क्या आप भी हर समय अपने बच्चों के लिए रहते हैं चिंतित? जानें ओवर-प्रोटेक्टिव पेरेंटिंग का बच्चों पर असर

बच्चों पर उनकी परवरिश का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है, ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग करने से बच्चों पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
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क्या आप भी हर समय अपने बच्चों के लिए रहते हैं चिंतित? जानें ओवर-प्रोटेक्टिव पेरेंटिंग का बच्चों पर असर


बच्चों के उचित मानसिक और शारीरिक विकास के लिए उनकी परवरिश यानी पेरेंटिंग सही ढंग से होनी चाहिए। पेरेंटिंग का असर बच्चों की पूरी जिंदगी भर रहता है। कई बार आपने देखा होगा या अनुभव किया होगा कि कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों को लेकर बहुत ज्यादा प्रोटेक्टिव रहते हैं। पेरेंटिंग के इस तरीके को ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग कहा जाता है। ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग बच्चों के मानसिक विकास पर नकारात्मक असर डालता है। ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चों की हर गतिविधि ओ कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं जिसकी वजह से कई बार बच्चों पर उसका नकारात्मक असर पड़ता है जो जिंदगी भर रह सकता है। दरअसल यह एक प्रकार का डर होता है जो पेरेंट्स के अंदर रहता है। इसकी वजह से न सिर्फ बच्चों पर ही बल्कि पेरेंट्स पर भी बहुत नकारात्मक असर होता है। ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग का इस तरह से नकारात्मक असर बच्चों पर पड़ता है।

बच्चों पर ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग का असर (Overprotective Parenting Negative Effects On Kids)

Overprotective-Parenting-Effects

ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग बच्चों के सम्पूर्ण विकास पर बुरा असर डालती है। ऐसे पेरेंट्स बच्चों पर हमेशा मंडराते रहते हैं। बच्चों की हर गतिविधि और उनके हर काम में पेरेंट्स का दखल भी रहता है। जिसकी वजह से बच्चों पर एक प्रकार का मानसिक दबाव भी रहता है। भारत में पेरेंटिंग से जुड़ी यह समस्या बहुत ज्यादा बड़ी है, हमारे देश में ज्यादातर पेरेंट्स बच्चों के बिगड़ जाने के डर से उनपर कंट्रोल रखना चाहते हैं। ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग के नकारात्मक असर बच्चों पर इस प्रकार से पड़ता है।

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1. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं

ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग की वजह से बच्चों पर मानसिक दबाव रहता है। जिसकी वजह से बच्चों के दिमाग पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग की वजह से बच्चों में सामाजिक चिंता, तनाव और अवसाद जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसकी वजह से बच्चे शक्तिहीन महसूस करते हैं। इसलिए पेरेंट्स को ओवरप्रोटेक्टिव होने की बजाय बच्चों को खुद से कामकाज करना सिखाएं और उन्हें जिम्मेदारियों के बारे में बताएं। बच्चों को कम्फर्ट जोन से बहार रखने से उनमें आत्मविश्वास पैदा होगा और जोखिम लेने की क्षमता बढ़ेगी।

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2. इमोशनल प्रॉब्लम्स ज्यादा होती हैं

ऐसे बच्चे जिनकी परवरिश ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग के तरीके से होती है उनमें इमोशनल प्रॉब्लम ज्यादा होती है। कुछ दिनों पहले हुई एक रिसर्च के मुताबिक ऐसे बच्चे अपने इमोशन को खुद से हैंडल नहीं कर पाते हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण यह है कि बचपन में ऐसे बच्चों की समस्याओं को पेरेंट्स खुद से साल्व करते हैं। इसलिए बच्चों में अपने इमोशन समझने और उसे हैंडल करने की क्षमता कम हो जाती है।

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3. जोखिम लेने की क्षमता की कमी

ऐसे बच्चे जिनकी परवरिश ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंट्स करते हैं उनमें आगे चलकर जोखिम लेने की क्षमता की कमी हो जाती है। ऐसे बच्चे निर्णय लेने में बहुत ज्यादा कमजोर हो जाते हैं। ऐसे बच्चों में कौशालात्मक क्षमता भी कम हो जाती है। इए बच्चे विषम परिस्थितियों में खुद को संभाल भी नहीं पाते हैं। ओवरप्रोटेक्टिव रहने की बजाय बच्चों को जोखिम लेने के बारे में, उन्हें हर तरह की परिस्थितियों से जूझने के बारे में सिखाना चाहिए।

4. आत्म विश्वास की कमी

ऐसे माता-पिता जो बच्चों पर बहुत ज्यादा नियंत्रण रखते हैं उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। ऐसे बच्चों का आत्मविश्वास धीरे-धीरे कम होता रहता है। ऐसे बच्चे पेरेंट्स के कंट्रोल की वजह से खुद को कम आंकने लगते हैं और इसी वजह से उनमें आत्मविश्वास कम हो जाता है। इसके बजाय आपको बच्चों को उनकी स्किल्स के बारे में बताना चाहिए।

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5. सोशल स्किल्स की कमी

ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग की वजह से बच्चों में सोशल स्किल्स की कमी हो जाती है। इसकी वजह से बच्चों में लोगों से मिलना जुलना और दोस्ती करने की क्षमता की कमी होती है। इसकी वजह से आगे चलकर भी बच्चों में यह समस्या बनी रहती है।

(All Image Source - Freepik.com)

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