देश में 1-2 फीसद लोगों को ही मिलती है दर्द से राहत, जानें क्यों?

भारत में केवल एक से दो प्रतिशत लोगों को ही दर्द से राहत वाली देखभाल सुविधा मिल पाती है। 
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देश में 1-2 फीसद लोगों को ही मिलती है दर्द से राहत, जानें क्यों?


भारत में केवल एक से दो प्रतिशत लोगों को ही दर्द से राहत वाली देखभाल सुविधा मिल पाती है। एक नए शोध में इस बात का खुलासा हुआ है। हालांकि, पैलिएटिव केयर के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम मौजूद है, लेकिन चिकित्सा छात्रों के पाठ्यक्रम में दर्द प्रबंधन का पाठ शामिल नहीं किया जाता। देश के दक्षिणी राज्य केरल व कर्नाटक में दर्द निवारक देखभाल नीति लागू है। हालांकि महाराष्ट्र ने 2015 में इस तरह की नीति तैयार की थी, जिसे अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है। दर्द निवारक देखभाल का उद्देश्य, गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं झेल रहे मरीजों और उनके परिवार के सदस्यों की जिंदगी की गुणवत्ता में सुधार करना होता है। इसका उद्देश्य मनोवैज्ञानिक, सामाजिक या आध्यात्मिक मुद्दों जैसे कि डिप्रेशन और सामाजिक अलगाव को कम करना है। दर्द सबसे आम लक्षण है। यह शरीर और दिमाग को प्रभावित करता है। जब तक हम दर्द का इलाज नहीं करते, हम भावनात्मक तनाव या पीड़ा को पूरी तरह से दूर नहीं कर सकते हैं।

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, शांतिपूर्ण मौत हासिल करना कोई असामान्य इच्छा नहीं है, खासकर महत्वपूर्ण या टर्मिनल बीमारी वाले लोगों में। कई संस्कृतियांे और धार्मिक मान्यताओं में शांतिपूर्ण मौत के व्यावहारिक तरीकों की पेशकश रहती है। किसी आईसीयू या गहन चिकित्सा कक्ष में मरना अप्राकृतिक है और कई बार रोगी व उनके प्रियजनों के लिए दर्दनाक भी होता है। उन्होंने कहा, देखभाल करने वाले और नर्स इन तीन प्रक्रिया (मृत्यु की जागरूकता, देखभाल करने वाले माहौल का निर्माण, और जीवन के अंतिम समय की देखभाल को बढ़ावा देना)के माध्यम से शांतिपूर्ण मौत को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। 2014 में, वल्र्ड हेल्थ असेंबली ने सभी देशों से रोग-केंद्रित उपचार के साथ निदान के समय से संबंधित रोगों के सभी स्तरों (प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक) पर स्वास्थ्य प्रणालियों में दर्द निवारक देखभाल को शामिल करने पर जोर दिया था।

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डॉ. अग्रवाल ने कहा, विशेषज्ञता के इस युग में फैमिली फिजीशियन या जनरल प्रेक्टिशनर की कांसेप्ट तेजी से गायब हो रही है। हर दिन नई विशेषताएं आ रही हैं। पहले जो चीजें एक पारिवारिक चिकित्सक के दायरे में आती थीं, वे अलग अलग स्पेशलाइजेशन के बीच बंटती जा रही हैं। इसने रोगी और डॉक्टर के बीच बातचीत खत्म सी कर दी है। उन्होंने कहा, फैमिली फिजीशियन को पूरे परिवार की मेडिकल हिस्ट्री पता होती थी और वे अक्सर स्वास्थ्य की स्थिति से निपटने के बारे में मरीज की चिंताओं से परिचित होते थे। हमें इस संस्कृति को वापस लाने की जरूरत है।

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