आयुर्वेद में पेड़-पौधों से प्राप्त प्राकृतिक औषधियों का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक जरूरी औषधि चीड़ के पेड़ से निकलने वाली गोंद है, जिसे गंध बिरोजा कहा जाता है। यह गोंद शुरुआत में पतली, सफेद और तीखी गंध वाली होती है, लेकिन धीरे-धीरे यह गाढ़ी और पीले रंग की हो जाती है। जब इसे गर्म किया जाता है, तो इसका रंग लाल हो जाता है, जिसे सत बिरोजा कहा जाता है। इस गोंद से एक सुगंधित तेल निकाला जाता है, जिसे रेसिन कहते हैं। यह तेल शरीर के दर्द, नसों की कमजोरी और वात विकारों के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है। इस लेख में रामहंस चेरिटेबल हॉस्पिटल के आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा (Ayurvedic doctor Shrey Sharma from Ramhans Charitable Hospital) से जानिए, चीड़ की गोंद के फायदे और उपयोग के तरीके।
चीड़ की गोंद के फायदे - Pine Gum Benefits
आयुर्वेदिक चिकित्सा में चीड़ की गोंद यानी गंध बिरोजा का उपयोग बाहरी और आंतरिक रूप से किया जाता है। बाहरी रूप से इसका उपयोग तेल मालिश के रूप में किया जाता है, जिससे संधियों का दर्द, गठिया, मांसपेशियों की अकड़न और नसों की समस्याओं में राहत मिलती है। आंतरिक रूप से इसका सेवन औषधीय काढ़े के रूप में किया जाता है, जो कि कफज ज्वर (सर्दी-खांसी), दस्त और लकवे (पैरालिसिस) में फायदेमंद होता है। चीड़ के पेड़ की यह प्राकृतिक गोंद एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल और दर्द निवारक गुणों से भरपूर होती है। यह शरीर में वात दोष को संतुलित करती है और शरीर को ऊर्जावान और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है।
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1. जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द में राहत
आजकल जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द की समस्या आम हो गई है, खासकर सर्दी के कारण होने वाले दर्द और बढ़ती उम्र में जोड़ों की जकड़न जैसी समस्याएं। गंध बिरोजा का तेल इन समस्याओं के लिए एक प्रभावी उपचार हो सकता है। 2-3 चम्मच सत बिरोजा तेल को हल्का गर्म करें। प्रभावित क्षेत्र पर हल्के हाथों से मालिश करें। इसे रातभर लगा रहने दें या कम से कम 30 मिनट के लिए रखें। नियमित उपयोग से जोड़ों का दर्द, गठिया और मांसपेशियों की ऐंठन में राहत मिल सकती है।
2. वात विकारों में असरदार
आयुर्वेद में वात दोष को कंट्रोल करना बहुत जरूरी माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वात का असंतुलन शरीर में संधियों के दर्द, हड्डियों की कमजोरी, जोड़ों में सूजन और तंत्रिका तंत्र की समस्याओं को जन्म देता है। गंध बिरोजा वात दोष को संतुलित करने में सहायक होता है। तेल की मालिश से वात रोगों में राहत मिलती है। कुछ मामलों में इसे चिकित्सक की सलाह से औषधीय काढ़े में मिलाकर लिया जा सकता है।
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3. कफज ज्वर (सर्दी-खांसी और बुखार) में फायदेमंद
गंध बिरोजा में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण होते हैं, जो कफ से संबंधित बीमारियों में फायदेमंद होते हैं। यह सर्दी, खांसी, बलगम और बुखार जैसी समस्याओं में राहत देता है।
4. चिकने दस्त (डायरिया) में फायदेमंद
अगर किसी को चिकने दस्त (डायरिया) या अपच की समस्या हो रही है, तो गंध बिरोजा का उपयोग लाभदायक हो सकता है। इसमें मौजूद प्राकृतिक तत्व आंतों को मजबूत करने और संक्रमण को दूर करने में मदद करते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से इसे औषधीय काढ़े के रूप में लिया जा सकता है।
निष्कर्ष
गंध बिरोजा, जिसे चीड़ के पेड़ से प्राप्त किया जाता है, आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधि मानी जाती है। इसका उपयोग शरीर के दर्द, नसों की कमजोरी, वात रोग, लकवे और पाचन से जुड़ी समस्याओं में बेहद फायदेमंद होता है। बाह्य रूप से इसकी मालिश करने से मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है, जबकि काढ़े के रूप में इसका सेवन करने से शरीर की आंतरिक समस्याएं दूर होती हैं। लेकिन इसका सेवन करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
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