बच्चों का मन बहुत कोमल और सरल होता है। वह छोटी-छोटी चीजों में खुश हो जाते हैं लेकिन कई बच्चे स्वाभाव से अतिसंवेदनशील और भावनात्मक होते हैं। वह छोटी-छोटी स्थितियों में दूसरे बच्चे से अलग व्यवहार कर सकते हैं। वह दूसरों को दर्द या संकट में देखकर प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे बच्चे या तो बहुत शांत, अंतर्मुखी और कम बोलने वाले होते हैं या फिर स्वभाव से काफी सक्रिय, जिद्दी और मांग पूरी न होने पर रोने वाले होते हैं।ऐसे बच्चे शोर या ऊंची आवाज से भी डर सकते हैं। संवेदनशील बच्चे किसी को लड़ते देख या हॉरर फिल्म को भी देखकर भी रोने लगते हैं। उनका मन बहुत कोमल और शांत होता है।वह परिवर्तन के साथ असहज महसूस करते हैं। उन्हें भीड़ में भी चुपचाप रहना पसंद आता है। ऐसे बच्चों को संभालना माता-पिता के लिए थोड़ा मुश्किल इसलिए हो जाता है क्योंकि संवेदनशील और भावनात्मक रूप से प्रबल बच्चे अपनी बात कहने में भी झिझक महसूस करते हैं। उन्हें डर रहता है कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे। ऐसे बच्चों से बहुत प्यार और सब्र रखकर बात करनी चाहिए ताकि वह आपसे अपनी बात कह सकें।
ऐसे संभालें संवेदनशील और भावनात्मक बच्चे को
1. बच्चे को कुछ समय अकेला रहने दें
कई बार माता-पिता सोचते हैं कि बच्चे को अकेले नहीं रहना चाहिए। ऐसे में उनके मन में गलत विचार आते है लेकिन अगर आपका बच्चा संवेदनशील है, तो उसे कुछ देर अकेला जरूर छोड़ें। ऐसे बच्चे खुद को खुश और शांत रखने के लिए अकेला रहना पसंद करते हैं। उन्हें ज्यादा लोगों से बात करना पसंद नहीं होता है। ऐसे में उन्हें उनका पसंदीदा काम करने के लिए अकेला रहने दें। ऐसे बच्चे अकेलेपन में ज्यादा क्रिएटिव होते हैं।
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2. बच्चे के साथ प्यार से बात करें
संवेदनशील और भावनात्मक रूप से प्रबल बच्चे बहुत जल्दी भावुक हो जाते हैं। ऐसे बच्चों के साथ कभी गुस्से में बात न करें। इससे ये डर सकते हैं या रो सकते हैं। साथ ही अपने ही माता-पिता से दूर भागने लगते हैं। इसलिए उनसे शांति से बात करें और अगर बच्चा कुछ पूछने पर भी कम बोलता है, तो उस स्थिति में अपना आपा न खोएं। बच्चे पर चिल्लाएं या मारें नहीं। उन्हें प्यारे से समझाएं या कोई रचनात्मक कार्य करने को दें।
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3. डर को धीर-धीरे दूर भगाएं
संवेदनशील बच्चे किसी भी स्थिति में असहज हो सकते हैं और उन्हें डर लग सकता है। ऐसे में उनके डर को धीरे-धीरे दूर करने की कोशिश करें। उन्हें हर रोज अपनी बात कहने के लिए आप डायरी दे सकते हैं या अगर बच्चा कम बोलता है, तो उसके लिए एक पालतू जानवर घर में ला सकते हैं। दरअसल संवेदनशील बच्चों को जानवरों से काफी लगाव होता है। ये अपनी तई बातें, जो किसी से कह नहीं पाते जानवरों से कह सकते हैं। ऐसे बच्चों को नई चीजें जल्दी पसंद नहीं आती है। ऐसे में उनपर कोई भी चीज थोपें न बल्कि उन्हें बताएं कि ये ड्रेस उनपर कितनी अच्छी लग रही है। जैसे उन्हें कहें कि आप ड्राइंग अच्छा करते हो, तो वे खुद उस चीज को लेकर प्रोत्साहित होते हैं।
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4. अनुशासन के सामान्य तरीकों का न अपनाएं
कई बार हम संवेदनशील बच्चों को भी सामान्य बच्चों की तरह की समझने लगते हैं। उन्हें भी उसी अनुशासन में बांधने की कोशिश करना चाहते हैं लेकिन ऐसे करने से उनके मन पर बुरा असर पड़ सकता है इसलिए ऐसे बच्चों को क्रिएटिव ढंग से कोई नियम और अनुशासन फॉलो कराने की कोशिश करें। जैसे अगर उनसे खिलौन जगह पर रखने को कहें, तो उन्हें समझाएं कि ये खिलौना का घर है और उन्हें उसी जगह पर रखने पर वे अच्छे लगेंगे। ऐसे बच्चे जिद्दी भी बहुत होते हैं, तो धैर्य रखकर समझाने की कोशिश करें।
5. परेशान होने पर बातचीत करें
ऐसे बच्चे परेशान होने पर भी किसी से अपने मन की बात नहीं करते हैं। अगर अपने बच्चे को बिल्कुल उदास या चुपचाप देखें, तो उनसे बात करने की कोशिश करें। उनसे कहानी सुनाते हुए बात करने की कोशिश करें ताकि वह कुछ कह सकें क्योंकि शायद वह सामान्य बच्चों की तरह बात न कर सकें। उनसे खेल-खेल या खिलाने के दौरान प्यार से बात करें।
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6. बाहरी दुनिया के लिए करें तैयार
बच्चों का संवेदनशील और भावनात्मक होना कोई कमजोरी नहीं है बल्कि ऐसे बच्चे अधिक क्रिएटिव होते हैं और उनकी स्मरण शक्ति भी अच्छी होती है। बस वे बाकी बच्चों की तरह बोलने और व्यवहार करने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे में उन्हें स्कूल या खेलने के दौरान दूसरे बच्चे उनका मजाक बना सकते हैं। इसके लिए आपको उन्हें तैयार करना चाहिए कि उनमें कोई कमी नहीं है। उन्हें किसी की बातों पर रोना या उत्तेजित प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए।
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7. उन्हें बदलने की कोशिश न करें
कई बार माता-पिता अपने बच्चों को अपने अनुरूप बदलने की कोशिश करते हैं। उन्हें उनके नियम और अनुशासन ही सही और तर्कसंगत लगते है लेकिन ऐसे हर बच्चे के साथ हो ये जरूरी नहीं है। अगर आपका बच्चा आपके बताए अनुसार चलने में सहज नहीं है, तो आपको भी अपने नियमों में थोड़ा बदलाव करना चाहिए और अपने बच्चे को समझने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वह भी आपकी बातों को समझें और अनुसरण करने की कोशिश करें। अपने बच्चे को वैसे ही स्वीकार करें, जैसा रहने में वह सहज और खुश है।
इसके अलावा आप उन्हें वीकेंड्स पर बाहर ले जाएं और उन्हें प्रकृति के साथ जुड़ने का मौका दें। उन्हें जो पसंद उसे आप भी समझने की कोशिश करें सिर्फ बच्चे को अपने मन के हिसाब से बनाने की कोशिश न करें। उन्हें उनकी नजर से समझना और उनकी सोच से उभरने देना भी जरूरी है। उन्हें कई खेल-खेल में नई एक्टिविटीज से जोड़ें और लोगों के सामने अपनी बात कहना सीखाएं।