
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को गैस चैंबर बनने से रोकने के लिए केजरीवल सरकार कृत्रिम वर्षा कराने की सोच रही है। दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को देखते हुए केजरीवाल सरकार ने रविवार को कैबिनेट की आपात बैठक बुलवाई और इस समस्या पर विचार-विमर्श किया। प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए सरकार ने कई उपायों की घोषणा की। जिनमें अगले कुछ दिनों तक निर्माण कार्य पर रोक, कूड़ा जलाने पर पाबंदी, जेनरेटर जलाने पर पाबंदी और सड़कों पर पानी का छिड़काव व अन्य कदम उठाए जाने का जिक्र किया। यह अन्य कदम है कृत्रिम बारिश।
सरकार करवा सकती है कृत्रिम बारिश
बैठक के पश्चात केजरीवाल ने प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश की संभावना पर भी विचार करना शुरू कर दिया है। दरअसल बारिश से हवा में तैरते प्रदूषण के कण को धरातल पर बैठाने में मदद मिलेगी जिसके बाद ही ये धुंध छट पाएगी। अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि इसके लिए उनकी सरकार केंद्र से बात करेगी। कृत्रिम बारिश को क्लाउड सीडिंग भी कहा जाता है।
कैसे होती है कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश करवाने के लिए छोटे-छोटे आकार के रॉकेटनुमा यंत्र में केमिकल भर कर आकाश में दागे जाते हैं। इन रॉकेटनुमा यंत्र में केमिकल के तौर पर सिल्वर आयोडाइड का इस्तेमाल किया जाता है। यह केमिकल आकाश में उपस्थित बादलों से रासायनिक क्रिया कर बारिश करवाता है। इस प्रयोग से सामान्य तौर पर 20 किलोमीटर के दायरे में बारिश होती है। वैज्ञानिक सिद्धांत के मुताबिक, केमिकल से भरा रॉकेट आकाश में दागे जाने के 45 मिनट बाद कृत्रिम बारिश होती है।
महाराष्ट्र में हो चुकी है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम वर्षा का उपाय महाराष्ट्र सरकार 2003 में अपना चुकी है जो काफी सफल रहा था। महाराष्ट्र में 2003 में सरकार ने 5 करोड़ 40 लाख रुपये खर्च करके 22 तालुकाओं में कृत्रिम बारिश का प्रयोग किया था।
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