पटाखों के धुएं ने दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा में जहर घोल दिया है। पिछले तीन सालों में पटाखों से दिल्ली की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित हुई है। इस बार दिवाली पर पटाखे नहीं फोड़ने की अपील बेअसर रही। प्रदूषण के बढ़ते स्तर की गंभीरता को दरकिनार करते हुए लोगों ने त्यौहार के एक दिन पहले और बाद में भी आतिशबाजी की, जिसका खामियाजा आगे चलकर शायद हर किसी को भुगतना पड़ सकता है।
हवा की गुणवत्ता को परखने वाली एजेंसी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के लगभग सभी सब स्टेशनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक काफी खराब दर्ज की गई है। सुरक्षित स्तर से कहीं ज्यादा बुरे स्तर पर पहुंच चुके पीएम-2.5 और पीएम-10 के संपर्क में लंबे समय तक रहने से श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंच सकता है क्योंकि ये कण बेहद छोटे होते हैं, फेफड़ों में गहरे तक चले जाते हैं और खून में मिल जाते हैं। सीपीसीबी ने परामर्श जारी किया है कि जब भी वायु की गुणवत्ता गंभीर रूप से खराब हो तो लोगों को बाहर निकलने से बचना चाहिए। ये बच्चों, बुजुर्गों और हृदय व फेफड़ों की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए घातक है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रियल टाइम डेटा के अनुसार पीएम-10 की रीडिंग 42 गुना ज्यादा रही। आरकेपुरम में पीएम-10, 4,273 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। पीएम-2.5 भी 748 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के खतरनाक स्तर पर रहा। हालांकि दिल्ली प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि मशीनी गड़बड़ी के चलते पीएम-10 की रीडिंग चार हजार से ऊपर दिखी। यह अधिकतम 1680 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक रही।
लेकिन पीएम-2.5 की रीडिंग के 1680 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर का आंकड़ा भी प्रदूषण के बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंचने का संकेत है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक पीएम-10, 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम-2.5, 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन इस बार की दिवाली में दिल्ली में ये दोनों आकंड़ें हजार के पार पहुंच गए, यानी दिवाली पर त्यौहारों की धूम में फोड़े गए पटाखों ने दिल्लीवालों की सेहत का दिवाला निकालने का रास्ता तैयार कर दिया।
Image Source : Getty
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