदांता द मेडिसिटी के Institute of Critical Care and Anaesthesiology के चेयरमैन डॉ. यतिन मेहता कहते हैं, "मेरी बहू अपने मायके से वापस आना चाहती है, लेकिन मैं उसे तब तक नहीं बुला सकता तब तक कि ये वायरस पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता।" डॉ. मेहता को रोजाना ऐसे सैकड़ों मरीजों के संपर्क में आना पड़ रहा है, जो फ्लू जैसे लक्षणों से जूझ रहे हैं और कोरोना वायरस के संभावित मरीज हो सकते हैं। डॉ. मेहता और इन जैसे हजारों डॉक्टर्स ने बतौर डॉक्टर बीमारी से लड़ने और बीमार को बचाने की शपथ ली है, फिर चाहे कोई भी स्थिति हो, कोई भी समय हो।

डॉक्टर्स से बदसलूकी के मामले आए हैं सामने

ये डॉक्टर्स रोज बिना थके घंटों तक लोगों का इलाज कर रहे हैं। मगर क्या इतने संवेदनशील समय में उन्हें पर्याप्त सपोर्ट मिल रहा है? आए दिन आप अखबारों और टीवी चैनल्स पर ये खबर देखते होंगे कि आम लोग इन डॉक्टर्स के साथ कैसे पेश आ रहे हैं। मेडिकल स्टाफ के साथ बदतमीजी, इंदौर में मेडिकल स्टाफ पर पथराव आदि घटनाएं आपके सामने से होकर गुजरी होंगी। ऐसे मामले भी देखे गए हैं, जहां इन डॉक्टर्स को इनके किराए के मकान खाली करवा लिए गए, ताकि इनके जरिए सोसायटी में वायरस न आ जाए। ऐसे समय में हम भूल जाते हैं कि ये वही डॉक्टर हैं, जो हमारे संक्रमित होने पर दिन-रात अस्पताल में अगर नहीं काम करेंगे, तो हम मर जाएंगे। ऐसा नहीं है कि इन डॉक्टर्स को अपनी चिंता नहीं है या वायरस का खतरा इन्हें नहीं है। इन सबके बावजूद ये डॉक्टर्स रोजाना अपने-अपने घरों से निकलते हैं कि वो कुछ मरीजों को कुछ दिन की जिंदगी और दे सकें।

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एक डॉक्टर की जिंदगी क्या हो गई है

डॉ. मेहता बताते हैं कि उनका रोजाना का रूटीन बन गया है- घर वापस लौटने के बाद सबसे पहले नहाना, फिर अपनी सभी चीजों को धोना और उसके बाद कहीं जाकर परिवार के लोगों से मिलना। डॉ. मेहता बताते हैं, "सोसायटी की बात तो छोड़िए, मेरे दोस्त और साथ काम करने वाले लोग भी आजकल दूर से ही हाथ हिलाते हैं और कोशिश करते हैं कि मेरे संपर्क में न आएं।" लेकिन इतने सब के बाद भी डॉ. मेहता जानते हैं कि उनकी ड्यूटी ही सर्वोपरि है।

डॉक्टर मेहता के अनुसार इस समय डॉक्टरों पर सिर्फ कोरोना वायरस के मरीजों के कारण ही बोझ नहीं बढ़ा हुआ है, बल्कि इसके डर के कारण भी बढ़ा हुआ है। इन दिनों रोज सैकड़ों फोन आते हैं, जो लोग बीमारी, टेस्ट और दवाओं के बारे में पूछते हैं। वो बताते हैं, "हम हर किसी का टेस्ट नहीं कर सकते और ही हर किसी को टेस्ट की जरूरत है। इसलिए हमें लोगों को ये समझाने में बहुत प्रयास करना पड़ता है कि वो डरें नहीं। हर कोई डरा हुआ है, यहां तक कि हमारे स्टाफ के लोग भी। जब कोविड-19 के मरीज टेस्ट के लिए आना शुरू हुए थे, तो मैं पहला व्यक्ति था जो उनसे मिलता था। मैं अपने स्टाफ को बताता था कि मैं आप लोगों से बूढ़ा हूं लेकिन प्रॉपर ड्रेस और इक्विपमेंट्स पहन लेने के बाद किसी भी संभावित या संक्रमित मरीज के पास जाना सुरक्षित है।"

डॉक्टर्स की लड़ाई समाज से भी है

कोरोना वायरस एक ऐसी लड़ाई है, जो सेना नहीं, बल्कि डॉक्टर्स लड़ रहे हैं। मगर हममें से ज्यादा लोग समझते हैं कि डॉक्टर वो है, जो हमारे दिए गए पैसों के बदले हमारा इलाज करता है। बात सिर्फ पैसों की नहीं है। कई बार डॉक्टर्स को अपने निजी जीवन को ताक पर रखकर भी मरीज की जान बचाने के लिए काम करना पड़ता है।

डॉ. मेहता की इस बात को गौर से पढ़िए और सोचिए, "अगर कोई अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति हमारी बात नहीं समझता है या सुनता है, तो हम उसे सकारात्मक तरीके से समझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन अगर कोई एजुकेटेड आदमी गलत तरीक से व्यवहार करता है, तो समस्या यहां होती है।"

हाल में ही द गार्डियन में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें बताया गया था कि अस्पतालों में काम करने वाले मेडिकल स्टाफ, नर्सों और डॉक्टर्स से उनके मकान मालिक किराये के मकान खाली करवाने को कह रहे हैं। ये घटनाएं ऐसे समय में आई हैं, जब देश के लिए सबसे सम्माननीय ये मेडिकल स्टाफ हैं और कोरोना वायरस से लड़ाई का पूरा भार ही इनके कंधों पर टिका हुआ है।

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मजाक नहीं है ये लड़ाई

कोरोना वायरस से लड़ाई मजाक नहीं है। आम लोग तो इससे फिर भी बचे रह सकते हैं, मगर मेडिकल स्टाफ को इससे हर रोज दो-चार होना पड़ता है, इसलिए असली खतरा उन्हें है। हाल में ही लखनऊ में 25 साल के एक जूनियर डॉक्टर को और केरल में 25 डॉक्टर्स को क्वारंटाइन किया गया है। क्या इन सब बातों को जानने के बाद भी आपके मन में इन डॉक्टर्स के लिए सम्मान, दया और गर्व का भाव नहीं उठता है?

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